इलाहाबाद हाईकोर्ट  ने ज्ञानवापी परिसर के सर्वेक्षण के खिलाफ अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी की याचिका को खारिज कर दी. हाईकोर्ट ने सर्वेक्षण का आदेश पारित करते हुए कहा कि एएसआई के इस आश्वासन पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है कि ढांचा क्षतिग्रस्त नहीं होगा, लेकिन साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि सर्वेक्षण के लिए किसी तरह की खुदाई नहीं का जानी चाहिए.


जिन लोगों को आज भी अपनी न्याय व्यवस्था में विश्वास है, उन सभी को ये भरोसा था कि हाईकोर्ट सर्वे की इजाजत देगा. हमेशा भरोसा था कि कोर्ट ये कहेगा कि जाइए मालूम कीजिए कि वहां पर क्या-क्या था और फिर क्या बना दिया गया. सारे तथ्य सर्वे में आने चाहिए. एक सनातनी होने के नाते हाईकोर्ट के फैसले से मैं बहुत खुश हूं.


मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट चले जाएं, लेकिन उनको ये भी समझना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट से ऊपर भी ऊपर वाले का दरबार लगता है. क्या इनके धर्म में इसकी इजाजत है कि काफिर जो लोग हैं, उनके पूजा स्थल पर आप भी इबादत कीजिए. ये उनको सोचना चाहिए. उनका तो मजहब ही इस बात की इजाजत नहीं देता है.


हमने एक पैटर्न देखा है कि जब-जब आप किसी के ऊपर हावी होना चाहते हैं तो सबसे पहले उसके धर्म, उसकी संस्कृति और उसकी शिक्षा पर आप प्रहार करिए. उन सबको नष्ट कर दीजिए, जो भी इस्लामिक शासकों ने यहां शासन किया, इसी पैटर्न पर काम किया. आजादी के बाद भी राजनीतिक प्रश्रय मिलने की वजह से कुछ लोग उस तरह का एजेंडा चलाते रहे.



टीवी पर आम जनता लगातार देख रही है कि वहां पर स्वास्तिक का निशान क्या कर रहा है. त्रिशूल का निशान....कमल का निशान वहां पर क्या कर रहा है. औरंगजेब ने 18 अप्रैल 1659 को जो फरमान दिया था कि जो बचा हुआ काशी विश्वनाथ मंदिर है, उसको भी ध्वस्त करा दो. ये फरमान एशियाटिक सोसायटी ऑफ कलकत्ता में आज भी सुरक्षित है. उसे जाकर उन लोगों को देखना चाहिए जो इस सर्वे का विरोध कर रहे हैं. अगर फिर भी समझ नहीं आता है तो मुस्तेक खान ने जो किताब लिखी थी 'मासर-ए-आलमगिरी', उसे पढ़ लें.  उस किताब में पूरे ध्वंस का वर्णन है.



भारत के जो टुकड़े हुए, वो धर्म के आधार पर ही हुए. हमारे पास तो एक तिहाई ही रह गया. बाकी पाकिस्तान और फिर बांग्लादेश बन गया. यहां पर जो गजवा-ए- हिंद के एजेंट बैठे हुए हैं, वो सिर्फ अपना एजेंडा चला रहे हैं. हमारे यहां जो एक संविधान है, न्याय व्यवस्था है और जो मौजूदा सरकार है, वो किसी के साथ अन्याय नहीं होने देगी.


आप बोल रहे हैं कि यहां 400 वर्षों से नमाज पढ़ी जाती है, अगर मैं ज्ञानवापी के बारे में बोलती हूं तो लिङ्ग पुराण में इसका जिक्र है. स्कन्द पुराण में जिक्र है. इसका मतलब है कि पौराणिक समय से वहां पर मंदिर स्थापित है. 400 वर्ष एक तरफ है और दूसरी तरफ पौराणिक समय है. इसी से समझा जा सकता है कि वहां पर मंदिर स्थापित है. द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ मंदिर अनादि काल से काशी में है. ये बात उन लोगों को समझ में नहीं आती है.


