कांग्रेस ने पांच साल बाद हिमाचल प्रदेश का किला दोबारा फतह तो कर लिया है लेकिन उसके सामने सबसे बड़ा संकट ये खड़ा हो गया है कि वो अब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर किसे बैठाये. मुख्य दावेदार तो तीन हैं लेकिन इनमें से एक को चुनना और बाकी दोनों की नाराजगी दूर करते हुए उन्हें पार्टी से जोड़े रखने की कवायद तो चुनाव जीतने से भी ज्यादा मुश्किल नज़र आ रही है. इसलिये कांग्रेस में चल रही इस अंदरुनी लड़ाई को बीजेपी सिर्फ देख ही नहीं रही है बल्कि वो इंतज़ार कर रही है कि बग़ावत कुछ ऐसी हो कि वो दोबारा सत्ता हासिल कर ले.


बेशक कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि वो अनुशासन और अपने फ़रमान को लागू करवाने के लिहाज से 42 बरस पहले जन्म लेने वाली बीजेपी से काफी पिछड़ी हुई नजर आती हुई दिखती है. कैप्टन अमरिंदर सिंह को नाराज़ करके पंजाब का किला गँवाने वाली कांग्रेस  के लिए अब हिमाचल की जीत भी कांटों भरा ताज ही लेकर आई है. वह इसलिये कि मुख्यमंत्री का नाम तय करने का फैसला उसके लिये गले की हड्डी बनता हुआ नजर आ रहा है. पार्टी आलाकमान को अब तक ये समझ नही आ रहा है कि वो ऐसे किस चेहरे को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाने का एलान करे कि बाकी दो गुट भी उस पर रजामंद हो जाएं और पार्टी के दो फाड़ होन का कोई खतरा भी बाकी न रहे.


दरअसल,राजनीतिक लिहाज से हिमाचल प्रदेश एक  छोटा पहाड़ी राज्य है लेकिन कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी मुश्किल ये खड़ी हो गई है कि वहां बीजेपी की तरह से मुख्यमंत्री पद का कोई एक नहीं बल्कि कई दावेदार हैं. पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे दिवंगत वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह ने अपनी दावेदारी को सबसे ज्यादा मजबूती से आगे इसलिये कर रखा है कि वह राज्य की मंडी सीट से सांसद होने के साथ ही पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष भी है. लेकिन कांग्रेस के सिर पर जीत का ताज पहनाने वालों में अपना भरपूर योगदान देने वालों में पूर्व प्रदेश कांग्रेस प्रमुख सुखविंदर सिंह सुक्खू और विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे मुकेश अग्निहोत्री भी शुमार हैं,जो सीएम बनने की रेस में शामिल हैं. हालांकि विधानसभा में विपक्ष के उपनेता रहे हर्षवर्धन चौहान भी अपनी दावेदारी ठोंक रहे हैं.


कांग्रेस नेतृत्व किस आधार पर क्या फैसला लेगा,ये हम नहीं जानते. लेकिन इस पहाड़ी राज्य के सियासी जानकार कहते हैं कि हिमाचल में कांग्रेस का मतलब ही वीरभद्र सिंह हैं. यानी उनके दुनिया से विदा हो जाने के बाद भी अगर लोगों ने कांग्रेस के प्रति इतना भरोसा जताया है,तो उसका सारा श्रेय वीरभद्र को ही जाता है कि उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए भी पार्टी को जमीनी स्तर पर इतना मजबूत करने में कामयाबी हासिल की. कांग्रेस के लिये धर्म संकट ये पैदा हो गया है कि अब वह इन तीन प्रमुख दावेदारों में से किसे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाये. हालांकि प्रतिभा सिंह सबसे प्रबल दावेदार है लेकिन उनको कमान सौंपते ही बीजेपी को और ज्यादा हमलावर होने का मौका मिल जाएगा कि कांग्रेस तो है ही परिवारवाद की पार्टी और वो इसको बढ़ावा देने में यकीन रखती है.


हालाँकि पिछले दिनों ही कांग्रेस के एक गुट ने शीर्ष नेतृत्व को चिट्ठी लिखकर मांग की थी कि चुने गए विधायकों को ही मुख्यमंत्री चुनने का अधिकार दिया जाए. माना जा रहा है कि वह पत्र कैंपेन कमिटी के अध्यक्ष और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू गुट की ओर से लिखा गया था. हिमाचल से लेकर दिल्ली के सियासी गलियारों में चर्चा तो ये है कि यह चिठ्ठी भी प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह की दावेदारी को रोकने के लिए लिखी गई थी. जबकि हाल ही में प्रतिभा सिंह ने इशारों-इशारों में लंबे समय तक सूबे के सीएम रहे अपने पति वीरभद्र सिंह की विरासत का जिक्र करते हुए आलाकामान के आगे अपने परिवार की दावेदारी पेश कर दी थी.


वैसे तो सीएम बनने की रेस में फिलहाल प्रतिभा सिंह और सुखविंदर सिंह सुक्खू ही सबसे प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं. बताते हैं कि वीरभद्र सिंह और सुक्खु के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा है, जो आज भी सिंह परिवार और सुक्खु के बीच जारी है. इनके अलावा वीरभद्र सरकार में मंत्री रहे मुकेश अग्निहोत्री और सुधीर शर्मा भी इस पद के दावेदार माने जा रहे हैं.


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