कांग्रेस (Congress) के कद्दावर नेताओं में शुमार रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल  (Kapil Sibal) के पार्टी छोड़ देने से कांग्रेस को तो बड़ा झटका लगा है लेकिन वहीं समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने चैन की सांस ली है कि पार्टी में चल रही अंदरुनी कलह अब खत्म हो जाएगी और आज़म खान (Azam Khan) की नाराजगी भी दूर हो जाएगी.

  


दरअसल, आज़म खान ने ही ये सुझाया था कि सिब्बल को राज्यसभा भेजने में सपा को मदद करनी चाहिए. इसकी वजह भी है क्योंकि सिब्बल ने ही आज़म खान का केस लड़कर उन्हें सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत दिलाने में अहम भूमिका निभाई है. लिहाज़ा, आज़म चाहते थे कि सिब्बल को सपा की तरफ से राज्यसभा भेजकर ये अहसान उतारा जाए.


आजम खान को मनाने में पार्टी को मिली कामयाबी
दरअसल, सपा ने सिब्बल को राज्यसभा भेजने का दांव खेलकर एक साथ कई सियासी तीर साधे हैं. अगर सपा अपने कद्दावर मुस्लिम नेता आजम खान की यह पैरवी मानने से इनकार कर देती, तो आज़म के पार्टी छोड़कर जाने का खतरा था. इसलिए सिब्बल के बहाने ही सही लेकिन पार्टी ने पिछले दो साल से रुठे हुए आज़म को काफी हद तक मनाने में कामयाबी पा ली है. इसलिए माना जा रहा है कि पार्टी में चल रही अंदरूनी उठापटक पर बहुत हद तक अब लगाम लग जाएगी. 


जेल से बाहर आने के बाद जब आजम खान ने खुले तौर पर कपिल सिब्बल की तारीफ़ करते हुए ये कहा था कि उन्हें राज्यसभा जाना चाहिए, तभी ये माना जाने लगा था कि वे परोक्ष रुप से इसके लिए अपनी पार्टी पर दबाव बना रहे हैं. लेकिन अखिलेश यादव ने अपनी समझदारी ये दिखाई कि उन्होंने इस मुद्दे को अपनी प्रतिष्ठा का सवाल नहीं बनाया और आज़म की बात मानने में ही सियासी भलाई समझी. हालांकि बताया जाता है कि आज़म के दिए सुझाव पर मुलायम सिंह यादव ने भी फौरन अपनी सहमति दे दी थी और अखिलेश को भी यही समझाया गया कि वे इस मामले में ज्यादा उलझे नहीं.


राजनीति के चतुर खिलाड़ी हैं सिब्बल
पहले ये कयास लगाए जा रहे थे कि सिब्बल कांग्रेस छोड़कर सपा में शामिल होंगे और फिर सपा उम्मीदवार के तौर पर ही राज्यसभा जाएंगे. लेकिन सिब्बल कानूनी दांव-पेंचों के माहिर होने के साथ ही राजनीति के भी चतुर खिलाड़ी हैं. सपा में शामिल होकर वे अपनी इमेज पर 'दलबदलू' होने का लेबल चस्पा नहीं करवाना चाहते थे. लिहाज़ा, उन्होंने रास्ता ये निकाला कि वे निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नामांकन दाखिल करेंगे और सपा उन्हें अपना समर्थन देकर उच्च सदन भेजने का रास्ता सुनिश्चित करेगी. अब सदन में उनकी पहचान सपा सदस्य के तौर पर नहीं बल्कि एक निर्दलीय सदस्य के रुप में होगी. किसी जमाने में मशहूर वकील राम जेठमलानी भी इसी तरह से राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित होते थे. वे निर्दलीय उम्मीदवार के बतौर नामांकन भरते थे लेकिन शिव सेना के समर्थन से राज्यसभा के लिए चुन लिए जाते थे.


बुधवार को लखनऊ में अपना नामांकन दाखिल करने के बाद सिब्बल ने कहा कि मैंने 16 मई को ही कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. सिब्बल ने कहा कि संसद में एक स्वतंत्र आवाज होना महत्वपूर्ण है. अगर एक स्वतंत्र आवाज बोलती है तो लोग मानेंगे कि यह किसी राजनीतिक दल से नहीं है.इसीलिये सिब्बल ने स्पष्ट किया कि "मैंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन भरा है और मैं अखिलेश जी का धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने हमें समर्थन दिया है.'


कांग्रेस के "जी-23" का हिस्सा थे सिब्बल
बता दें कि सिब्बल, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता होने के बावजूद उन 23 असंतुष्ट नेताओं के समूह "जी-23" का हिस्सा थे, जिन्होंने पार्टी के नेतृत्व और संगठन को पूरी तरह से बदलने का आह्वान किया था. वह हाल के हफ्तों में गांधी परिवार के नेतृत्व की आलोचना के बारे में भी मुखर रहे थे. उनके इस्तीफे को लेकर सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कहा है कि कपिल सिब्बल बड़े नेता रहे हैं. इसलिए एक सीट से वे राज्यसभा जाएंगे. वहीं कपिल सिब्बल के अलावा दो अन्य सीटों पर पार्टी ने जावेद अली खान (Javed Ali Khan) और डिंपल यादव (Dimple Yadav) को राज्यसभा भेजने का फैसला किया है.


पिछले पांच महीनों में पांच नेता कांग्रेस का 'हाथ' छोड़ चुके हैं. सिब्बल से पहले पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रमुख सुनील जाखड़ (Sunil Jakhar),गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल (Hardik Patel),पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार (Ashwini Kumar) और आरपीएन सिंह (RPN Singh) भी पार्टी को अलविदा कह चुके हैं. इसलिये बड़ा सवाल है कि 2024 के लोकसभा चुनाव आने तक औऱ कितने नेता कांग्रेसी जहाज़ से कूदने वाले हैं?


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)