वो बुधवार का दिन था जब हम श्रीनगर में शंकराचार्य मंदिर की सीढ़ियों से उतर रहे थे कि अचानक फोन घनघनाने लगे. भाई कहां घूम रहे हो वहां सब ठीक तो है. हां ठीक है. मगर अब तो चिंता होने लगी है तुम्हारी. क्यों यहां टीवी पर चल रहा है यासीन मलिक को सजा सुनाई जाने वाली है और वहां श्रीनगर में प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. तुम सब सुरक्षित तो हो? हां ऐसा तो कुछ नहीं है यहां पर. चलो खैरियत से रहना और क्यों ऐसी जगहों पर जाते हो जहां पर परेशानियां होती हैं? ये हमारे पड़ोसी थे जो हम और हमारे परिवार की चिंता में थे.


हम यहां रविवार को आये थे अगले रविवार तक के लिये. दोस्त परिवार के साथ. इन दिनों हम अकेले ही नहीं आये थे इस बार तो कश्मीर रिकार्ड तोड टूरिस्ट आये हैं. श्रीनगर की अधिकतर बाजार और गलियां ठसाठस भरी दिखतीं हैं. तीन साल श्रीनगर और आस पास के टूरिस्ट प्लेस की होटलें ऐसी भरी दिख रहीं हैं. मंदिर से उतर कर डल लेक की रोड पर आते ही आने और जाने वाली गाडियां अटक-अटक कर चल रहीं थीं. लेक के चारों ओर अच्छी खासी भीड़ थी. हम गाड़ी में बैठे लोग इस खूबसूरत लेक में तैरते शिकारों को निहारते जा रहे थे. परेशान थे तो गाड़ियों के ड्राइवर. थोड़ी देर बाद ही ऑफिस के अभिषेक का फोन बज गया. सर आप लोग ठीक हो ना यहां टीवी पर तो बस कश्मीर कश्मीर ही चल रहा है. प्रदर्शन और आंसू गैस की खबर भी है. आप सब घरों में हो या फिर कहीं निकले हो चिंता हो रही है आप सबकी.


अभिषेक की चिंता दूर करते करते ही हम श्रीनगर के बीच बाजार यानी कि लाल चौक आ गये थे. बाजार में रोज की तरह ही भीड़-भाड़ और चहल पहल थी. कपड़ों से लेकर सूखे मेवों की दुकानों पर टूरिस्ट टूटे पड़े थे. लगातार आ रहे फोनों के बीच में अब हमें भी अपनी और अपनों की चिंता होने लगी थी. श्रीनगर में अपने मित्र आसिफ को फोन लगाया और कहा, यार क्या गड़बड़ चल रही है तेरे शहर में? उधर से वहीं बेफिकी वाला जवाब तू छोड़ ना, घूम जहां घूमना हो यहां तो ये चलता रहता है. टूरिस्ट को कोई कुछ नहीं कहता ना लोकल के लोग ना आर्मी के सैनिक. थोड़ा बहुत प्रदर्शन हुआ था यासीन मलिक के घर के बाहर निपट गया. तू तो हमारे स्वर्ग के मजे ले जहां चप्पे-चप्पे पर सैनिक तैनात है. ये कहकर उसने फोन रख दिया मगर आखिरी बात कलेजे में उतर गई.


लोग कहते हैं कश्मीर स्वर्ग हैं तो इतना अशांत क्यों हैं और ये अशांति भी कितने सालों तक चलेगी? इसका जवाब हमारे ड्राइवर नासिर हुसैन ही देता है जो बातों में गर्व से बताता है कि हमारे पुरखे तो राठौर थे धर्म परिवर्तन कर रठेर हुए हैं. वो कहता है जब तक भारत-पाकिस्तान दोस्ती नहीं करेंगे हमारे यहां कभी शांति नहीं हो सकती. हमारे बच्चे कभी सुरक्षित नहीं रह सकते. इस पर हम हंसकर कहते थे कि भाई कोई और रास्ता बताओ शांति का ये रास्ता तो संभव ही नहीं है मजहब के नाम पर बंटवारे से अलग हुए भारत पाकिस्तान कभी दोस्त हो ही नहीं सकते.


ये सारी बातें करते हुए हम श्रीनगर के डाउनटाउन में आ गये थे. अंधेरा गहरा गया था मगर बाजार की छोटी-छोटी दुकानों में लोगों की आवक जावक जारी थी. हमें तो बहुत कुछ हमारे पुराने भोपाल जैसा ही लग रहा था. अलग था तो हर चौराहे पर बख्तरबंद गाडियों के साथ सतर्क खड़े सैनिक. संकरी गली से चलते हुए हम अपने मेजबान शब्बीर अहमद के घर आ गये थे जिन्होंने हमें आज कश्मीरी खाना खिलाने घर पर बुलाया था. शब्बीर भाई परंपरागत होटल व्यवसायी हैं और बेहद खुशमिजाज इंसान. घर क्या था हर तरफ लकड़ी से बना सुंदर सा आशियाना जहां बीच के कमरे में बिछे कालीन पर दरस्तखान बिछाकर हम कश्मीरी वजवान परोसा जा रहा था. 
तशनारी में हाथ धुलने के बाद कांसे और पीतल से बने भारी बर्तनों में रोगन जोश, राबता, सींक कबाब, के साथ कश्मीरी दम आलू, मसूर की दाल, मटर पनीर के साथ कश्मीरी रोटी और चावल थालियों में डाल दिया गया था. तकरीबन पंद्रह से ज्यादा लोग उस कमरे में एक साथ बैठकर खाना खा रहे थे. शब्बीर की पत्नी ने बताया कि हमारे यहां कश्मीरी दावतों में ऐसा ही होता है जब एक साथ एक थाली में चार से छह लोग खाते हैं. कश्मीरी बजवान में तीस से ज्यादा खाने के आइटम होते हैं जिनमें से लोग अपनी हैसियत के मुताबिक खिलाते हैं. आइटम की कमी तो यहां पर भी नहीं थी नया निराला स्वाद बात करने की इजाजत तो नहीं दे रहा था मगर फिर पूछ बैठे कश्मीर में हालत सामान्य कब होंगे? जवाब शब्बीर भाई ने चावल में रोगन जोश को मिलाते हुए दिया जब तक यहां ईमानदारी से चुनी सरकार नहीं आयेगी शांति की उम्मीद ना करिये. 


नये एलजी साहब यानिकी लेफ्टिनेंट गवर्नर साहब अच्छे हैं मगर उनसे हर कोई नहीं मिल सकता. अफसरशाही में लोग परेशान होते रहेंगे जनता को सुकून नहीं मिलेगा तो दहशतगर्द अवाम को भड़काते रहेंगे. राज्य का दर्जा हटाकर केंद्र शासित प्रदेश बनाने से लोग खुश तो नहीं हैं मगर खुशहाली आयेगी तो इन सारे मसलों से जनता का ध्यान हटेगा. इसमें कोई शक नहीं कि कश्मीर हमारी सरकारों की गलतियों की अनंत गाथा है मगर जनता सामान्य हालत चाहती है जहां पर सैनिक कम और पर्यटक ज्यादा हो. अब हम भी गर्मागर्म राजनीतिक चर्चा को भुलाकर कुरकुरे कश्मीरी केक, गुलाब जामुन और गाजर के हलवे में फोकस कर चुके थे. कश्मीर में और क्या हो रहा है अगले किस्से का इंतजार करिये.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)