हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के विधायक बेटे कुलदीप बिश्नोई ने राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस से गद्दारी करते हुए 'क्रॉस वोटिंग' करके अजय माकन को हरवा दिया. जाहिर है कि ऐसी सूरत में कांग्रेस को उन्हें बाहर का रास्ता ही दिखाना था, सो दिखा भी दिया. लेकिन सवाल उठता है कि बिश्नोई ने पार्टी के खिलाफ जाकर बीजेपी समर्थित एक निर्दलीय उम्मीदवार को वोट देने का फैसला आखिर क्यों लिया?


इसके पीछे कोई बड़ा लालच था, या कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष न बनाये जाने से पार्टी के प्रति नाराजगी थी या फिर आय से अधिक संपत्ति के मामले की वह तलवार थी, जो उनके सिर पर अभी भी लटकी हुई है? इसकी सही वजह तो वे ही जानते होंगे लेकिन उन्होंने कांग्रेस को ऐसा बड़ा झटका दिया है, जो शीर्ष नेतृत्व पर तमाचा पड़ने के साथ ही ये सवाल भी उठाता है कि पार्टी आलाकमान अपने किसी नेता की नाराजगी को वक़्त रहते समझने और उसे दूर करने से आखिर अक्सर चूक क्यों जाता है?  


सियासी गलियारों में चर्चा है कि हरियाणा में कांग्रेस की लुटिया डुबोने वाले बिश्नोई जल्द ही बीजेपी का दामन थाम सकते हैं. कांग्रेस से बाहर होने के बाद वे कोई भी फैसला लेने के लिए आज़ाद हैं लेकिन ये हमारी राजनीति की उस तस्वीर की हक़ीक़त बयान करता है कि अब यहां नेताओं का वफादारी से कोई वास्ता नहीं रह गया है और उनका स्वार्थ ही सबसे पहली व बड़ी प्राथमिकता बन चुकी है. सोनिया गांधी ने बिश्नोई को कांग्रेस कार्य समिति के विशेष आमंत्रित सदस्य समेत पार्टी की सभी जिम्मेदारियों से तत्काल प्रभाव से मुक्त कर दिया है. जाहिर है कि अब कांग्रेस हरियाणा विधानसभा के  अध्यक्ष से बिश्नोई की सदस्यता खत्म करने की भी सिफारिश करेगी. लेकिन उन्हें भला इसकी क्या परवाह होगी क्योंकि उन्होने अपना ये कदम बेहद सोच-समझकर और इससे होने वाले अगले फायदे को नाप तौल कर ही उठाया है. 


इसलिए नाराज चल रहे थे बिश्नोई 
अजय माकन के चुनाव हारने के तुरंत बाद उन्होंने जो ट्वीट किया है, उसकी भाषा से लगता है कि वे काफी दिनों से पार्टी से खफा थे और मानो बदला लेने के लिए राज्यसभा चुनाव का ही इंतज़ार कर रहे थे. माकन की हार के बाद बिश्नोई ने ट्वीट किया, 'फन कुचलने का हुनर आता है मुझे, सांप के खौफ से जंगल नहीं छोड़ा करते." लेकिन सवाल फिर वही है कि बिश्नोई ने आखिर क्रॉस वोटिंग क्यों की? बताते हैं कि कुलदीप बिश्नोई कांग्रेस आलाकमान से पहले से नाराज चल रहे थे. उनकी नाराजगी की सबसे बड़ी वजह थी हरियाणा के नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति. कुलदीप खुद प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें खुड्डे लाइन लगा दिया. आलाकमान ने हरियाणा की कमान उदय भान को सौंप दी, जिन्हें पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा का करीबी समझा जाता है.जबकि बिश्नोई को घोषित रूप से हुड्डा विरोधी खेमे का माना जाता है. यह टीस कहीं ना कहीं बिश्नोई के दिल में बनी रही और इसी का बदला उन्होंने राज्यसभा में वोटिंग के दौरान लिया. एक वोट से कांग्रेस का खेल गड़बड़ हो गया और कार्तिकेय शर्मा के हाथों, अजय माकन चारों खाने चित्त हो गए.


लेकिन सोचने वाली बात ये भी है कि क्या यही सिर्फ एक वजह थी या खेल कुछ और बड़ा ही था. वैसे तो कुलदीप की बीजेपी नेताओं से  बढ़ती नजदीकियां किसी से भी छुपी नहीं हैं लेकिन पिछले कुछ अरसे में  हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से उनकी नजदीकी के चर्चे कुछ ज्यादा ही हुए हैं. राज्यसभा चुनावों से चंद दिन पहले उन्होंने खट्टर से मुलाकात करके पार्टी को ये संदेश दे दिया था कि उनके दिलों-दिमाग में क्या चल रहा है, लेकिन शायद कांग्रेस नेतृत्व ने सब जानते हुए भी उसे इस अंदाज में अनदेखा कर दिया कि जो होगा, देखा जायेगा. 


हालांकि बताते हैं कि इससे पहले भी कुलदीप इस साल की शुरुआत में खट्टर से मुलाकात करने  के जरिये कांग्रेस आलाकमान को चेता चुके थे कि अगर उन्हें सही सम्मान नहीं मिला तो वह बीजेपी के साथ जा सकते हैं. लेकिन चंडीगढ़ से लेकर दिल्ली के सियासी गलियारों में बिश्नोई के क्रॉस वोटिंग की सबसे बड़ी वजह को उनके खिलाफ दर्ज आय से अधिक संपत्ति के मामले से जोड़कर देखा जा रहा है. 


आय से अधिक संपत्ति का मामला
दरअसल, साल 2019 में आयकर विभाग ने कुलदीप बिश्नोई और उनके परिवार के ठिकानों पर छापेमारी की थी, जिसमें तकरीबन 200 करोड़ रुपए से अधिक की गुप्त विदेशी संपत्ति मिलने का पता चला था. उस वक़्त के अखबारों में छपी खबर के मुताबिक सीबीडीटी ने अपने बयान में कहा था कि छापेमारी में 200 करोड़ रुपए से अधिक के विदेशी धन का खुलासा हुआ है, इसके साथ ही 30 करोड़ की टैक्स चोरी का भी पता चला है. कुलदीप के खिलाफ वह मामला अभी भी कोर्ट में लंबित है. शायद यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें विदेश जाने की अनुमति भी नहीं दी थी.


लिहाजा,कांग्रेस के ही कुछ नेता अब ये आरोप लगा रहे हैं कि उसी मुकदमे के डर और उसमें बरी किये जाने को लेकर ही बिश्नोई ने सत्तापक्ष से सौदेबाजी की और बीजेपी व जेजेपी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार कार्तिकेय शर्मा के पक्ष में अपना वोट डाला.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)