मानव विकास के सबसे पहले शिकार जंगल हुए हैं  और समय के साथ जंगल लगातार सिकुड़ते गए. प्राकृतिक संतुलन के लिए ऐसी समझ है कि कम से कम एक-तिहाई भू-भाग में अनिवार्य रूप से प्राकृतिक जंगल होने चाहिए पर कृषि,खनन और मानव रहवास के कारण जंगल का जो कटना शुरू हुआ, वो अब भी जारी है. जंगल ना सिर्फ जीवन-यापन के लिए संसाधन मुहैया कराते हैं बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को वायुमंडलीय कार्बन के सबसे बड़े संग्राहक के रूप में काफी हद तक कम करते हैं. जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण मानवीय कारणों से पृथ्वी का तापमान बढ़ने वाला गैस कार्बन-डाइऑक्साइड का उत्सर्जन है, जो मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल, पेड़-पौधों के जलने और जंगल के ख़त्म होने से जमीन में संग्रहित कार्बन के वायुमण्डल में जमा होने से होता है.


कार्बन का उत्सर्जन रोकते जंगल


प्राकृतिक जंगल ना सिर्फ जमीन के ऊपर बल्कि उससे भी ज्यादा जमीन के अन्दर कार्बन का संग्रह करते हैं. विश्व स्तर पर जंगल के प्रसार और स्वास्थ्य पर नज़र रखने वाले वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टिट्यूट के ग्लोबल फॉरेस्ट वाच ने पिछले साल प्राकृतिक जंगल में कमी की दर में सकारात्मक रूप से कमी के बावजूद जंगल को स्थिति को खतरे में ही माना है. ग्लोबल फॉरेस्ट वाच के मुताबिक़ जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से प्राकृतिक जंगल या तो खतरनाक स्तर तक उजड़ रहे हैं  या हमेशा के लिए ख़त्म हो रहे, खासकर विषुवतीय वर्षा वन के क्षेत्र जो दक्षिण-पश्चिम एशिया, मध्य अफ्रीका और लैटिन अमेरिका तक फैले हुए हैं.  इसमें इंडोनेशिया-मलेशिया, भारत के पश्चिमी घाट, कांगो बेसिन और अमेजन के जैव-विविधता से भरे वन शामिल हैं. हाल के कुछ वर्षो में जंगल द्वारा उपयोगी  संसाधन उपलब्ध कराने की क्षमता और महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी सेवाओं- जैसे जल-चक्र, जलवायु-संतुलन, जैव-विविधता के लिए रहवास आदि- की क्षमता में तेजी से कमी आयी है.  मानव जनित जंगल कटाई के अलावा बढ़ते तापमान के कारण आग की संख्या और नए-नए क्षेत्रों  में प्रसार मुख्य रूप से जंगल क्षेत्र में आ रही कमी के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है. यानी कि अकेले जंगल क्षेत्र में हो रही कमी को रोक लिया जाए तो न सिर्फ जलवायु संकट बल्कि पर्यावरण से जुड़ी अनेक समस्याओं  से निजात  पाने में मदद मिलेगी. पेरिस जलवायु समझौते के बाद से वैश्विक स्तर पर जलवायु संकट निजात के लिए अन्य उपायों के अलावा  ना सिर्फ जंगल बचाने बल्कि नए जंगल उगाने को एक संभावित विकल्प के रूप में माना जाने लगा है. इसी क्रम में ग्लासगो में हुए कॉप-26 में 2030 तक जंगल में हो रही कमी को ख़त्म करने का संकल्प लिया गया, यहां तक कि भारत ने नए जंगल उगा कर 2.5 से 3 बिलियन टन तक का अतिरिक्त कार्बन सिंक का महत्वपूर्ण लक्ष्य रखा है.



प्राथमिक वन क्षेत्र में कमी


मेरीलैंड विश्वविद्यालय और ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच के साझा प्रकल्प के अनुसार,2022 की तुलना में 2023 के दौरान प्राथमिक वन क्षेत्र की कमी में नौ फीसदी की गिरावट आई है. हम कह सकते हैं  कि साल 2023 वन संरक्षण के लिहाज से 2022 की तुलना में अच्छा साल रहा, पर पिछले कुछ दशक में जिस रफ्तार से सदियों में फले-फूले  जंगल नष्ट हुए हैं, के मुकाबले ये तात्कालिक प्रगति गौण ही है. नौ फीसदी कमी के बाद भी लगभग 37000 वर्ग किलोमीटर -जो लगभग भूटान के बराबर बैठता है, ऊष्णवन क्षेत्र विकास और जंगल की आग की भेट चढ़ गया. अगर इतने बड़े स्तर के जंगल ह्रास को जलवायु संकट के लिए जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की नज़र से देखे तो ये सयुंक्त राज्य अमेरिका के साल भर के जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल से निकले ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन का आधा बैठता है, और 240 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर है. हालांकि,  पिछले साल आमेजन में वनों की कटाई की रफ़्तार काफी कम हुई पर विश्व के अन्य हिस्से में जंगल के एक बड़ा हिस्सा मुख्य रूप से कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में आग की भेंट चढ़ गया.आमेजन में सुधार की गति पिछले एक साल में ब्राज़ील और कोलंबिया में अपनायी गयी संरक्षण नीतियों और उसे लागू  करने के कारण बढ़ी है, जंगल के रकबे की कमी में 2022 के मुकाबले क्रमशः 36% और 49% तक की कमी आयी है. हालांकि, वहीं पड़ोसी बोलोविया में 27% तक की बढ़ोतरी देखी गयी. जंगल संरक्षण के मामले में कहें तो हम दो कदम आगे चल के दो कदम फिर से पीछे हट गए.


