मध्यप्रदेश के दमोह की कृषि उपज मंडी में उड़द दाल के ढेर ही ढेर लगे थे. नीलामी हो रही थी. खराब किस्म की उड़द के तीन हजार प्रति क्विंटल के भाव लग रहे थे तो ठीक ठाक किस्म के चार हजार तक मिल रहे थे. उड़द का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5600 रुपये हैं और सरकारी खऱीद शुरू नहीं हुई है. जाहिर है कि किसान गुस्से में थे कि कहां तो मोदी सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर पचास फीसद मुनाफा देने की बात की थी और कहां एमएसपी से चालीस फीसद कम पर दाल बेचनी पड़ रही है. यहीं मिले एक किसान वीरेन्द्र पाल. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को वोट नहीं देने की बात करने लगे. कहने लगे कि कांग्रेस ने कर्जा माफ करने की बात की है और इस बार वोट उसे ही मिलेगा. वीरेन्द्र का आगे कहना था कि पिछले साल का भावांतर का पैसा भी अभी तक नहीं मिला है. कुछ अन्य किसानों से बात होने लगी और वह सब भी आमतौर पर खफा दिखे. करीब पांच मिनट बाद ही वीरेन्द्र पाल हमारे पास आए और मोबाइल दिखा दिखा कर शिवराज सिंह सरकार की तारीफ करने लगे. कहने लगे कि वोट तो शिवराज को ही मिलेगा. बदलाव की बात करने वाले वीरन्द्र की पांच मिनट में बदल जाने की वजह पूछी तो बताया कि मोबाइल पर सूचना आई है. पिछले साल के भावांतर के उनके एक लाख 70 हजार बकाया थे जो अभी अभी बैंक में जमा हो गये हैं.


दमोह के आलावा सागर , पन्ना , सतना , छतरपुर , खजुराहो , आगर मालवा , मंदसौर , उज्जैन , शाजापुर , रतलाम यानि निमाड़ मालवा और बुंदेलखंड इलाकों में करीब तीन हजार किलोमीटर घूमने के बाद हर जगह वीरेन्द्र पाल जैसे किसानों के गुस्से का सामना हुआ. जिनका बकाया मिल गया वह खुश है, जिसकी फसल सरकारी खरीद में बिक गयी वह प्रसन्न है, जिसकी सोयाबीन की फसल अच्छी निकली वह मस्त है और जिनका बकाया अटका हुआ है, सरकारी खरीद में जिसकी फसल बिकी नहीं, जिसकी फसल बैठ गयी और फसल बीमा योजना के तहत बीमा करवाने के बाद भी मुआवजा या तो मिला नहीं या फिर आधा अधूरा ही मिला वह बदलाव की बात कर रहा है. वैसे नाराज किसानों की संख्या ज्यादा है. शाजापुर में संतरा उगाने वाले किसानों का कहना है कि पहले उन्हें पांच हजार रुपये प्रति बीघा सब्सिडी मिलती थी लेकिन शिवराज सिंह सरकार ने दो साल पहले इसे बंद कर दिया. आगर में तो एक संतरा किसान ने इस से दुखी होकर खेती करना ही छोड़ दिया और अब आगर में बस स्टैंड के पास चाय समोसे का रेस्तरां चला रहे हैं. किसानों का यह भी कहना है कि फसल बीमा योजना के तहत संतरे का चार फीसद की दर से बीमा करवाया था लेकिन पिछले साल फसल हुई तो न तो सरकार ने गिरदावरी करवाई और न ही बीमा कंपनी ने एक पाई ही दी. कुल मिलाकर फसल बीमा योजना में धोखा खाने वाले किसानों की तादाद ज्यादा दिखी. एक खास बात देखने में आई कि जिन किसानों को आवास योजना के तहत घर मिला है वह बेहद खुश है और वोट देकर अहसान भी चुका रहा है.


