पिछले ही वर्ष जुलाई में एक प्रेस वार्ता आयोजित करके बिहार पुलिस के एडीजी (मुख्यालय) जितेन्द्र सिंह गंगवार ने ये जानकारी दी थी कि पिछले 24 वर्षों में बिहार में हत्याओं की दर आधी हो गयी है. अपराधों के कम होने का ये आंकड़ा ऐसे ही नहीं आया होगा. बिहार में राजनीति को देखेंगे तो सत्ताधारी दल जद (यू) पूरे जोर-शोर से याद दिलाती है कि अदालतें तक राजद के शासन काल को “जंगलराज” कहती थी. प्रति लाख आबादी पर हत्या की दर उस वक्त 4.4 थी (2001 में) और इसके 2024 में घटकर 2.1 हो जाने पर चर्चा हो रही थी.

Continues below advertisement

पिछले कुछ वर्षों में देखा जाए तो हत्या के करीब 3000 मामले हर वर्ष दर्ज हुए हैं. कोरोना काल से पहले 2018 में हत्या के 2933 मामले दर्ज हुए थे, 2022 में 2929 और 2023 में 2844 मामले दर्ज हुए. कोरोना काल में घरेलू हिंसा की वारदातें कुछ बढ़ी थीं, ऐसा माना जाता है. इसकी वजह से तुलना में उन आंकड़ों को छोड़ा जाता है. बिहार में हत्या जैसे अपराधों की एक बड़ी वजह भूमि विवाद होते हैं जो दूसरी जगहों से थोड़ा अलग कारण है. इसके अलावा प्रेम प्रसंग और अवैध सम्बन्ध हत्या की बड़ी वजहें होती हैं. वर्ष 2022 में जो 2900 के लगभग घटनाएँ हुईं उनमें 980 मामले भूमि सम्बन्धी विवादों के थे और 132 अवैध संबंधों तथा 171 प्रेम प्रसंगों से जुड़े मामले थे.

आंकड़े क्या कहते हैं?

Continues below advertisement

आंकड़ों की मानें तो देश भर में बिहार 2021 तक भूमि सम्बन्धी विवादों में सबसे अधिक मुकदमे दर्ज करने वाला राज्य रहा है. महाराष्ट्र में उस वर्ष 1259 मामले दर्ज हुए जो देश में दूसरे स्थान पर था, इसकी तुलना में बिहार जो पहले स्थान पर था, वहाँ 2021 में भूमि सम्बन्धी विवादों के 3336 मामले दर्ज हुए जो कि दूसरे स्थान वाले महाराष्ट्र के दोगुने से भी अधिक थे. इस वर्ष हत्या के प्रयासों के मामले भी सबसे अधिक बिहार में (8393 मामले) आये. बिहार 2021 में भी पुलिस और सरकारी अधिकारियों पर हमले के सर्वाधिक (150 मामले) दर्ज करने वाला राज्य था. दंगों के मामले में भी बिहार की स्थिति सबसे बुरे राज्यों में रही है.

भले ही विपक्षी दल राजद कितना भी शोर मचा ले और जद(यू) भी अपनी सेक्युलर छवि प्रदर्शित करे, लेकिन राज्य में दंगे-फसाद के हजारों मामले दर्ज होते हैं. वर्ष 2022 के भी जब आंकड़े आए थे तो बिहार में दंगों के 4736 मामले दर्ज हुए थे जिसमें से 60 मामले सांप्रदायिक-धार्मिक दंगों के थे. दंगों को इतिहास के हिसाब से देखें तो 2016 में बिहार तीसरे स्थान (139 मामले, 165 पीड़ित) और 2015 में देश में चौथे स्थान (79 मामले 146 पीड़ित) पर था. साइबर ठगी के मामलों में भी बिहार इस समय तक बाकी के राज्यों को पीछे छोड़ चुका था. ठगी के मामलों में 2022 में 35% की बढ़त आई और 10285 मामले दर्ज हुए. इसमें से 755 मामले सीधे एटीएम फ्रॉड के थे और राजस्थान-हरियाणा जैसे राज्यों से बिहार कहीं आगे निकल चुका था.

