भारत-अमेरिका के विदेश और रक्षा मंत्रियों के बीच हाल ही में टू प्लस टू की बैठक हुई. इसी में यह तय हुआ कि भारत कंबाइंड मेरीटाइम फोर्सेज़ की पूर्ण सदस्यता लेगा. इसका नेतृत्व अमेरिका करता है और यह एक ऐसा सुरक्षा बल है, जिसका नेतृत्व संयुक्त राष्ट्र नहीं कर रहा है और भारत इसमें शामिल होने जा रहा है. हिन्द महासागर में चीन के बढ़ते दबदबे को देखते हुए भारत के इस संगठन में शामिल होने को वक्ती जरूरत और रणनीतिक मांग माना जा रहा है. यह सुरक्षा बल समुद्र में नॉन-स्टेट एक्टर्स से होनेवाले नुकसान को रोकने और बचाने के लिए काम करता है. 


भारत अब सीएमएफ का औपचारिक सदस्य



जहां तक कंबाइन्ड मैरीटाइम फोर्स की बात है, यह दुनिया का सबसे बड़ा और अपनी तरह का अनूठा संगठन है, जो मैरीटाइम (यानी समुद्री) सीमाओं पर काम करता है. हमें याद रखना होगा कि इसका लक्ष्य नॉन-स्टेट एक्टर्स से मुकाबला करना है. नॉन-स्टेट एक्टर्स का मतलब होता है, वैसे लोग, समूह या एंटिटी, जो किसी देश या सरकार से संबद्ध नहीं हैं. हम जानते हैं कि अदन की खाड़ी से लेकर पर्शियन गल्फ, अफ्रीका की पूर्वी सीमाओं से लगे समंदर से मोटे तौर पर जिसे अरब सागर कहते हैं, यहीं तेल का पूरा व्यापार चलता है. अफ्रीका, यूरोप, भूमध्यसागर या पश्चिमी यूरोप से होनेवाली आर्थिक गतिविधियां यहीं से होकर गुजरती हैं. लंबे समय से यहां पाइटरेट्स यानी समुद्री लुटेरों, आतंकवादी गतिविधियों, नशीली दवाओं और मानवीय तस्करी तक के मामले देखे गए हैं, इसलिए यह काफी संवेदनशील और महत्वपूर्ण इलाका है. 3.2 मिलियन वर्गमीटर का यह इलाका है, जहां भारत पहले से ही अपनी भागीदारी करता रहा है, अब अंतर ये आया है कि अभी 2 प्लस टू की अमेरिका के साथ वार्ता के बाद भारत औपचारिक तौर पर इस गठबंधन की सदस्यता स्वीकार कर रहा है. वैसे, भारत लगातार पहले भी गतिविधियों और अभ्यासों में शामिल होता रहा है. 



नहीं बदलती इससे स्ट्रेटेजिक पॉलिसी 


हम जानते हैं कि 1945 के बाद से आज तक के दौर में, जब संयुक्त राष्ट्र का गठन हुआ और आज जब कई बहुध्रुवीय, बहुआयामी संगठन बने, भारत उनका सदस्य रहा है. भारत खुद गुटनिरपेक्ष आंदोलन का प्रणेता रहा है, जो बहुत बड़ा आंदोलन था. अभी जी20 हो या जी7 हो, आशियान हो, क्वाड हो, ब्रिक्स हो, शंघाई को-ऑपरेशन हो, भारत ऐसे कई बहुपक्षीय मंचों में अपनी सहभागिता करता रहा है. भारत अब तो ग्लोबल साउथ की आवाज बनने का प्रयास कर रहा है, तो ऐसा नहीं है कि भारत पहली बार ऐसे किसी मंच का सदस्य बना है, तो यह कहना थोड़ा अतिशय हो जाएगा कि पहली बार भारत ऐसा कर रहा है. भारत ऐसे कई संगठनों में शामिल रहा है, उसकी स्थापना में शामिल रहा है, नए दौर में बहुपक्षीय गठबंधन बन रहे हैं, जिसका यूएन से, उसके मैंडेट से कोई संबंध नहीं है और उसमें भारत है.


