जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के पूर्व वरिष्ठ नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद ने बयान दिया है कि कुछ बीजेपी नेता कर रहे हैं कि कुछ मुसलमान बाहर से आए हैं और कुछ नहीं. कोई भी बाहर या अंदर से नहीं आया है. इस्लाम सिर्फ 1,500 साल पहले वजूद में आया था. हिंदू धर्म बहुत पुराना है. कुछ बाहर से आए होंगे लेकिन कुछ मुगल सेना में थे. भारत में अन्य सभी मुसलमानों ने हिंदू धर्म छोड़ दिया. इसका एक उदाहरण कश्मीर में पाया जा सकता है. 600 साल पहले कश्मीर में मुसलमान कौन थे? सभी कश्मीरी पंडित थे. उन्होंने इस्लाम अपना लिया. सभी इसी धर्म में पैदा हुए हैं.


ग़ुलाम नबी आज़ाद और बीजेपी की राजनीति


जिस तरीके से ग़ुलाम नबी आज़ाद का ये बयान सामने आया है, इसको समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना होगा. जम्मू-कश्मीर में पिछले 4 साल में माहौल बदला है.  गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस छोड़ने के बाद जम्मू-कश्मीर में अपनी पार्टी..डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी..का गठन किया. उसके बाद कई आला नेता कांग्रेस को छोड़कर ग़ुलाम नबी आज़ाद की पार्टी में शामिल हुए थे. लोगों के बीच  डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी को बीजेपी की दूसरी पार्टी कहा जाता था. ये भी कहा जा रहा था कि बीजेपी ने ग़ुलाम नबी आज़ाद को जम्मू-कश्मीर में इसलिए लॉन्च किया है कि वो यहां पर किसी भी तरीके से वोट तोड़ सकें, कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी को फायदा न हो. ये ग़ुलाम नबी आज़ाद के हाथों सीटें तोड़ने का काम करवाना चाहते थे.


ग़ुलाम नबी आज़ाद की बढ़ सकती है मुश्किलें


ग़ुलाम नबी आज़ाद का जिस तरीके से बयान आया है कि जितने भी भारत में मुसलमान हैं, वे पहले हिन्दू थे. बाहर से जो मुस्लिम आए थे, यहां पर जो मुगलों का शासन हुआ था, उसके बाद यहां पर मुसलमान शासन हुआ. कश्मीर की बात करें तो पहले यही कहा जाता था कि कश्यप ऋषि का जो कश्मीर था, उसमें पूरी तरह से सभी लोग हिंदू थे. वहां पर मुसलमान बाद में कन्वर्ट हुए. ग़ुलाम नबी आज़ाद का बयान उनको कहीं न कहीं मुश्किलों में डालता हुआ नजर आ रहा है. इसकी वजह से लोग आज़ाद से काफी नाराज हैं.



पिछले कई दिनों से देख रहे हैं कि डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी को छोड़ने के बाद कई लोग घर वापसी कर चुके हैं. ये लोग कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस को ज्वाइन कर चुके हैं. कहीं न कहीं ग़ुलाम नबी आज़ाद को लग रहा है कि अब वे अपनी सियासी ज़मीन को खोते जा रहे हैं. उन्होंने इस पहलू को ध्यान में रखकर ही ऐसा बयान दिया है.



हिंदू वोटों को लेकर राजनीति से बयान का संबंध


ग़ुलाम नबी आज़ाद की मंशा यही लगती है कि जम्मू-कश्मीर इस वक्त मुस्लिम बहुल राज्य है. यहां मुस्लिमों की संख्या ज्यादा है. इस वजह से जम्मू-कश्मीर में अब कहीं न कहीं हिंदू वोटों को लेकर सारी पॉलिटिक्स खेली जा रही है. ग़ुलाम नबी आज़ाद अपनी सियासी ज़मीन को वापस तलाशने की कोशिश कर रहे हैं. ग़ुलाम नबी आज़ाद जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले से आते हैं, जहां इस वक्त हिंदू वोटों की बहुलता है. कहीं न कहीं मुसलमानों को नाराज़ करके हिंदुओं को रिझाने का काम ग़ुलाम नबी आज़ाद कर रहे हैं.


बयान से ग़ुलाम नबी आज़ाद को फायदा नहीं


इस बयान से किसी भी तरह ग़ुलाम नबी आज़ाद को फायदा होते हुए नज़र नहीं आ रहा है क्योंकि यहां पर मुस्लिम वोट एकतरफा होता है और जो बंटता है, वो हिंदू वोट बंटता है. ग़ुलाम नबी आज़ाद के इस तरीके का बयान देने के बाद तो ज्यादा फायदा होने के आसार तो नहीं हैं, लेकिन हो सकता है कि इस बयान के बाद बीजेपी को किसी न किसी तरह से जम्मू-कश्मीर में फायदा हो.


