लाल किले की प्राचीर से लगातार नौंवी बार देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अगले 25 साल के लिए जो रुपरेखा खींची है,वह देश को बेहतर भविष्य की तरफ ले जाने वाली है.बेशक आज शायद इस पर यकीन न हो लेकिन साल 2047 में जब देश आज़ादी का शताब्दी महोत्सव मना रहा होगा,तब वह भारत कुछ अलग ही होगा जो विकसित देशों की अग्रिम पंक्ति में अपना मुकाम बना चुका होगा. इसीलिये पीएम मोदी ने आजादी के अमृत महोत्सव पर राष्ट्रीय ध्वज फहराते हुए ये ऐलान किया कि सरकार की ओर से अगले 25 साल के कालखंड को ‘‘अमृत काल’’ का नाम दिया गया है.


पीएम ने कहा, ‘‘आज जब अमृत काल की पहली प्रभात है, हमें इस 25 साल में विकसित भारत बना कर ही रहना है. अपनी आंखों के सामने इसे कर के दिखाना है." खुद मोदी भी ये जानते हैं कि कोई जरुरी नहीं कि वे 25 साल बाद भी इसी पद पर बने रहेंगे लेकिन भारत की तस्वीर बदलने के लिए उन्होंने देशवासियों को पांच प्रण पूरे करने का जो संकल्प दिया है, वह उनकी दूरदर्शिता जाहिर करता है. ये पांच प्रण ही अगले 25 साल में भारत की तस्वीर बदलने में कारगर साबित होंगे. इसीलिये उन्होंने आह्वान किया कि हमें पांच प्रण को लेकर 2047 तक चलना है, जब आजादी के 100 साल होंगे. हमें आजादी के दीवानों के सारे सपने पूरा करने का जिम्मा उठा कर चलना है.


‘विकसित भारत’को पहला प्रण बताते हुए पीएम ने इस पर जोर दिया कि गुलामी का एक भी अंश अगर अब भी बाकी है, तो उसको किसी भी हालत में बचने नहीं देना है. उन्होंने कहा कि इस सोच ने कई विकृतियां पैदा कर रखी है, इसलिए गुलामी की सोच से मुक्ति पानी ही होगी. इसे उन्होंने दूसरा प्राण बताया. बेशक प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में विस्तार से इसका जिक्र नहीं किया लेकिन वे इस तथ्य से बखूबी वाकिफ हैं कि समाज में ऊंचनीच  और भेदभाव वाली गुलामी की निशानी आज भी बाकी है और दूरदराज के इलाकों में इसे साफ देखा जा सकता है, जहां सवर्णों के कुंए से पानी लेने या मंदिर में प्रवेश करने पर दलितों के लिए आज भी रोक है. यही दासता की निशानी है और पीएम ने गुलामी के इसी अंश की तरफ इशारा किया है.


जबकि अपनी विरासत पर गर्व करने को तीसरा प्रण बताते हुए मोदी ने कहा कि यही वह विरासत है जिसने भारत को स्वर्णिम काल दिया है. उन्होंने एकता और एकजुटता को चौथा प्रण और नागरिकों के कर्तव्य को पांचवां प्रण बताते हुए कहा, ‘‘जब सपने बड़े होते हैं... जब संकल्प बड़े होते हैं तो पुरुषार्थ भी बहुत बड़ा होता है. शक्ति भी बहुत बड़ी मात्रा में जुट जाती है.’’


पीएम ने अपने भाषण में लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए खुद अपनी सरकार समेत राज्य सरकारों के समूचे तंत्र को जो नसीहत दी है,वह बेहद अहम है.भारत की जनता को आकांक्षित जनमन बताते हुए उन्होंने कहा कि Aspirational Society किसी भी देश की बहुत बड़ी अमानत होती है. और हमें गर्व है कि आज हिन्दुस्तान के हर कोने में, हर समाज के हर वर्ग में, हर तबके में, आकांक्षाएं उफान पर हैं. देश का हर नागरिक चीजें बदलना चाहता है, बदलते देखना चाहता है, लेकिन इंतजार करने को तैयार नहीं है. 75 साल में संजोय हुए सारे सपने अपनी ही आंखों के सामने पूरा करने के लिए वो लालयित है, उत्‍साहित है, उतावला भी है.


 किसी का नाम लिए बगैर विपक्ष शासित राज्य सरकारों पर निशाना साधते हुए पीएम मोदी ने कहा कि कुछ लोगों को इसके कारण संकट हो सकता है. क्‍योंकि जब aspirational society होती है तब सरकारों को भी तलवार की धार पर चलना पड़ता है. सरकारों को भी समय के साथ दौड़ना पड़ता है और मुझे विश्‍वास है चाहे केन्‍द्र सरकार हो, राज्‍य सरकार हो, स्थानीय स्‍वराज्‍य की संस्‍थाएं हों, किसी भी प्रकार की शासन व्‍यवस्‍था क्‍यों न हो, हर किसी को इस aspirational society को address करना पड़ेगा, उनकी आकांक्षाओं के लिए हम ज्‍यादा इंतजार नहीं कर सकते. हमारे इस aspirational society ने लंबे अरसे तक इंतजार किया है. लेकिन अब वो अपनी आने वाली पीढ़ी को इंतजार में जीने के लिए मजबूर करने को तैयार नहीं हैं.


परिवारवाद और भाई-भतीजावाद पर करारी चोट करते हुए पीएम मोदी लोगों को ये अहसास कराना नहीं भूले कि ये बीमारी सिर्फ राजनीति में ही नहीं बल्कि समाज के हर क्षेत्र में है और इसके खात्मे की जरुरत है. उन्होंने कहा कि और जब मैं भाई-भतीजावाद परिवारवाद की बात करता हूं तो लोगों को लगता है मैं सिर्फ राजनीति क्षेत्र की बात करता हूं. जी नहीं, दुर्भाग्‍य से राजनीति क्षेत्र की उस बुराई ने हिन्‍दुस्‍तान की हर संस्‍थाओं में परिवारवाद को पोषित कर दिया है. 


परिवारवाद हमारी अनेक संस्‍थाओं को अपने में लपेटे हुए है. और इसके कारण मदेश के talent को नुकसान होता है. मेरे देश के सामर्थ्‍य को नुकसान होता है. जिनके पास अवसर की संभावनाएं हैं वो परिवारवाद भाई-भतीजे के बाद बाहर रह जाता है. भ्रष्‍टाचार का भी कारण यह भी एक बन जाता है. इस परिवारवाद व भाई-भतीजावाद से हमें हर संस्‍थाओं में एक नफरत पैदा करनी होगी, जागरूकता पैदा करनी होगी, तब हम हमारी संस्‍थाओं को बचा पाएंगे.उसी प्रकार से राजनीति में भी परिवारवाद ने देश के सामर्थ्‍य के साथ सबसे ज्‍यादा अन्‍याय किया है. 


परिवारवादी राजनीति परिवार की भलाई के लिए होती है उसको देश की भलाई से कोई लेना-देना नहीं होता है और इसलिए लालकिले की प्राचीर से तिरंगे झंडे के आन-बान-शान के नीचे भारत के संविधान का स्‍मरण करते हुए मैं देशवासियों को खुले मन से कहना चाहता हूं, आइये हिन्‍दुस्‍तान की राजनीति और सभी संस्थाओं की शुद्धिकरण के लिए भी हमें देश को इस परिवारवादी मानसिकता से मुक्ति दिला करके योग्‍यता के आधार पर देश को आगे ले जाने की ओर बढ़ना होगा.


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