नया साल शुरू हुआ, लेकिन पाकिस्तान के लिए इस साल की शुरुआत अच्छी नहीं रही है. आज 11 लोग वहां नए साल का जश्न मनाते हुए हताहत हो गए. वहीं जमात-ए-इस्लामी (फ) के नेता फजलुर रहमान के काफिले पर प्राणघातक हमला हुआ. वहीं आतंकी हाफिज सईद के भी एक बम धमाके में मारे जाने की अपुष्ट खबरें आ रही हैं. इससे पहले इमरान खान के चुनाव लड़ने की संभावना को वहां के चुनाव आयोग ने ही पतीला लगा दिया है. सबसे बड़ा राजनीतिक सवाल तो फिलहाल पाकिस्तान में यही उठ रहा है कि अब, तेरा क्या होगा इमरान? इसके साथ ही आतंकवाद और खस्ता आर्थिक हालात से तो पाकिस्तान दो-चार हो ही रखा है. 


इमरान के दिन शायद नहीं बहुरें


यह सभी की जानी हुई बात है कि अप्रैल 2022 में जब इमरान खान को हटाया गया, तो उसके बाद से ही वह कानूनी दांवपेंच में उलझे हुए हैं. उनके हटने की वजह भी बहुत साफ थी कि उन्होंने सेना से सीधी टकराहट मोल ली थी. उनको चुनाव आयोग ने जो डिसक्वालिफाई किया है, वह लाहौर के रिटर्निंग ऑफिसर ने किया है. इमरान की दो असेंबली सीटें हैं, लाहौर 122 और मियांवाली जो पंजाब में है. उन्होंने अपनी पार्टी तहरीके-इंसाफ से नामांकन किया था और उनके दोनों नामांकन को रद्द कर दिया गया है. केवल इमरान का ही नहीं, उनके सहयोगी महमूद कुरैशी का नामांकन भी रिजेक्ट कर दिया गया है. उसका आधार यही बताया गया है कि तीन वर्ष का चूंकि उनका कन्विक्शन हुआ है, तो वह नामांकन के योग्य नहीं हैं और चुनाव रजिस्टर में भी एक मतदाता के तौर पर उनका नाम नहीं है.


ये पहले से ही तय था. अगर हम इसके उलट देखें तो नवाज शरीफ को किस तरह भ्रष्टाचार के आरोपों में जो अभियोजन हुआ था उन पर, उसे किस तरह हटाया गया. वो दो जगह से नामांकन भी कर चुके हैं, लड़ भी रहे हैं और उनका सब कुछ कानूनी भी कर दिया गया है. शाह मसूद को तो गिरफ्तार करने की भी खबरें आ चुकी हैं. पाकिस्तान 1947 से आज तक सेना से ही शासित है और जो भी हो रहा है, वह भी सेना की मर्जी से ही हो रहा है.



इमरान खान अभी भी लोकप्रियता में नंबर वन हैं और सेना नहीं चाह रही है कि वह मैदान में रहें. पहले तो उनके चुनाव चिह्न को ही प्रतिबंधित किया गया था, लेकिन फिर बाद में वह उनको अलॉट हो गया. उनकी पार्टी भी बैट चुनाव चिह्न के साथ मैदान में है, लेकिन इमरान के बिना वह कैसा प्रदर्शन करेगी, इसका अंदाजा लगाया ही जा सकता है. जेल में बैठकर उनको मीटिंग्स की भी इजाजत दी गयी है, लेकिन उनका जीतना मुश्किल है. आज तक कोई भी प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है और शायद यह चुनाव भी रद्द कर दिया जाए. 



पाकिस्तान बन गया है आतंकिस्तान


जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (फ) के नेता हैं फजलुर रहमान और उनके काफिले पर खैबर-पख्तूनख्वा में हमला हुआ. वहां पर जो नॉन स्टेट एक्टर्स हैं, जितने भी आतंकी गुट वहां काम कर रहे हैं, उन पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है. इमरान की जो दोनों सीटें हैं, आश्चर्य की बात है कि उन्हें जो विपक्षी उम्मीदवार दिया गया, वे भी नॉन-स्टेट एक्टर्स से ही थे. आजकल वे आतंकी गुट खुलकर राजनीतिक तौर पर काम कर रहे हैं. खैबर पख्तूनख्वा में भी काफी विरोध चल रहा है, सेना का. वहां कानून-व्यवस्था का पूरी तरह खात्मा हो चुका है और गंभीर सुरक्षा का कंसर्न बना है. इसलिए, कि वहां पाकिस्तान की सरकार का कोई नियंत्रण ही नहीं है. वहां मदरसों की लंबी शृंखला है और हरेक गुट का अपना मदरसा है. जैसे जेयूआइ (एफ) का अलग मदरसा है, लश्कर का अलग मदरसा है और वे अपने-अपने कमांडो तैयार कर आतंकी गुटों को सप्लाई करते हैं. 


राजनीतिक हालात बेहद डांवाडोल 


8 फरवरी को जो चुनाव पाकिस्तान में होनेवाले हैं, उसमें पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) गुट कोशिश करेगा कि आर्मी के माध्यम से वह सत्ता तक पहुंच बना ले. वहां इमरान की पार्टी लड़ेगी, लेकिन जो चुनावी बिसात है, वह कितना फ्री एंड फेयर होगा, उसमें भी संदेह ही है. वहां आर्मी जिस हिसाब से चल रही है, वह जो चाहेगी वही करेगी. अब जैसे चीजें बदल रही हैं, तो लगता है कि इमरान खान को रोकने की कोशिश नवाज शरीफ के माध्यम से होगी. भारत का जहां तक सवाल है, तो भारत का स्टैंड हमेशा से यही रहा है कि आतंक और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते हैं.


पाकिस्तान हो या कोई भी देश हो, भारत हमेशा शांति का पक्षधर रहा है. भारत ने द्विपक्षीय वार्ता और शांति से मुद्दों को सुलझाना चाहा है. शिमला अकॉर्ड भी ऐसा ही है और भारत ऐसा ही मानता भी है कि किसी तीसरे पक्ष की जरूरत नहीं है. पाकिस्तान हमेशा भारत के विरोध में रहा है, उसका स्टैंड कभी भी सकारात्मक नहीं रहा है. भारत तो बार-बार शांति का रास्ता चुनात है, लेकिन उसे बदले में हमेशा घात ही मिला है, चाहे वह कारगिल पर हमला हो, मुंबई अटैक हो या संसद पर हमला हो. इसलिए, भारत का स्टैंड बिल्कुल सही है. 


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