आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भारत अगले 20 से 30 साल में विश्व गुरु बन जाएगा. ऐसा बोलकर उन्होंने दुनिया की बदलती हुई परिस्थिति में भारत की भूमिका की ओर ध्यान आकृष्ट किया है. इसमें तीन-चार महत्वपूर्ण पक्ष हैं. भारत के विश्व गुरु बनने का तात्पर्य ये समझना चाहिए कि भारत के दर्शन की, भारत के जीवन पद्धति की और भारत के आध्यात्म की उपयोगिता मानव हित में दुनिया को समझ में आना. उसी को विश्व गुरु के रुप में हम देखते हैं.


पिछले 200 सालों से और विशेष कर द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से जब आधुनिकता के नाम पर दुनिया आगे बढ़ी, उसमें जब संकट आया, भारत ने अपने परिवार व्यवस्था को काफी हद तक बचाया है. ऐसे समय में जब दुनिया के लोग व्यक्तिवाद में त्रस्त हैं, उसके कारण एक सामाजिक और सांस्कृतिक कठिनाईयां हो रही हैं, उस स्थिति में भारत की परिवार व्यवस्था की ओर देख रहे हैं. दूसरी ओर भारत के लोग भी अपने परिवार व्यवस्था पर पश्चिम की ओर जा रहे थे, वे वापस आकर प्राचीन परिवार व्यवस्था की ओर जा रहे हैं.



भारत का हो रहा दुष्प्रचार, पीएम ने भी किया आगाह


दूसरा, सामुदायिक जीवन का महत्व पूरी दुनिया में क्लब से रूप में और ऐसे आधुनिक प्रतिष्ठानों के रूप में हुआ, जो मनुष्य को शांति और धैर्य और क्षीर व आचरण नहीं दिखाकर मनुष्य के मन को कई दिशाओं में लेकर जाता है. और मनुष्य जिसकी खोज करता है वो नहीं मिल पाएं, चाहे वो चीन हो, रुस हो या फिर अमेरिका या फिर यूरोप के देश हो. ऐसी परिस्थिति में भारत का जो सामुदायिक जीवन में, जिसमें सत्संग का बड़ा महत्व है, सामुदायिकता का बड़ा महत्व है, जो कोविड काल में हमने देखा कि भारत में दवा के साथ-साथ सामुदायिक जीवन के कारण लोगों की जान को बचाया और कोविड के संकट पर विजय पाया.  इससे पूरी दुनिया को भारत की इस सामुदायिक व्यवस्था की ओर ध्यान खींचा है. 


तीसरा जो भारत में हिन्दू जीवन पद्धति है, जिस जीवन पद्धति में अनेक प्रकार की धाराएं हैं, जिसमें बौद्ध, जैन और अनेक प्रकार की सूक्ष्म धाराएं चलती रहती हैं, उस विविधता को कैसे संजो कर रखा जाता है, और उस विविधता के बीच में कैसे जीवन एक राष्ट्र में शताब्दियों से चलता आ रहा है, पहले तो उस विविधता को पहचान का रूप देकर उसे तोड़ने की कोशिश की, जो अभी भी एक बड़ा वर्ग कर रहा है. जिसकी ओर मोहन भागवत जी ने ध्यान दिलाया है कि इस प्रकार के दुष्प्रचार हो रहा है. भारत के पीएम मोदी ने भी बार-बार ध्यान दिलाया है कि बाहर की कुछ ताकतें भारत को तोड़ना चाहती हैं.


विविधता का सर्वोच्च महत्व


बार्कनाइजेशन ऑफ इंडिया ने भारत को टुकड़ों-टुकड़ों में बांटों, जैसे भाषा-बोली, खान-पान, रहन-सहन एवं सूक्ष्म संस्कृतियां, इसे उन्होंने पहचान के रूप में देखा है, लेकिन हमारी पहचान है एक दूसरे को सौहार्द के साथ मिलकर जैसे एक राष्ट्र जीवन पद्धति बनाते हैं, उसे हिन्दू जीवन पद्धति कहते हैं. इसमें विविधता का सर्वोच्च महत्व है. विविधता का संरक्षण करना और नई विविधता का सुस्वागत करना. 


चौथी बात जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है वो ये कि भारत जिसमें सत्य और अहिंसा जिसने आजादी के आंदोलन में बड़ा सहयोग किया, पूरी दुनिया ने देखा साम्राज्यवाद को इससे परास्त होते हुए, वह भारत के आध्यात्म के मूल में है. ओम शांति बोलना ये सिर्फ शाब्दिक चीज नहीं बल्कि हमारी जीवन पद्धति का हिस्सा है. 


भारत के खिलाफ कौन कर रहा दुष्प्रचार?


भारत आर्थिक रुप से तेजी के साथ समृद्धि की ओर  बढ़ रहा है. सांस्कृतिक और सामाजिक चेतना का तभी महत्व होता है जब आप आर्थिक रुप से समृद्ध हैं. जैसे ब्रिटिश राज के दौरान हमारी आर्थिक हालत दयनीय थी. उन्होंने हमारे सभी ग्रंथों का उपयोग किया, उसका अनुवाद भी किया, अनुवाद करके पढ़ा भी, यानी हमसे ज्ञान तो लिया लेकिन हमारी पहचान को उन्होंने स्वीकार नहीं किया. हमारी पहचान को उन्होंने निम्न स्तर पर लेकर जाने की कोशिश की.


इसलिए जब राष्ट्र समृद्ध होता है तो उसकी सामाजिक, सांस्कृतिक चेतना को भी पूरी दुनिया स्वीकार करती है. भारत की जो समृद्धि बढ़ रही है, ये चीन सहित यूरोप को भी नापसंद है. अमेरिका को भी नापसंद है. जो भारत को बाजार के रुप में देखना चाहते थे, आज भारत में बाजार ढूंढ रहा है. भारत में मेक इन इंडिया बढ़ रहा है. भारत के लोगों में एक प्रतिस्पर्धा बढ़ी है. इस कारण से महानगरीय कुलीन जो लंदन, पेरिस में, मेलबर्न बैठे हुए हैं, जो छोटे मगर प्रभावी वर्ग है, ये लोग भारत के मार्क्सवादी, नेहरूवादी लोगों के साथ मिलकर जो उन पर पराश्रित हैं, भारत के विकास के बारे में दुष्प्रचार कर रहे हैं.


[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है]