तुष्टीकरण की वजह से इनके हौसले बुलंद रहते आए हैं, लेकिन अब ऐसा नहीं होने वाला. ये कुछ भी बोल दें, तो ये संविधान का अधिकार है. वहीं अगर कोई हिंदू कुछ बोल दे, तो कोर्ट में मसला है, जैसे उदाहरण दिए जाने लगते हैं. कोर्ट अपने समय के हिसाब से फैसला करेगा तो क्या हिंदू अपने मुंह पर ताला लगाकर बैठ जाएं. संविधान जितना उनके लिए हैं, उतना हमारे लिए भी तो है.


जहां तक मैं भारतीय जनता पार्टी का प्रश्न उठाती हूं, तो लोग कहते हैं कि चुनाव है, इसलिए ये लोग ऐसी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं. हमने तो अपने मैनिफेस्टो में ये भी रखा था कि अयोध्या में राम लला का मंदिर बनना चाहिए. अनुच्छेद 370 हटना चाहिए, इसे भी रखा था. बीजेपी की चाहे केंद्रीय लीडरशिप हो या राज्य में हो, वो किसी के साथ अन्याय होते हुए नहीं देख सकती है. तुष्टीकरण की राजनीति बिल्कुल नहीं करना चाहते है, पर अन्याय भी नहीं सहेंगे.


सनातनियों में सब्र बहुत है. राम लला का मुकदमा 5 सौ वर्ष से ज्यादा हमने लड़ी. लेकिन कहते हैं न कि किसी के सब्र का इम्तिहान इतना भी मत लो कि बांध टूट जाए. जो गंगा-जमुनी तहजीब की बात करते हैं, उन्हें ये बात समझनी चाहिए. पाकिस्तान और अफगानिस्तान में कितने मंदिरों को संजो कर रखे गए हैं, ये लोग बताएंगे. आप भी भारत के नागरिक हो, हम भी भारत के नागरिक हैं.


अगर प्रेम भाव से रहना है तो कुछ कॉम्प्रोमाइजेज भी करने होते हैं. दादागिरी हर समय नहीं चलेगी. इंसानियत नाम की कोई चीज होती है. अक्सर परिवार में देखा गया है कि जो बड़ा बच्चा होता है, उसको छोटा बच्चा हमेशा दबाने का प्रयास करता है. कई बार माता-पिता छोटे बच्चे का साथ दे देते हैं.


यहां पर तो कांग्रेस, समाजवादी पार्टी जैसे राजनीतिक दल रहे हैं, जो हमेशा उन लोगों के साथ खड़े रहे हैं जो अपने आप को माइनॉरिटी कहते आए हैं.  ये नैरेटिव बनाया गया कि देश के संसाधनों  पर पहला हक़ इन लोगों का है. संविधान के मुताबिक हर नागरिक बराबर होते हैं, तो फिर ये नैरेटिव ही गलत है.


ये तो उनकी तरफ से आना चाहिए कि ज्ञानवापी मस्जिद बिल्कुल हट जानी चाहिए. अगर भाईचारे की बात करते हैं, तो ऐसा प्रस्ताव तो उनके तरफ से आना चाहिए. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो बात कही है वो बिल्कुल सही कही है. मुस्लिम समाज की तरफ से उस गलती को सुधारने के लिए एक मौका है. वहां पर एक भव्य मंदिर का निर्माण होना चाहिए. उनकी तरफ से ऐसा प्रस्ताव आएगा तभी तो एक उदाहरण वे स्थापित करेंगे.


ऑरिजिनल मंदिर तो वहीं पर था, जहां पर ये लोग सीढ़ियों पर चढ़ते है, वजू करते है. बगल में तो बना दिया गया. जो स्थान है, वो तो वापस मिलना चाहिए. मनमर्जी तो नहीं चलेगा न.


[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]