निमाड़ मालवा ही पिछले साल जून में किसानों के उग्र आंदोलन का केन्द्र रहा था. मंदसौर से कुछ आगे सड़क किनारे आशीष पाटीदार की मूर्ति लगी थी. 17 साल का आशीष भी उन किसानों में शामिल था जिनपर पुलिस ने पिछले साल जून में गोली चलाई थी जिसमें आशीष सहित पांच लोग मारे गये थे. आशीष की मां अलका पाटीदार मूर्ति की सफाई कर रही थी. उनका कहना था कि बेटे की कुर्बानी बेकार गयी. न तो किसानों को फसल का पूरा पैसा मिल रहा है और न ही सरकारी खरीद पर ही सोयाबीन मक्का दालें खरीदी जा रही हैं. अलका का कहना था कि फसल बीमा योजना में भी किसानों के बीमे का हिस्सा जबरन काट लिया जाता है लेकिन फसल खराब होने की सूरत में मुआवजा नहीं मिल पाता है. आशीष के दादा चल नहीं पाते. कहने लगे कि खेती करना घाटे का सौदा हो गया है और चाहे कांग्रेस की सरकार हो या बीजेपी की हरकोई किसान को सिर्फ वोटो के रुप में लेता है. दादा को कांग्रेस के उस वायदे पर भी यकीन नहीं है जिसमें राहुल गांधी ने चुनाव जीतने के दस दिनों के भीतर कर्जा माफ करने की बात की है. आशीष के परिजनों को शिवराज सिंह सरकार ने एक करोड़ रुपए का मुआवजा और एक सदस्य को नौकरी देने की बात कही थी और इस वायदे को निभाया गया है. दो अन्य किसान जो मारे गये थे उनकी विधवा जरुर मुआवजा लेने के छह महीने बाद दूसरी जगह शादी रचा बैठी और शहीद किसान के मां बाप मुआवजे तक से वंचित रह गये.


किसानों के साथ ही नौजवान भी नाराज दिखाई देते हैं. युवा वर्ग का कहना है कि शिवराज सरकार के समय सरकारी नौकरियों में भर्ती बहुत कम हुई और अब वह दो लाख नौकरियां देने का वायदा कर रही है जिसपर यकीन नहीं किया जा सकता. युवा राहुल गांधी की उस घोषणा पर संदेह जताते है जिसमें बेरोजगारों को दस हजार बेरोजगारी भत्ता देने की बात की गयी है. रतलाम में नमकीन खऱीदने आए नौजवान अमित का कहना था कि युवा को नौकरी चाहिए , भीख का भत्ता नहीं. रतलाम के आलावा मंदसौर से लेकर पन्ना सागर तक नौजवान तीखे स्वर में अपना गुस्सा जाहिर करते नजर आए. कुछ का कहना था कि आरक्षण आर्थिक आधार पर होना चाहिए और यह काम सिर्फ मोदी सरकारी ही कर सकती थी जो वही जातिवाद के खेल में फंस गयी है. कुछ का आक्रोश है कि युवाओं के लिए आगे बढ़ने के मौके कम होते जा रहे हैं. हैरानी की बात है कि कम लोगों ने ही प्रधानमंत्री मुद्रा योजना का नाम सुना है.


वैसे रतलाम में महालक्ष्मी मंदिर में दिलचस्प कहानी देखने को मिली. यहां दिवाली पर लोग नकदी , सोना , चांदी , जेवरात मंदिर में पांच दिनों के लिए रख देते हैं. मान्यता है कि पैसा रखने से बरकत होती है और एक साल में ही पैसा दुगुना हो जाता है. इस बार करीब सवा सौ करोड़ रुपया इस तरह रखा गया लेकिन पैसा वापस लेने की बारी आई तो आचार संहिता आड़े आ गयी. प्रशासन ने कह दिया कि पचास हजार से ज्यादा पैसा रखने वालों को आय का हिसाब देना पड़ेगा. जब हम मंदिर पहुंचे तो प्रशासन पुलिस के अधिकारी पुजारी के साथ बैठ कर किसका कितना पैसा की सूची बना रहे थे और पैसा रखने वालों को उस आय का हिसाब देना पड़ रहा था. यही कुछ का कहना था कि नेता तो मंदिर में पैसा रखने नहीं आते लेकिन पांच साल बाद चुनाव का पर्चा भरते समय उनकी संपत्ति दुगुनी तिगुनी कहां से हो जाती है.


निमाड़ मालवा की 66 सीटों में से पिछली बार बीजेपी को 56 और कांग्रेस को नौ सीटे मिली थी. इसी तरह बुंदेलखंड की 26 सीटों में से बीजेपी को 20 और कांग्रेस को छह सीटें मिली थी. कहा जाता है जो यह दो इलाके जीतता है वह मध्यप्रदेश जीतता है. लेकिन इस बार जहां जहां हमारा जाना हुआ हर जगह बीजेपी एक दो सीटें खोती नजर आ रही थी. ऐसा स्थानीय पत्रकारों का कहना था. हमने जो देखा और जो संपर्क में आए पत्रकारों ने कहा उससे साफ है कि बीजेपी इन इलाकों की बहुत सी सीटों पर मुश्किल चुनाव लड़ रही है.


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