भारत की स्थिति बदतर


जंगली क्षेत्र के ह्रास के मामले में भारत की स्थिति अन्य देशों  से बेहतर नहीं है, जनसंख्या वृद्धि, कृषि भूमि, खनन, आदि विकास के प्रकल्पों  के अलावा हाल के वर्षो में जंगली आग वन क्षेत्र में आयी कमी के प्रमुख कारण हैं. वर्ष 2022 के मुकाबले पिछले वर्ष वन क्षेत्र में कमी लगभग समान ही रही जो क्रमशः 21,839 हेक्टेयर और 21,672 रही, वही पिछले दो दशक 2001 से 2023 के लिए यह क्षति 23.3 लाख हेक्टेयर रही, जो लगभग वृक्ष आवरण में आई छह फीसदी की गिरावट के बराबर है. वो अलग बात है कि देश में वन क्षेत्र का आंकड़ा 2021 में आई तीन प्रतिशत की बढ़ोतरी को छोड़ कर पिछले कई सालों से 21% के आसपास स्थिर रहा है. इसमें प्राकृतिक और वनीकरण के क्षेत्र भी शामिल हैं, और प्राकृतिक वन क्षेत्र का ह्रास सबसे ज्यादा हुआ है.


वन क्षेत्र में हो रही कमी को दो स्तर पर समझा जा सकता है, पहला जंगली आग, पेड़ो में लगी बीमारी, तूफान आदि से अस्थाई रूप से नष्ट हुए जंगल जो अनुकूल स्थितियों में फिर से पनप जाते हैं. दूसरा जंगलों का स्थाई रूप से ह्रास जैसे कृषि, आवास, खनन, सड़क बनाने में जंगल की भूमि का इस्तेमाल. 2022 के मुकाबले पिछले साल भले ही जंगल क्षेत्र ह्रास की गति में भले 9 फीसदी की कमी दर्ज की गई है पर स्थाई रूप से जंगल क्षेत्र की कमी में 2022 के मुकाबले पिछले 3.2% की वृद्धि पाई गयी है. पिछले साल के विषुवतीय वनों जिसमें  मुख्य रूप से ब्राज़ील, इंडोनेशिया, कांगो, बोलोविया शामिल है, के ह्रास के आंकड़ों से यह स्पष्ट हो जाता है कि हम 2022 के ग्लासगो संकल्प 2030 तक जंगलों को बचाने की राह से भटक चुके हैं. मानव-जनित और जलवायु परिवर्तन से होने वाले जंगल की क्षति के अंतरसंबंधो को समझने के लिए 2022 में हुए जंगली आग से हुई  क्षति पर  एक नज़र डालना होगा. अकेले कनाडा में किसी भी पिछले साल के मुकाबले तीन गुणा ज्यादा जंगल आग की भेंट चढ़ गए, वहीं  ग्रीस, कैलिफोर्निया और ऑस्ट्रेलिया में आग के कारण जंगल और जंगली जानवरों का महाविनाश भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है.


मानव है जंगलों के खिलाफ! 


मानव जनित कारणों से जंगल का स्थायी रूप से ह्रास कृषि, खनन, उद्योग, मानव रहवास आदि के लिए विषुवतीय क्षेत्र में मुख्य रूप से हो रहा है जिसका प्रसार एशिया-ओसिनिया से अफ्रीका और लैटिन अमेरिका तक है. जंगल का इतने बड़े स्तर पर स्थायी ह्रास वैश्विक उष्मन को तेज कर रहा है जिससे जंगल में प्राकृतिक रूप से लगने वाली आग का दायरा और आग लगने की घटनाएं  तेजी से बढ़ रही हैं. आग के फैलते दायरे मानव जनित कारणों के संयोग से मिलकर जंगल के ह्रास को और तेज कर दे रहे हैं, जिसकी परिणति प्राकृतिक रूप से फैले जंगल में स्थायी कमी के रूप में सामने आ रही है. जंगल क्षेत्र में आ रही बड़े पैमाने में कमी के बीच अगले छ: साल में ग्लासगो संकल्प को हासिल करना एक दुरूह लक्ष्य नजर आ रहा है.  


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