बयान से बीजेपी को मिल सकता है फायदा


जिस तरीके से राहुल गांधी की लोकप्रियता बढ़ती हुई नज़र आ रही है, कहीं न कहीं जो लोग कांग्रेस को छोड़कर बाहर आए हैं, उनके लिए अब ये कहना मुश्किल होगा कि कांग्रेस को ग़ुलाम नबी आज़ाद के बयान से किसी तरह का कोई नुकसान होगा. हालांकि ये जरूर है कि इस वक्त लोग महंगाई, बेरोजगारी जैसे कई मुद्दे लेकर चल रहे हैं और इस बीच में ग़ुलाम नबी आज़ाद की ओर से इस तरह का बयान आने से बीजेपी को कहीं न कहीं फायदा जरूर मिलेगा, भले कांग्रेस को कोई नुकसान नहीं होगा. इन सबके बीच ग़ुलाम नबी आज़ाद अपनी सियासी ज़मीन खोते हुए नज़र आ रहे हैं.


ग़ुलाम नबी आज़ाद का जब से बयान आया है, हमारी कई लोगों से बात हुई है. उन लोगों का साफ कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संसद के अंदर और उसके बाहर तारीफ़ करना, एकदम से कांग्रेस को अलविदा कह कर नई पार्टी बनाना, तब से ग़ुलाम नबी आज़ाद के ऊपर एक टैग लगा हुआ है कि जम्मू-कश्मीर में वे बीजेपी की बी टीम हैं. कभी चोटी के नेताओं में गिने जाने वाले ग़ुलाम नबी आज़ाद का डाउनफॉल स्टार्ट हो चुका है.


5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 के हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में चुनाव नहीं हुए हैं. यहां का सियासी ताना-बाना हुआ है. अभी चुनाव को लेकर केंद्र से किसी भी तरह का बयान नहीं आ रहा है. जम्मू-कश्मीर में इस वक्त प्रमुख मुद्दे जो हैं, वे महंगाई की मार है, बेरोजगारी है. यहां सबसे बड़ा मुद्दा है राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदल देना. इस मसले पर चाहे बीजेपी हो या बाकी पार्टियां, सभी को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. लोग काफ़ी नाराज़ हैं.


बयान से कश्मीर में मुस्लिम समाज नाराज़


ग़ुलाम नबी आज़ाद के बयान को लेकर भी जो मुस्लिम समाज है, वो काफी नाराज़ नज़र आ रहा है. बयान के बाद ग़ुलाम नबी आज़ाद के खिलाफ़ कई तरह के वीडियो वायरल हो चुके हैं. ग़ुलाम नबी आज़ाद की हर तरफ निंदा की जा रही है. हो सकता है कि अगर ग़ुलाम नबी आज़ाद कश्मीर जाते हैं और रैली करते हैं, तो उनको किसी न किसी तरह की मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है.


जम्मू रीजन में बीजेपी को लेकर नाराजगी


जम्मू-कश्मीर में अभी तो चुनाव की बात नहीं है, लेकिन यहां के लोग बीजेपी से काफ़ी नाराज़ हैं क्योंकि यहां पर आए दिन कोई नया फरमान आते रहता है, कोई नई कार्रवाई होते रहती है. ख़ासकर जम्मू रीजन की बात करें तो इस रीजन में ये बात दिखाई दे रही है. अभी पिछले दिनों डिजिटल मीटर को हटाकर स्मार्ट मीटर लगाने के मुद्दे पर लोगों में नाराज़गी है. पठानकोट-जम्मू नेशनल हाईवे हैं, उसका एक पुल ढह चुका है, जिससे उसके ऊपर से ट्रैफिक बंद है, फिर भी टोल काटा जा रहा है. उसको लेकर भी यहां पर कई लोग नाराज़ हैं.


यहां पर बीजेपी के खिलाफ काफ़ी लोग नाराज़ नजर आ रहे हैं. सामने से कोई नहीं बोल रहा है, लेकिन पीठ पीछे, गुपचुप तरीके से लोग बीजेपी के खिलाफ़ हैं. किसी भी पार्टी को यहां पर फायदा होता हुआ नज़र नहीं आ रहा है क्योंकि विपक्षी की जितनी पार्टियां थी वो बिल्कुल यहां पर शांत होकर बैठी हुई हैं. बीजेपी अपनी सियासी ज़मीन को और मजबूत करने की कोशिश कर रही है, लेकिन लगता तो ये है कि अगर यहां पर चुनाव होता है, तो लोग इस बार काफी सोच-समझकर वोट करेंगे.


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