कतर ने 8 भारतीयों को फांसी की सजा सुनाई है. यह मामला पिछले एक साल से अधिक समय से चल रहा था और भारत सरकार ने चूंकि इस मामले में दखल दे रखी थी तो उम्मीद थी कि उनको छुड़ा लिया जाएगा. बहरहाल, फांसी की सजा के बाद भारत सरकार ने हैरत और आश्चर्य जताया है. कतर के साथ भारत के रिश्ते कभी खराब भी नहीं रहे हैं औऱ दोनों देशों के बीच इस तरह की संधि भी है कि एक-दूसरे के कैदियों को उनकी सजा गुजारने उनके मूल देश भेज दिया जाए. हालांकि, फांसी होने के बाद अब भारत के पास कूटनीतिक रास्ते ही बचे हुए हैं. 


मामले की हैं कई तहें


ये मामला जो है, वह एक स्तर पर बहुत गुप्त है. यह बिल्कुल स्पष्ट नहीं है कि उन पर क्या आरोप थे, क्या कानूनी प्रक्रिया थी और आरोप जो लगाए गए, उसके तथ्य क्या हैं, उनके जो वकील थे, वह दलीलें क्या थीं, इनमें से कुछ भी नहीं पता है. ये सारी कानूनी प्रक्रिया और अगर कतर में कानून नाम की कोई चीज है, तो वह प्रक्रिया बिल्कुल बंद कमरे में हुई है. जो कुछ भी मीडिया में आ रहा है, उसमें से कितनी सच्चाई है, कितनी अटकलें हैं, कितनी फेक न्यूज है, यह कहना मुश्किल है, क्योंकि हमारे पास कोई तथ्य नहीं है. भारत सरकार ने पिछले साल ही एक प्रक्रिया शुरू की थी. इन भारतीयों से संपर्क साधा था और काउंसिलर एक्सेस मिला था. हालांकि, भारत सरकार की तरफ से भी पुष्टि नहीं हुई है कि मुकदमा किस चीज के ऊपर है, क्या कानूनी सहायता उनको दी गयी थी, तो सब कुछ अटकलों पर ही आधारित है. यह जरूर है कि सजा सुनायी गयी है और वह अधिकतम दंड है.



अब माना ये जा रहा है कि अब कूटनीति का असर होगा. कतर इनका इस्तेमाल होस्टेज (अपहृतों) की तरह करेगा और भारत के ऊपर दबाव बनाने के लिए करेगा. हालांकि, कतर अगर इस सजा को देता है तो भारत और कतर के बीच हालात काफी खराब हो जाएंगे, शायद टूटने की कगार पर आ जाएं. वैसे, कतर को इस हद तक जाना नहीं चाहिए, क्योंकि वो भारत का महत्व जानते हैं. उनकी गैस की जितनी खरीद भारत करता है, वो उसकी भरपाई नहीं कर पाएंगे. हालांकि, संभावना तो कुछ भी होने की है. अब कानूनी प्रक्रिया की जहां तक बात है तो ऐसे देशों में तो वो भी माशाल्लाह ही होती है. अब शायद कूटनीति का असर ज्यादा होगा.



बचे हैं दो ही विकल्प


एक विकल्प तो ये है कि कतर और भारत के बीच एक समझौता बना हुआ है कि अगर दोनों देशों में एक-दूसरे के बाशिंदों को पकड़ा गया है तो उन्हें उनके देश भेज दिया जाए और वे वहीं अपनी सजा काट लें, लेकिन अब उनको भारत लाकर फांसी तो दी नहीं जाएगी. ये विकल्प है कि इनको भारत भेजा जाए और कानूनी प्रणाली के तहत इनको रिलीफ दिया जाए. दूसरा विकल्प है कि इनकी सजा बरकरार रहेगी, लेकिन कूटनीति के जरिए इनको छुड़वा लिया जाएगा. कतर को कुछ चाहिए होगा और भारत को बदले में कुछ देना होगा. मोटे तौर पर यही दो रास्ते हैं. अब यह सोचना कि अपील में जाएंगे और कतर जैसी रियासत में कानून बिल्कुल अपने आदर्श रूप में हो, आदर्श सुनवाई हो और उनको छोड़ दिया जाए, तो ये तो अहमकों के जन्नत में रहनेवाली बात होगी. हां, अगर तीसरी बात हुई और कतर ने सजा कायम रखते हुए दे डाली तो फिर हालात बहुत खराब होंगे.


