लोकसभा चुनाव को लेकर माहौल बनना शुरू हो गया है. भाजपा के बारे में कहा जाता है कि वो हमेशा चुनावी मोड में रहती है. हालांकि, संभावित रणनीति को लेकर अभी तक इंडिया गठबंधन का भी कुछ पता नहीं चल रहा है. महाराष्ट्र को लेकर दिक्कतें है, बिहार में दिक्कतें है. ऐसा कहा जाता है कि लोकसभा का रास्ता उत्तर प्रदेश से खुलता है, लेकिन वहां भी हालात ठीक नहीं है. खासतौर पर मायावती को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं है. 


15 जनवरी के बाद खुलेंगे मायावती के पत्ते


दरअसल, मायावती के लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी पत्ते 15 जनवरी के बाद खुलेंगे. बीएसपी सुप्रीमो पूरी तरह से इंडिया गठबंधन से बाहर होने की स्थिति में नहीं है. ये चुनाव ऐसा होने वाला है जहां पर तीसरे मोर्चे की जगह कहीं बनती नहीं है. बीजेपी कोशिश कर ले, वो एक अलग बात है. लेकिन, ऐसा लग रहा है कि तीसरे मोर्चे में इंडिया अलायंस वर्सेस एनडीए की लड़ाई में कोई तीसरा खड़ा होता है तो उसकी जगह नहीं बनेगी.


ऐसा लगने के पीछे का कारण ये है कि चुनावी प्रो-भाजपा और भाजपा के विरुद्ध के बीच में टिका हुआ है. इंडिया गठबंधन में बहुत सारी समस्याएं हो रही हैं. कभी नीतीश कुमार की तरफ से कुछ सुनने को मिलता है तो कभी ममता बनर्जी कुछ कहती है, कभी बंगाल के स्थानीय नेता आपस में भिड़ जाते है. लेकिन सभी राज्यों के साथ बंटवारे को लेकर बैठकों का दौर जारी है. 


अखिलेश-मायावती के बीच का जुबानी जंग 


उत्तर प्रदेश में सपा चीफ अखिलेश यादव और मायावती के बीच की जुबानी जंग अब लगातार देखने को मिल रही है. लेकिन ये जानकारी पुख्ता है कि उत्तर प्रदेश में इंडिया अलायंस के भीतर ये स्पेस बनाकर रखा गया है कि अगर मायावती आती है तो फॉर्मूला क्या होगा. इसी वजह से मायावती कभी नर्म तो कभी गर्म होती रहती है. अखिलेश यादव ने एक पोजिशन ले रखी है कि उत्तर प्रदेश में सीटों का बंटवारा हम करेंगे और हम ही यहां के लीडर हैं.



लेकिन मायावती के आने के साथ ही इंडिया गठबंधन की पूरी स्थिति बदल जायेगी, क्योंकि मायावती के साथ आने के पक्ष में कांग्रेस का भी एक बड़ा हाथ है. राष्ट्रीय स्तर पर भी इंडिया अलायंस के जो नेता है वो कई प्रमुख नेता ये कह रहें है कि मायावती को इंडिया अलायंस में आना चाहिए. इसमें अखिलेश यादव पर भी दबाव है. इसलिए वो अपनी पोजिशनिंग को सही रखने के लिए कभी बोलते है और मायावती उसका जवाब देती है, फिर एक कंट्रोवर्सी बनती है. लेकिन उसके अगले ही दिन चीजें व्यवस्थित होने के संकेत आने लगते है. 


चुनाव हो गया है वन टू वन 


हर जगह एक ट्रेंड देखा है कि चुनाव वन-टू-वन हो गया है. तीसरे के लिए स्पेस बहुत कम बच रहा है. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को भी अपने गढ़ में सफलता नहीं मिली. ऐसे में अगर मायावती और ओवैसी एक साथ आकर ही लड़ेंगे तो ये धारणा बनना बिलकुल भी आश्चर्यजनक नहीं होगा कि इसके पीछे बीजेपी की कोई रणनीति काम कर रही है. कोई भी राजनेता ये नहीं चाहेगा की उसकी पार्टी जो लगातार सत्ता से बाहर भी है और जिसका वोट बैंक भी कम होता जा रहा है, ऐसा कोई भी निर्णय नहीं लेगी. एक सच ये भी है कि मायावती के पत्ते अभी नहीं खुले है. मायावती के बारे में समझने के लिए 15 जनवरी के बाद के दिनों का इंतजार करना होगा. 


मायावती के साथ समझौता ज्यादा सही


सभी पार्टियों के सामने अपने अस्तित्व को बचाने और उसे बरकरार रखने का बड़ा सवाल है. अखिलेश यादव कि रणनीति है कि यूपी में लीडरशिप उनके पास रहे. इस वजह से कई बार वे विवादित बयान देते रहते हैं. लेकिन जानकारियां ये कहती हैं कि समाजवादी के नेताओं और बीएसपी के शीर्ष नेतृत्व के साथ लगातार कुछ बातचीत चल रहीं है. दोनों के बीच आपसी समझ बनी हुई है. इसी बीच कांग्रेस के नेता यही कह रहे है कि यूपी में हम सेकेंड पार्टनर जरूर है, लेकिन मायावती के साथ समझौता होना ज्यादा सही है. ऐसे में अखिलेश यादव को भी पता है कि गठबंधन के साथ ही उनके लिए और विपक्ष के लिए भी बेहतर होगा कि वो एकजुट होकर लड़े. हर पार्टी ये चाहती है कि उसका स्टेक यानी वर्चस्व बना रहें. अखिलेश यादव को 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अच्छी सीटें मिली है, उप-चुनाव भी जीते. ऐसे में अखिलेश फिर से एक बड़ा नुकसान नहीं चाहते है जो उनको 2022 के पहले हुआ था. 


कांग्रेस कम सीटें लड़े, लेकिन सफलताएं जरूरी


उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति बहुत ज्यादा उसके हिस्से में जाए, ये बिल्कुल नहीं मानना चाहिए. ये जरूर है कि कांग्रेस को सीटें मिल सकती है और साथ ही कांग्रेस भी इसमें रजामंद होगी क्योंकि कांग्रेस के लिए ये ज्यादा महत्वपूर्ण है कि वो भले ही कम सीटें लड़े लेकिन सफलताएं ज्यादा मिलें. ऐसे में ये जिद करना खासतौर पर तब जब मायावती के साथ रास्ते खुले हुए है, कांग्रेस का 80 सीटों से ज्यादा का स्टेक नहीं बन पाएगा.


बिहार का फॉर्मूला लगभग तय हो चुका है और बिहार के साथ उत्तर प्रदेश में भी सीटों के बंटवारे को लेकर के दिल्ली में समाजवादी पार्टी के नेताओं ओर कांग्रेस के नेताओं के साथ बातचीत हुई है. बातचीत अभी इस स्तर पर हो रही है कि अगर मायावती आती है तो क्या फॉर्मूला होगा और मायावती नहीं आती है तो क्या फॉर्मूला होगा. मायावाती के साथ भी लगातार संवाद किया जा रहा है. 



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