आप मस्जिद-मंदिर से लाउड स्पीकर उतारने की सियासत में उलझे रहिये,ये सोचे बगैर कि देश कितने बड़े कोयला संकट की तरफ बढ़ रहा है.अगर केंद्र सरकार ने इसका तत्काल कोई उपाय नहीं निकाला,तो दिल्ली समेत देश के कई राज्यों पर आने वाले दिनों में बिजली संकट का जबरदस्त खतरा मंडरा रहा है.


पिछले दो -तीन दिनों में देश के विभिन्न राज्यों के लोगों को घंटों तक हुई बिजली कटौती के बहाने इस संकट का करंट भी जरुर लगा होगा. लेकिन फिर भी अपनी सरकारों से ये पूछने की हिम्मत कोई नहीं कर पाता कि गर्मी आने से पहले ही कोयले का बंपर स्टॉक करने से सरकार को आखिर कौन-सी ताकत रोकती है? और विदेशों से ऐन वक्त पर कोयला आयात करने के पीछे आखिर किसे सबसे ज्यादा व्यापारिक फायदा होता है? सरकार के दावे अपनी जगह पर हैं लेकिन हकीकत ये है कि देश के 165 बड़े थर्मल पॉवर प्लांट में से 55 यानी 33 फीसदी के पास 10 प्रतिशत का या उससे भी कम कोयले का स्टॉक बचा है.


इस संकट का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि देश की राजधानी के अस्पतालों और मेट्रो रेल को 24 घंटे बिजली आपूर्ति करने वाली दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं कि अगर केंद्र सरकार ने कोयले का स्टॉक जल्द नहीं दिया,तो कुछ नहीं कह सकते कि दिल्ली को कब सम्पूर्ण ब्लैक आउट का सामना करना पड़ जाये. ये बात दिल्ली के ऊर्जा मंत्री सत्येंद्र जैन ने कही है ,जिसे हल्के में नहीं लिया जा सकता. केंद्र और राज्य में अलग-अलग पार्टी होने की सियासी लड़ाई अपनी जगह है लेकिन ये एक ऐसा नाजुक मसला है,जिस पर केंद्र को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सोचना भी होगा और राजधानी होने के नाते इस संकट से निपटने का तत्काल समाधान भी करना होगा.


गर्मी का मौसम तो हर साल अपना असर दिखाता ही है,कभी कम तो कभी ज्यादा लेकिन सरकार में बैठे नीति निर्माताओं की तो जिम्मेदारी ही यही होती है कि वे हर खतरे से निपटने का आपातकालीन प्लान पहले से ही तैयार रखें,ताकि एन वक़्त पर लोगों को तकलीफ़ झेलने पर मजबूर न होना पड़े.दिल्ली समेत देश के कई राज्य भीषण गर्मी की चपेट में हैं और मौसम विभाग ने कुछ राज्यों के लिए ऑरेंज अलर्ट जारी करके चेता दिया है कि गर्मी अभी अपना कहर बरपाने वाली है.जाहिर है कि इस मौसम में बिजली की डिमांड जरुरत से कहीं गुना ज्यादा बढ़ जाती है लेकिन उसे पूरा कर पाना किसी भी राज्य की सरकार के लिये इसलिए मुश्किल हो जाता है कि वो उस अनुपात में उतनी बिजली का उत्पादन ही नहीं कर पाती.इसमें सबसे बड़ा रोड़ा होता है,उस अनुपात में कोयला न मिल पाना जो कि केंद्र देता है और उसने हर राज्य की जरुरत के मुताबिक उसका कोटा तय कर रखा है.


अब जरा सोचिये कि हर रोज पैदा होने वाली बिजली से ज्यादा उसकी डिमांड बढ़ जाये,तो किसी भी राज्य सरकार के पास ऐसी कोई जादुई छड़ी नहीं है कि वो चार-छह घंटे की बिजली कटौती करने से खुद को रोक पाये.ऐसी सूरत में हर राज्य के पास एक ही चारा बचता है कि वह केंद्र से औऱ ज्यादा कोयला देने की गुहार लगाए.हो सकता है कि बीजेपीशासित राज्यों को इसके लिए केंद्र को पत्र लिखने की नौबत ही न आती हो लेकिन विपक्षशासित राज्यों के पास तो इसके सिवा और कोई दूसरा रास्ता ही नहीं बचता है.


कोयले के संकट को लेकर दिल्ली सरकार के ऊर्जा मंत्री सत्येंद्र जैन ने आपातकालीन बैठक करने के बाद केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखकर इस हकीकत को बताया है कि बिजली आपूर्ति करने वाले विभिन्न थर्मल स्टेशनों में इस समय कोयले की बहुत ज्यादा कमी है.लिहाज़ा, दिल्ली को तत्काल कोयले का स्टॉक नहीं मिला,तो आवश्यक सेवाओं के लिए भी 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराना नामुमकिन हो जायेगा. दरअसल,राजधानी में नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन (NTPC) के दादरी-II और झज्जर (अरावली) दोनों पॉवर प्लांट्स मुख्य रूप से दिल्ली में बिजली की जरुरत को पूरा करने के लिए ही स्थापित किए गए थे. लेकिन इन पॉवर प्लांट्स में कोयले का बेहद कम स्टॉक बचा है,जबकि NTPC केंद्र के अधीन है.अब वहां कोयले की कमी को दूर करना किसका काम है,ये बताने की जरुरत नहीं रह जाती.


दिल्ली को मुख्य रूप से पांच पावर प्लांट के जरिये बिजली मिलती है.वहां कोयले के स्टॉक के ताजा हालात पर अगर गौर करेंगे,तो समझ जाएंगे कि स्थिति कितनी ज्यादा खराब होने वाली है.दादरी- II में महज एक दिन का जबकि ऊंचाहार  पावर प्लांट में सिर्फ दो दिन का कोयले का स्टॉक बचा है. इसी तरह कहलगांव में साढ़े तीन दिनों का तो फरक्का के प्लांट में 5 दिनों का स्टॉक बचा है.सिर्फ झज्जर (अरावली) ही ऐसा इकलौता पावर प्लांट है, जहां  7-8 दिनों के कोयले का स्टॉक बचा है. अब बड़ा सवाल ये है कि गर्मी के हर सीज़न में कोयले की इस कमी के बहाने अपने हाथ काले करते हुए कौन उठा रहा है इसका सबसे बड़ा फायदा?



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