कांग्रेस ने लोकसभा के 39 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है, जिसमें कांग्रेस के 'प्रथम परिवार' के वारिस राहुल गांधी का भी नाम है. वह वायनाड से उम्मीदवार बनाए गए हैं. इसी सूची में भूपेश बघेल का भी नाम है, जो राजानंदगांव से अपनी किस्मत आजमाएंगे. उत्तर-पूर्व के छोटे राज्यों के अलावा मुख्यतः कर्नाटक और केरल में ही उम्मीदवारों की घोषणा की गयी है. हिंदी पट्टी में अभी सूची का नहीं आना बताता है कि कांग्रेस कहीं न कहीं मान चुकी है कि इन राज्यों में उसके लिए बहुत कुछ बचा नहीं है. 


राहुल का वायनाड के प्रति फर्ज


वायनाड से राहुल गांधी के लड़ने और उत्तर प्रदेश के संदर्भ में कांग्रेस की सोच, इन दोनों बातों में फर्क है. वह पिछली बार भी वहां से लड़कर सांसद बने थे. सांसद के तौर पर उनकी जिम्मेदारी है और राहुल गांधी अचानक से वह सीट छोड़कर नहीं जा सकते. अमेठी उनकी खानदानी सीट रही है जिसे भले ही कांग्रेस अभी गंवा चुकी है, लेकिन उनको उम्मीद होगी कि एंटी-इन्कम्बैन्सी काम कर जाए. तो, वायनाड की गारंटी को काम करते हुए उन्होंने अमेठी पर एक दांव खेला है. इसलिए, यूपी में कांग्रेस की स्थिति को इस प्रस्थान-बिंदु से देखना ठीक नहीं होगा. जहां तक भाजपा की बात है तो एक सीट पर कई उम्मीदवार हैं. अगर हम 543 सीटों की बात करें तो 5000 से कम उम्मीदवार नहीं मिलेंगे. इसकी एक वजह ये भी है कि दूसरे दलों से भाजपा में डुबकी लगाने की होड़ मची है. अभी ही आप देखिए कि कांग्रेस से राजेश मिश्र और सुरेश पचौरी ने भाजपा का दामन थाम लिया. अब ये जब जा रहे हैं तो सीट की गारंटी पर ही तो जाएंगे. तो, अगर संघ या भाजपा दूसरे दलों से सीट की गारंटी के आधार पर लोगों को लेकर आते हैं, तो वहां सूची बनानी आसान है, बनिस्बत कांग्रेस के जहां उम्मीदवारों का टोटा है. 


यूपी में कांग्रेस की हालत पस्त 


जहां तक उत्तर प्रदेश की बात है, तो 2022 के विधानसभा चुनाव में तो उन्होंने हवा में ही घोषणा कर दी महिलाओं को टिकट देंगे और उन्होंने एक कैंपेन 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' भी चलाया. हालांकि, बाद में जब टिकट देने की बारी आयी तो भारी मुश्किल पड़ी और आखिरी एक महीने में तो बसपा और छोटे दलों से पांच-दस हजार वोट पाए लोगों की पत्नियों को टिकट देना पड़ा था. कांग्रेस के साथ यूपी में बुनियादी दिक्कत है. वहां संगठन थोड़ा-बहुत बना है, पर लीडरशिप खड़ी नहीं हो पायी है. वैसे भी पूरे देश में कांग्रेस की उपस्थिति अगर देखना चाहें, तो हमें सेंट्रल इंडिया जैसे छत्तीसगढ़ से शुरू कर सकते हैं. हालांकि, छत्तीसगढ़ में भी अब क्या ही बचा है, उसके नीचे महाराष्ट्र से गिनें तो कर्नाटक है, केरल है, तेलंगाना है, तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार ही है. तो, कांग्रेस की जितनी भी सीटें आनी हैं, उसकी दक्षिण भारत से लेकर और मध्य भारत तक ही है, उत्तर भारत में तो उनका कुछ बचा नहीं है. यह किसी परीक्षा की तरह है. कांग्रेस ने पहले आसान सवाल हल कर लिए हैं, जहां वह जानती है कि भाजपा का खाता खुलने में भी मुश्किल होगी, फिर कांग्रेस मध्य भारत से वह ऊपर बढ़ेगी, जहां पर्चे के कठिन सवाल यानी उत्तर भारत है. 


इंडिया गठबंधन जैसा अभी कुछ नहीं


फिलहाल जो स्थिति है, उसमें इंडिया गठबंधन जैसा कुछ दिख नहीं रहा है. यह तो एक काल्पनिक गठबंधन दिखता है, क्योंकि आज जो ओवैसी और बहनजी से गठबंधन की अफवाहें उड़ रही थीं, उसका खंडन तो खुद बहन जी ने अपने ट्वीट से कर दिया. इंडिया अलायंस जो संज्ञा है, वह तो एकाध बैठकों से बनी संज्ञा है. अभी तो इसे कांग्रेस प्लस कांग्रेस के सहयोगी कह सकते हैं. उसमें भी डीएमके, टीएमसी जैसे अपने सहयोगियों के आगे कांग्रेस कमजोर ही नजर आती है. तो, बेहतर सवाल यह नहीं कि इंडिया गठबंधन जीतेगा या नहीं, बल्कि भाजपा को वे 303 के बाद रोक पाते हैं या नहीं, यह सवाल मौजूं हैं. जो लक्ष्य भाजपा और उसके सहयोगियों का है, 372 या 400 का, उस तक पहुंचने से रोकने में ये सफल हो पाते हैं या नहीं, ये सवाल है? तो, आज जो 39 सीटों की सूची निकली है और अगले सोमवार यानी 11 मार्च को जो कुछ औऱ सीटें निकलेंगी, वो बहुत मौजूं होंगी. पिछली बार 128 सीटें थीं, जो बीजेपी के पास नहीं थीं. उन्हीं सीटों पर भारतीय जनता पार्टी की टैली देखने लायक होगी कि पिछली बार के मुकाबले वह कितना बढ़ा पाती है या उसकी वही टैली रह जाती है. तो, 11 मार्च को जब हम भाजपा और कांग्रेस दोनों की ही सूचियों का मिलान कर देखेंगे तो शायद ये 450-500 का आंकड़ा पहुंचेगा और उसमें देखा जाएगा कि दोनों में से कौन मजबूत स्थिति में है? 


भविष्य की जहां तक बात है तो 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट' वाली डेमोक्रेसी में भले ही सरकार सीटोंं से बनती हो, लेकिन दलों का भविष्य तो वोटों के प्रतिशत पर निर्भर करता है. इस चुनाव के बाद कांग्रेस की सीटें चाहें जो भी हों, उसके वोट प्रतिशत में कोई खास गिरावट नहीं आएगी. हां, यह संभव है कि क्षेत्रीय दलों का मिलाकर हो सकता है कि कुछ बढ़ ही जाए. हां, चूंकि उसका वोटों का मिश्रण वैसा नहीं है, इसलिए भाजपा वोट-मिक्स के मामले में फायदे में है और सीटों के मामले में भी, लेकिन कांग्रेस का भविष्य कहीं से खतरे में नहीं है. 


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