जिस तरह रणनीतिक परिस्थितियां बदल रही हैं, जिस तरह चीन का उभार हुआ है और जिस तरह का उसका विस्तारवादी रवैया है, कई देशों में उसने जिस तरह नौसैनिक बेस बनाए हुए हैं, उसको देखते हुए भी भारत ने अपनी रणनीति बनाई है. बाकी, सीएमएफ के कई और मैंडेट हैं. इसमें नशीले पदार्थों के अलावा पर्यावरणीय मुद्दों पर भी बात होती है, काम होता है. इसके साथ ही चीन के संदर्भ में एक और बात को देखना चाहिए कि नियम आधारित व्यवस्था (रूल बेस्ड ऑर्डर) को बनाए रखने के लिए भी कंबाइन्ड मैरीटाइम फोर्सेज काम करती है. जो सामुद्रिक नौवहन है, उसमें कुछ शक्तियां अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहती हैं. चीन उनमें एक बड़ा नाम है, जो हिंद प्रशांत क्षेत्र से लेकर अरब सागर के पश्चिमी इलाके तक पर नजर गड़ाए बैठा है. भारत को ऐसे गठबंधनों का हिस्सा होना ही होगा. 


भारत नहीं किसी एक गुट के साथ


जहां तक अमेरिकी नेतृत्व वाले ब्लॉक की तरफ भारत के झुकाव की बात है, तो एस जयशंकर भी स्पष्ट तौर पर यह कहते रहे हैं कि भारत अपने हितों से समझौता नहीं करेगा और उसकी विदेश नीति इसी पर आधारित है कि वह अपने हितों की रक्षा कैसे करता है, यही हमने रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान भी देखा, यही हम इजरायल और हमास के संघर्ष में भी देख रहे हैं. भारत किसी एक ब्लॉक की नुमाइंदगी नहीं करता. वह एक बहुध्रुवीय विश्व की कल्पना करता है, उसी के लिए काम करता है. भारत उन ब्लॉक्स या देशों के साथ भी काम करता है, जो चीन के विस्तारवादी रवैए के खिलाफ हैं. भारत चीन के साथ भी एससीओ और ब्रिक्स में शामिल है, क्योंकि भारत संवाद को बनाए रखना चाहता है. भारत की सीएमएफ में नुमाइंदगी को ऐसे ही देखना चाहिए. एक बात और याद रखनी चाहिए कि कम्बाइन्ड मैरीटाइम फोर्सेज एक मिलिट्री ऑर्गैनाइजेशन या समझौता है या उससे अलग है. हमारे सामने नाटो और क्वाड का उदाहरण है. नाटो एक सैन्य संगठन है, जिसकी ट्रीटी है कि सदस्य देश पर हमला होगा, तो बाकी देश भी उसके साथ खड़े होंगे.


क्वाड ऐसा संगठन है, जो रूल्स-बेस्ड व्यवस्था की बात करता है. सीएमएफ अपने मैंडेट, अपनी प्रस्तावना में इसका साफ उल्लेख करता है कि उनका मुकाबला नॉन-स्टेट एक्टर्स से है, यानी वे किसी देश, सरकार या स्टेट-एक्टर्स के खिलाफ काम नहीं करेंगे. आप इससे समझ लें कि सीएमएफ के सदस्य देशों में पाकिस्तान जैसा देश भी है, उसमें खाड़ी देश हैं, मलेशिया है, तुर्किए है, यमन जैसा देश शामिल है. आम तौर पर यमन जैसे देशों के बारे में हम स्पष्ट तौर पर देख सकते हैं कि अमेरिका के साथ उसके कैसे संबंध हैं, पाकिस्तान का चीन की तरफ झुकाव हम लोग जानते हैं. तो, इस संगठन को किसी सैन्य संगठन की तरह नहीं समझना चाहिए, बल्कि आर्थिक हितों को सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षित माहौल बनाने के लिए काम करने वाला एक संस्थान समझना चाहिए. हमें इसे मिलिट्री संगठन कहने से बचना चाहिए, इसके मैंडेट और विदेश नीति को ध्यान में रख समग्रता से सोचना चाहिए. 




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