अब तक भारत ने शानदार अध्यक्षता में जी20 के कारवां को आगे बढ़ाया है. सितंबर 9-10 को जी20 का समिट नयी दिल्ली में होना है. भारत इसके लिए सारी तैयारी कर रहा है. हालांकि, सऊदी अरब की परमाणु चाहतों के बहाने चीन की बढ़ती अंतरंगता और पुतिन के नहीं आने से भारत का जायका थोड़ा फीका पड़ सकता है, लेकिन भारत फिलहाल अपनी विदेश नीति के नए अध्याय लिखने में व्यस्त है. 


भारत है शानदार अध्यक्ष


जी20 की जहां तक बात है, अब तक जितने भी समिट हुए हैं, सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कराना टेढ़ी खीर होती है. भारत के लिए भी यह चुनौती है और वह वही प्रयास कर रहा है. अब तक भारत को सफलता नहीं मिली है, लेकिन लगता है कि दिल्ली बैठक में यह बात संभव हो जाएगी. भारत मानता है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति, विश्व-व्यवस्था और विवादों के निपटारे को लेकर कुछ प्रस्ताव लेकर आए, जिसे सहमति से पारित किया जा सके. पुतिन अभी अपनी घरेलू राजनीति में फंसे हैं, इसलिए उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को फोन कर आने में असमर्थता जतायी. हालांकि, रूस के विदेशमंत्री आ रहे हैं. इसके पीछे कुछ लोग हालांकि यह भी दूर की कौड़ी ला रहे हैं कि पुतिन के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय न्यायालय से वारंट निकला हुआ है, वो इसलिए भारत नहीं आ रहे तो ऐसा कुछ भी नहीं है. भारत उस संधि पर हस्ताक्षकर करनेवाले देशों में नहीं है, जिसके तहत उसकी ऐसी बाध्यता हो. बहरहाल, पुतिन ने ब्रिक्स की मीटिंग में भी हिस्सा नहीं लिया था, तो वह जिस तरह यूक्रेन के साथ वह युद्ध में फंसे हैं, उनके लिए घर को बचाना जरूरी है. वह अभी देश छोड़कर कहीं नहीं जा सकते हैं. पुतिन ने हालांकि जिस तरह बातचीत की है, वह भारत-रूस के बीच गर्मजोशी को दिखाता है. दोनों नेताओं ने आगे की विकास-यात्रा पर भी बातचीत की.


रूस और भारत पुराने साझीदार 


पिछले कई वर्षों से भारत और रूस एक रणनीतिक साझीदार हैं, सामरिक पार्टनर हैं. हमारे संबंध नए आयामों को छू रहे हैं और आगे भी घनिष्ठ ही होंगे. रूस और यूक्रेन युद्ध के पूरे प्रकरण में भारत ने पूरी परिपक्वता के साथ जो स्टैंड लिया है, वह रूस को अतिशय प्रिय नहीं तो ठीक तो लगेगा ही. इसके लिए भारत पर पश्चिमी देशों से दबाव भी पड़ रहा है कि वह रूस को कुछ कहे या युद्ध पर ही कुछ बयान दे. रूस हमारा बहुत पुराना और स्थिर दोस्त है. वह अकेला मित्र देश है, जो पांच दशकों से हमारे साथ खड़ा है. बांगलादेश को भी सबसे पहले रूस ने मान्यता दी थी. 1974 में परमाणु परीक्षण भी रूस की मदद से हुआ था, कश्मीर के मुद्दे पर रूस हमेशा हमारे साथ ही रहा है.



अभी भी कई सारे मुल्कों को लगता है कि भारत ही में वो माद्दा है कि वह रूस-यूक्रेन विवाद का अंत करा सकता है. क्वाड हो या आइ2यू2 (इंडिया-इजरायल, यूएई, यूएसए) भारत अपने हितों को लेकर बहुपक्षीय, द्विपक्षीय संबंधों को भी तराश रहा है. वेस्ट एशिया की राजनीति को लेकर भारत सजग है. सऊदी अरब और चीन की जो परमाणु संधि होनेवाली है, वह सऊदी अरब तो अमेेरिका से चाहता था. शर्तें चूंकि काफी कठोर थी, इसलिए चीन इसके बहाने वहां घुसना चाह रहा है. वेस्ट एशिया में चीन किसी तरह अपनी जगह बनाना चाह रहा है. सऊदी अरब शायद इसको लीवरेज के तौर पर इस्तेमाल करेगा. वह यही चाहेगा कि आखिरकार अमेरिका के साथ उसकी डील हो, इसलिए जब तक यह डील हो न जाए, कुछ कह नहीं सकते हैं. 



सऊदी अरब सहित पूरा मिडिल ईस्ट दोस्त


भारत के सऊदी अरब और पश्चिम एशिया के कई देशों के साथ बढ़िया द्विपक्षीय संबंध हैं. नरेंद्र मोदी के व्यक्तिगत ताल्लुकात हैं सऊदी अरब के प्रिंस से और कई अन्य देशों के नेताओं से भी. अभी भारत विश्व राजनीति में एक संतुलन निभानेवाले की भूमिका निभा रहा है. भारत जी20 की अध्यक्षता, बहुपक्षीय-द्विपक्षीय संबंधों और वार्ता के जरिए अपने राष्ट्रीय हितों और विश्व के हित के लिए काम कर रहा है. हर देश आनेवाले समय में वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की तरफ देख रहा है. सऊदी अरब का अभी प्रमाण नहीं मिला है कि वह परमाणु बम बनाने जा रहा है. तो, जो शांतिपूर्ण शोध है, वह सऊदी अरब अभी कर रहा है. तो, ये जो मामला है वह चीन और अमेरिका के बीच का है. दोनों ही देश एक-दूसरे के पाले से मित्रों को खींचना चाहते हैं.


चीन जहां पीछे रह जाता है, अमेरिका आगे बढ़कर उस देश की मदद करता है. यही बात चीन के साथ भी लागू है. तो, भारत की समस्या नहीं है. समस्या चीन की है. रूस की है. भारत को फिलहाल किसी से समस्या नहीं है. भारत जी20 की अध्यक्षता जिस तरह से ले गया है, एक पॉजिटिव वातावरण तो बन ही गया है, बहुतेरे सम्मेलन उसी शृंखला में संपन्न भी हुए हैं औऱ हरेक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश तक की भागीदारी भी हुई है. भारत ने 9-10 सितंबर को जी20 का समिट दिल्ली में रखा है और इस सम्मेलन से एक सर्वसहमति वाला प्रस्ताव जरूर आएगा. भारत ने ये प्रस्ताव भी दिया है कि अफ्रीकन यूनियन के देशों को भी जी20 में शामिल किया जाना चाहिए. भारत एक भरोसेमंद साझीदार है, दुनिया के देश इस पर भरोसा करते हैं तो संयुक्त घोषणापत्र जो भी आएगा, उसमें विश्व के कल्याण की ही कामना होगी और उसमें दुनिया का भला ही होगा. अर्से बाद जी20 से दुनिया को एक सकारात्मक और पॉजिटिव घोषणापत्र मिलेगा. 




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