पुलिस की कार्रवाई पर सवाल

थोड़े ही दिन पहले पुलिस के कामकाज के तरीकों पर विपक्षी दल राजद के सांसद और पूर्व मंत्री सुधाकर सिंह ने सवाल उठाने शुरू किये. उनके मुताबिक मामलों को उचित तरीके से अदालत ले जाकर निपटाने के बदले पुलिस आम आदमी पर लाठियां भांजकर धौंस जमाने की कोशिश करती नजर आ रही थी. उनके एक-दो वीडियो सोशल मीडिया (एक्स) पर शेयर करते ही ऐसे कई वीडियो आम लोग भी भेजने लगे. इन वीडियो में कहीं पुलिस बूढ़ों पर तो कहीं गरीब ऑटो चालक/रेहड़ी वालों पर लाठियां भांजती दिखी. ये विवाद चल ही रहा था कि होली के मौके पर अश्लील गाने न बजाने का आदेश आया जिसे बिहार पुलिस के एक्स हैंडल से भी प्रचारित किया गया. इसके तुरंत बाद जद (यू) विधायक गोपाल मंडल का होली मिलन समारोह में मंच पर एक अश्लील गाना गान का वीडियो ही जनता ने वायरल कर डाला. यद्यपि कुछ लोगों पर ऐसे मामलों में कार्रवाई हुई लेकिन उसे संतोषजनक कहा जाए या नहीं, ये एक बड़ा सवाल है.

तेजप्रताप यादव का ताजा मामला

इन सबके बीच निकलकर आया तेजप्रताप यादव का होली का वीडियो, जिसने पुलिस की रही-सही साख पर भी बट्टा लगा दिया. होली के एक वीडियो में तेजप्रताप एक युवा पुलिसकर्मी को ठुमके लगाने कहते हुए दिखते हैं. काफी वायरल रहे इस वीडियो में युवा पुलिसकर्मी को तेजप्रताप यादव धमकाते हैं कि अगर ठुमके नहीं लगाए, तो सस्पेंड हो जाओगे. वीडियो सामने आने के बाद कई रिटायर हो चुके वरिष्ठ पुलिस अधिकारी इस हरकत की निंदा करते सुनाई दिए. जाहिर है विभागीय नियमों के कारण मौजूदा पुलिसकर्मी इसपर चुप्पी साधे रहे. बात इतने पर ही नहीं रुकी, एक दूसरा वीडियो भी सामने आया जिसमें तेजप्रताप अपने साथियों समेत स्कूटी पर राज्य के सबसे बड़े वीआईपी इलाके, यानी मुख्यमंत्री आवास के सामने चकल्लस काटते दिखे. उन्होंने और उनके साथियों ने कोई हेलमेट इत्यादि नही लगाया था और वो ट्रैफिक कानूनों की सरेआम धज्जियां उड़ाते दिख रहे थे.

आंकड़े खोलते हैं पुलिस की पोल

यानी कि जो आम आदमी पर लाठियां बरसाने और खास की गैरकानूनी हरकत को भी अनदेखा करने का आरोप बिहार पुलिस पर लग रहा था, उसे विपक्षी नेता तेजप्रताप ने अपनी ही हरकतों से सिद्ध कर दिया. बाद में वो पत्रकारों के सामने होली पर बुरा न मानने की परंपरा की दुहाई देते हुए नजर आये. पुलिस का इकबाल राज्य में कितना बुलंद है, ये आंकड़े भी बताते ही हैं. वर्ष 2022 के एनसीआरबी के आंकड़ों में बताया गया था कि साल भर में पुलिस पर हमले की 404 घटनाएँ हुईं जो उसके पिछले वर्ष 2021 की तुलना में करेब 300% अधिक थी. तेजप्रताप के कहने पर ठुमका लगाने वाले सिपाही को बाद में लाइन हाजिर कर दिया गया और जिस स्कूटी से तेजप्रताप घूम रहे थे उसपर चालान किया गया तो पता चला कि उस स्कूटी पर कई चालान पहले से ही हैं.

सिर्फ होल पर बिहार पुलिस पर हमले की दस वारदातें – अररिया, मुंगेर, पटना, समस्तीपुर और जहानाबाद में हुई हैं. अररिया और मुंगेर में दो पुलिसकर्मी मारे भी गए. एक असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर की हत्या अनमोल यादव को पकड़ने जाने पर और दूसरे एएसआई की हत्या हुई रणबीर यादव गैंग के हमला में हो गयी. पुलिस के एडीजी पंकज दारद (लॉ एंड आर्डर) और एडीजी कुंदन कृष्णन (हेडक्वार्टर) कह चुके हैं कि गोली का जवाब गोलियों से दिया जाएगा, लेकिन इतना तो स्पष्ट हो ही गया है कि पुलिस की बिहार में साख गिर रही है. राजनीति में ये तेजस्वी यादव को मौका दे रही है कि नीतीश कुमार की सरकार को घेरा जाए, यानी नेताओं को इसका फायदा भी हो रहा है. बाकी रहा सवाल जनता का, तो वो शायद “सह लेंगे थोड़ा” कहकर कंधे उचका दे, क्योंकि चुनावों में थोड़ी देर तो है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]