जहां तक इजरायल को जासूसी जानकारी देने का आरोप है तो यही कहना है कि कोई अगर किसी निजी कंपनी में काम कर रहे हैं तो एकाध लोगों को बहलाया-फुसलाया जाता है और वो कुछ डिजाइन वगैरह की कॉपी चुराकर देते हैं, लेकिन 8 लोगों का एक साथ जासूस बन जाना तो बड़ा कठिन लगता है. दूसरी बात ये है कि ये प्राइवेट कंपनी है और अगर इसमें से कुछ निकालना होता तो इजरायल की इतनी सलाहियत है कि वे कहीं न कहीं से यह सूचना निकाल लेते, आखिर कहीं न कहीं तो वो सूचना होगी ही. तीसरी बात ये है कि जिस पनडुब्बी की बात हो रही है, वह तो इटैलियन कंपनी बना रही थी. इजरायल चाहता तो सीधा वहां अपने एसेट बना लेते, इसके लिए उनको भारतीयों की जरूरत भला कहां रहती. अंतिम बात यह है कि 8 लोगों को आप जासूसी में नहीं लगाते, फिर तो वो पब्लिक इंफॉर्मेशन बन जाती है. वही मैं बार-बार कह रहा हूं कि कई चीजें ऐसी हैं जो ठीकठीक जुड़ नहीं पा रही हैं. 


कयास नहीं, कूटनीति से बनेगी बात


जहां तक कयास लगाने की बात है, तो वो तो कुछ भी हो सकता है. जैसा कि कहा जा रहा है कि इनको अगस्त के अंत में 2022 में गिरफ्तार किया गया और भारत को मध्य सितंबर में इसकी जानकारी दी गयी, तो इसके भी तथ्य हमें नहीं पता हैं. भारत तो अपने नागरिकों का पता बहुत जल्दी लगा लेता है, फिर इतनी देर की बात समझ में नहीं आती है. एक परदे के पीछे की बात भी होती है. भारत की तरफ से इतना बावेला भी नहीं मचाया गया, जितना आमतौर पर मचता है. इसका एक कारण तो यह होता है कि आप बिना शोरशराबे के इस बात को निबटा लें, क्योंकि पब्लिक डोमेन में आने के बाद दबाव बढ़ता है. दूसरी बात ये होगी कि कुछ ऐसे कारण हो सकते हैं कि भारत सरकार उसे नहीं बताना चाहती होगी.


अब लेकिन हालात बदल गए हैं. अब तो सजा हो गयी है, तो बात अब उसकी नहीं रही कि अब तक क्या हुआ है, अब तो बात है कि आगे क्या होगा? इमेज पर डेंट वगैरह लगने की जहां तक बात है, तो वैसा कुछ नहीं होता है. अमूमन यह देशों के बीच चलता रहता है. परदे के पीछे लेन-देन हो जाता है, उनके कुछ लोगों को आप छोड़ देते हैं, कुछ को आप छुड़वा लाते हैं. यह केवल दुश्मन देशों के बीच हो, ऐसा भी नहीं है. इजरायल-अमेरिका के बीच के रिश्ते सबको पता हैं, लेकिन अब वही है कि सीआईए इजरायल की और मोसाद अमेरिका की जासूसी करता है, तो ये चलता रहता है. 


जहां तक भारत का सवाल है, तो अभी दबाव तो होगा. एक भी नागरिक हो, सामान्य नागरिक हो तो भी बहुत प्रेशर रहता है. यहां तो 8 नागरिक हैं और पूर्व नेवी ऑफिसर हैं. तो, कई बार होता है कि लोग अगर क्रिमिनल गतिविधि में हैं, तो सरकार के भी हाथ बंध जाते हैं. अमेरिका में कई बार ऐसा हुआ है कि उनको चाइल्ड पोर्नोग्राफी या पीडोफोलिया में पकड़ा गया तो पता चलने के बाद वो भी पीछे हट जाते हैं.


अब इस मामले में तो केवल परिवारों और जनता का दबाव नहीं होगा, इसमें तो सैन्य बलों की तरफ से भी प्रेशर पड़ेगा. लोग इस खबर को फॉलो भी करेंगे. मसला अब ये है कि सरकार इसको पब्लिक में लेकर आएगी या चुपचाप सुलझा लेती है. कतर के साथ आपके संबंध भी बहुत खराब नहीं थे. एक नूपूर शर्मा वाले मामले में तल्खी आय़ी थी, अल-जजीरा ने भी एक विषैला प्रचार अभियान भारत के खिलाफ चलाया हुआ है, लेकिन कुछ छोटी-मोटी बातें थीं वो और कुल मिलाकर संबंध ठीक ही रहे हैं, हम उनकी बड़ी मंडी हैं, हमारे लोग उनके यहां जाकर काम करते हैं, रिश्ते तो सामान्य हैं ही. 




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