किसान आंदोलन की भड़की आग पर काबू पाने के लिए केंद्र सरकार ने फसलों की सरकारी खरीद का नयूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी बढ़ाकर इसे कुछ हद तक बुझाने की अपनी तरफ से एक कोशिश की है.लेकिन बड़ा सवाल ये है कि महज़ इतना कर देने भर से क्या किसान मान जाएंगे और पिछले दस महीने से चला रहे आंदोलन को इतनीआसानी से खत्म कर देंगे?


'किसानों की भलाई के लिए ले रहे फैसला'
हालांकि इस फैसले का ऐलान करते वक़्त सरकार को भी ये अहसास होगा ही कि महज़ इतना कर देने भर से ही बात नहीं बनने वाली है. लेकिन इसके जरिए मोदी सरकार ने देश को ये संदेश देने की कोशिश की है कि वो तो किसानों की भलाई में ही ऐसे फैसले ले रही है लेकिन चंद किसान नेता ये नहीं चाहते कि ये आंदोलन खत्म हो क्योंकि वे निहित स्वार्थ रखने वाली ताकतों की कठपुतली बने हुए हैं.हो सकता है कि पंजाब, हरियाणा व पश्चिमी यूपी को छोड़ बाकी देश में इस संदेश का असर भी हो जाए. लेकिन उससे क्या फायदा क्योंकि पुरे आंदोलन की कमान तो इन तीन राज्यों के किसानों ने ही संभाल रखी है.


पीएम मोदी ले सकते हैं बड़ा फैसला
वैसे उम्मीद तो ये की जा रही थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमिटी की बैठक में कोई बड़ा एलान हो सकता है, जिसमें खुद पीएम ही किसानों को बातचीत का न्योता देकर इस मसले को सुलझाने की पहल कर सकते हैं. यही वजह थी कि हरियाणा के करनाल में धरना दे रहे आंदोलन के रणनीतिकारों के कान सरकार की इस बैठक का फैसला सुनने के लिए उतावले हो रहे थे.


टिकैत ने सरकार के फैसले को बताया धोखा 
लेकिन अपनी उम्मीदों पर पानी फिरता देख किसान आंदोलन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने फौरन मोर्चा संभाला और सरकार के इस फैसले को किसानों के साथ धोखा व  मजाक बताने में जरा भी देर नहीं लगाई. दरअसल, एमएसपी वह है जिस  दर पर सरकार किसानों से अनाज, धान, दालों, सरसों समेत कुल 23 फसलों की खरीद का नयूनतम समर्थन मूल्य तय करती है. महंगाई को देखते हुए हर साल इसमें इजाफा होता है और 2022-23 के मार्केटिंग सीजन के लिए भी रबी की फसलों की कीमतों में बढ़ोतरी की गई है.


'किसानों के साथ किया गया मजाक'
लेकिन भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने इसे धोखा बताते हुए तुरंत ट्वीट कर दिया कि ये किसानों के साथ सबसे बड़ा मजाक है. उनके मुताबिक महंगाई दर बढ़ने के बाद भी पिछले वर्ष की तुलना में ये बढ़ोतरी कम है. क्या इसका फॉर्म्युला बताएगी सरकार? उन्होंने रबी की फसलों का एक चार्ट शेयर करते हुए कहा कि जिस तरह से पिछले वर्ष गेहूं के समर्थन मूल्य में इजाफा किया गया था, अगर उस फार्मूले को भी लागू किया जाए तो किसानों को 74 रुपए कम दिए गए हैं. इसी तरह उन्होंने रबी की ही अन्य फसलों के रेट के बारे में भी बताया है कि सरकार ने किसानों के साथ  कैसा मज़ाक किया है.


सरकार के आगे झुकने को तैयार नहीं किसान
लिहाज़ा,टिकैत के इन तेवरों से इतना तो साफ हो गया कि फिलहाल किसान नेता सरकार के आगे झुकने को तैयार नहीं दिखते. तो फिर इसका हल क्या है और सरकार भी किसानों की आशंका दूर करने के लिए उनकी बात आखिर क्यों नहीं मान रही है. देखा जाये तो इसकी एक नहीं बल्कि कई वजह हैं, अन्यथा सरकार भी इस आंदोलन को इतना लंबा नहीं खिंचने देती. एक अनुमान के मुताबिक देश में केवल 6 फीसदी किसानों को ही एमएसपी मिलता है, जिनमें से सबसे ज्यादा किसान पंजाब व हरियाणा के हैं. इसी वजह से तीनों कृषि कानूनों का विरोध भी इन इलाकों में ही ज्यादा हो रहा है.


अब तक कोई ऑर्डर लिखित में नहीं
लेकिन किसानों की चिंता की एक बड़ी वजह ये है कि  सरकार ने अब तक लिखित में ऐसा कोई ऑर्डर जारी नहीं किया है कि फसलों की सरकारी खरीद आगे भी जारी रहेगी. अब तक जो भी बातें हो रही हैं वो मौखिक ही है. इसलिए किसान चाहते हैं कि सरकार इसकी गारंटी लिखित में दे, जो वह देना नहीं चाहती. केंद्र सरकार के पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन कहते हैं कि किसानों के डर की एक और बड़ी वजह ये भी है कि केंद्र ने  रूरल इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड राज्य सरकारों को देना बंद कर दिया है. केंद्र सरकार तीन फीसदी का ये फंड हर साल राज्य सरकारों को देती थी. लेकिन पिछले साल से  केंद्र ने ये फंड देने से मना कर दिया है. इस फंड का इस्तेमाल ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर (जिसमें कृषि सुविधाएँ भी शामिल है) बनाने के लिए किया जाता था.


किसानों को खरीद कम होने का है डर
सरकार की नीयत पर शक करने का एक और बड़ा कारण भी किसानों के पास है. उन्हें ये पता लग चुका है कि सरकार को कई कमेटियों ने ये सिफारिश दी है कि गेंहू और धान की खरीद सरकार को कम करना चाहिए. इससे संबंधित शांता कुमार कमेटी से लेकर नीति आयोग की रिपोर्ट सरकार के पास है. सरकार इसी उद्देश्य के तहत अपना काम भी कर रही है. आने वाले दिनों में ये ख़रीद कम होने वाली है. यही डर किसानों को सता रहा है.


'तीन कानूनों को वापस लेना ही एक मात्र सहारा'
चंडीगढ़ के सेंटर फॉर रिसर्च इन रूरल एंड इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट के प्रोफेसर आरएस घुम्मन कहते हैं कि भविष्य में सरकारें जब फसलें कम खरीदेंगी तो जाहिर है कि किसान निजी कंपनियों को ही अपनी फसलें बेचेंगे. निजी कंपनियां चाहेंगी कि वो एमएसपी से कम पर खरीदें ताकि उनका मुनाफा बढ़ सके. इसलिए सरकार निजी कंपनियों पर ये शर्त थोपना नहीं चाहती. इसमें सरकार के भी कुछ हित जुड़े हैं और निजी कंपनियों को भी इससे कोई दिक्कत नहीं होगी. उनके मुताबिक ,"किसानों की एक बड़ी मांग ये है कि एमएसपी से नीचे खरीद को अपराध घोषित किया जाए लेकिन मेरा मानना है कि ऐसा करने पर भी विवाद खत्म नहीं होता दिख रहा है. तीनों क़ानून को वापस लेना ही एक मात्र रास्ता है." 


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