पतंगे हवा के खिलाफ होकर ही ऊंची उठती हैं, हवा के साथ होकर नहीं: विंस्टन चर्चिल, पूर्व प्रधानमंत्री, इंग्लैंड दो बातें अटल सत्य हैं. पहली- ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एडिलेड वनडे में धोनी ने आखिरी ओवर में छक्का लगाकर जीत दिलाई. दूसरी- भारत में आलोचक कुकुरमुत्ते की तरह हर जगह उग आते हैं. दूसरे वनडे में धोनी के छक्के ने ये तय कर दिया कि वर्ल्ड कप 2019 में उनका टिकट कप्तान विराट के साथ कट चुका है(अगर कोई इंजरी नहीं हुई तो, जो धोनी को होगी नहीं). जीत के बाद प्रफुल्लित विराट ने खुद प्रजेंटेशन में धोनी की शान में राग दरबारी गाया (ये आलोचकों को युवा खिलाडियों का मर्सिया लग रहा है). आलोचना लेखन विधि की एक कला है…लेकिन भारत में आलोचना ललित कला है जो जीवन के हर पल में लागू होता है. मामला क्रिकेट का हो तो भारत में जिसे बल्ला पकड़ने का शहूर ना हो, वो भी आलोचक है और कोई ऐसा वैसा नहीं बल्कि नामवर सिंह से कम में तो कोई मानने को तैयार नहीं. धोनी ने छक्का एडिलेड में लगाया और सोशल मीडिया के बाणभट्टों ने यहां विधवा विलाप शुरु कर दिया कि धोनी तो रिषभ पंत जैसे युवाओं की जगह खा रहे हैं. अरे जगह खा रहे हैं तो कोटा सिस्टम की वजह से नहीं खा रहे भाई, प्रदर्शन है. बात प्रदर्शन की करेंगे तो ये तर्क भी अजीब है कि कुछ मिनट पहले जिन खिलाड़ी ने छक्का लगाकर जीत दिलाई है, उसको नहीं मानेंगे, पूछेंगे कि पिछले 3 साल से धोनी ने क्या किया है? आंकड़े तो वैसे किताबों के लिए ही होते हैं लेकिन सोशल मीडिया के बाणभट्टों को वही आधार बनाना है(क्रिकेट हालांकि पिछले रिकॉर्ड्स पर खेला जाता तो सचिन तेंडुलकर और लाला अमरनाथ (मरणोपरांत) भी वर्ल्ड कप 2019 की रेस में होते) खैर आंकड़ों की ही बात कर लेते हैं शायद इसी से सोशल मीडिया की सोशल इंजीनियरिंग के इन ललित आलोचकों को ठंडक पड़े(हालांकि ये मुश्किल है) पिछले तीन साल की ही बात कर लेते हैं तो ये आंकड़े देखिए- धोनी ने पिछले तीन साल में 62 मैच खेले हैं 1418 रन बनाए हैं औसत 42.96 का है, एक शतक और 9 अर्धशतक हैं धोनी के नाम. लेकिन बीते तीन सालों में जब जब भारत मैच जीता है धोनी की भूमिका और बल्ला दोनों अहम रहे हैं. स्ट्राइक रेट से लेकर विकेटों के बीच दौड़ सब शानदार. धोनी ने जीते हुए 43 मैच की 26 पारियों में 880 रन बनाए हैं, 55 की औसत से एक शतक और 5 अर्धशतक के साथ . स्ट्राइक रेट 88.17 का है जो टीम इंडिया के युवा शेरों के मुकाबले ज्यादा है. इन 26 पारियों में से 13 पारी दूसरी पारी यानि लक्ष्य का पीछा करते हुए है और इसमें 7 बार धोनी नाबाद यानि जीत दिलाकर लौटे हैं ( विराट ही उनसे ज्यादा 10 बार वापस लौटे हैं ) लेकिन जो इन आंकड़ों से शांत हो जाए भला वो क्रिकेट का आलोचक कैसे, हिंदुस्तान में क्रिकेट और आंकड़े मौसेरी बहनों जैसे हैं. खेलने के साथ भी, खेलने के बाद भी. हिंदुस्तान को कंपेयर यानि तुलना करने में सबसे आनंद आता है. बतौर खिलाड़ी धोनी का तुल्यांकी भार दो वर्ल्ड कप जीत से भारी नहीं होता, बेशुमार मैचों में जीत दिलाने के बावजूद भी ये तुल्यांकी भार हल्का ही रहता है. जिन युवाओं की दुहाई दी जाती हैं, आंकड़े उनकी गवाही नहीं देते. # धोनी ने कुल मैच 62 खेले जिसमें उन्होंने 42.96 के औसत से 1418 रन बनाए. इसमें एक शतक और नौ अर्धशतक भी शामिल हैं. # वहीं केदार जाधव ने 44 मैचों में 41 के औसत से 738 रन बनाए. जिसमें उन्होंने 1 शतक और 3 अर्धशतक जमाए हैं. # इनके अलावा मनीष पांडे ने भी यहां 20 मुकाबले खेले हैं. जिसमें उन्होंने 36.30 के औसत से 363 रन अपने नाम कए हैं. इसमें एक शतक और एक अर्धशतक है. # साथ ही अंबाटी रायडू को भी मिडिल ऑर्डर में आज़माया गया. जिन्होंने यहां 57.66 के औसत से 16 मैचों में 519 रन बनाए हैं. इसमें एक शतक और 4 अर्धशतक शामिल हैं. ये सभी क्रिकेटर बेहद टैलेंटेड हैं लेकिन धोनी से मानसिक कूव्वत में मात खा जाते हैं. क्रिकेट में भले ही जितनी तकनीक आ जाए, नए नए स्टाइल ईजाद हो जाएं, लेकिन जो चीज क्रिकेट में सबसे जरुर ही वो है एक मजबूत दिमाग और खुद पर सबसे ज्यादा भरोसा. धोनी इतिहास में हमेशा ऐसे खिलाड़ी के तौर पर जान जाएंगे जो आखिरी गेंद पर हार से बेपनाह नफरत करता है. फंसे हुए मैचों में जब जीत की उम्मीद भी डूबती उतराती है तो 22 गज की पट्टी पर शांत गंभीर धोनी ही हैं जिन पर हिंदुस्तान भरोसा करता है. आप धोनी से नफरत करें या प्यार लेकिन जब धोनी पिच पर रहते हैं तो दिमाग और दिल दोनों यही कहते हैं- जीत जाएंगे. ऐसा करिश्मा, ऐसा भरोसा कम ही क्रिकेटर 130 करोड़ दिलों दिमाग को दिला पाते हैं. बाकी रही बात आलोचकों की तो वर्ल्ड कप के लिए भी कुछ कुतर्क बचा कर रखिए क्योंकि धोनी वर्ल्ड कप खेलेंगे . बाकी कुकुरमुत्ते भी उगेंगे और आलोचना भी.