पिछली कई सदियों से हर बादशाह की चाहत रही थी कि दिल्ली पर उसकी सल्तनत हो. कई मुग़ल बादशाह इसमें कामयाब रहे, तो उसके बाद तकरीबन डेढ़ सौ साल तक अंग्रजों का भी ये सपना पूरा हुआ. देश को आज़ादी मिलने के बाद लोकतंत्र आ गया लेकिन दिल्ली पर कब्ज़ा करने की हमारे सियासी दलों की हसरत आज भी पूरी नहीं हुई है. कहने को दिल्ली है तो देश की राजधानी लेकिन राजनीति के मामले में सबसे अनूठी इसलिये है कि यहां संसद भी है और विधानसभा भी. लिहाज़ा, जब केंद्र में और दिल्ली की सरकार में अलग-अलग पार्टी की सरकार होती है, तो दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा बन ही जाता है.


ये अलग बात है कि 15 साल तक दिल्ली की कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित ने अपने सियासी अनुभव और मृदु स्वभाव के चलते तत्कालीन वाजपेयी सरकार से आगे होकर न तो कोई रंजिश मोल ली और न ही केंद्र को ऐसा करने का कोई मौका ही दिया. जहां केंद्र के आगे झुकने और उसकी बात मानने की मजबूरी थी, वहां उन्होंने अपने अहंकार को कूड़ेदान में फेंकना ही ज्यादा उचित समझा और सियासत में ऐसे राजनीतिज्ञ ही अक्सर कामयाब भी होते रहे हैं.


दिल्ली की डोर किसी और के हाथ
लेकिन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी और केंद्र की मोदी सरकार के बीच पहले दिन से ही जो ज़ुबानी जंग चली आ रही है, वो हमें छोटे शहरों की मिट्टी में लड़े जाने वाले उस दंगल की याद दिला देती है कि उसमें कौन पहलवान ज्यादा ताकतवर है, जिसके बारे में दर्शक पहले से ही ये अंदाज लगा लेते हैं कि इस कुश्ती में जीत आखिर किस पहलवान की होगी. इसीलिए पीएम मोदी और सीएम केजरीवाल की सरकारों के बीच होने वाली इस लड़ाई की बड़ी वजह को समझना जरुरी है. दिल्ली एक राज्य तो है और इसीलिए यहां विधानसभा भी है, जहां हर पांच साल में एक चुनी हुई सरकार भी बनती है. लेकिन दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा अभी तक नहीं मिला है, यही कारण है कि सियासी भाषा में अब भी इसे एक दिव्यांग राज्य ही कहते हैं. 


इसलिये कि दिल्ली के लोगों द्वारा चुने गए 70 विधायकों वाली इस सरकार के अधिकार में न तो पुलिस है, न कानून व्यवस्था और न ही यहां की जमीन पर ही उसका कोई हक है. ये तीनों ही मामले केंद्र सरकार ने अपने नियंत्रण में रखे हुए हैं. इसीलिए दिल्ली में निर्वाचित मुख्यमंत्री से ज्यादा ताकतवर यहां केंद्र द्वारा नियुक्त किये गए उप राज्यपाल यानी एलजी को ही माना जाता है. संविधान से मिले अधिकारों को देखते हुए हम ये कह सकते हैं कि दिल्ली सरकार चाहे जो करती रहे, लेकिन उसकी असली कमान "लाट साहब" के हाथ में ही होती है. वे चाहें, तो सरकार का फैसला पलट दें, चाहें तो मुख्यमंत्री को विदेश जाने की इजाज़त न दें और अगर कोई रिपोर्ट सामने हो, तो उसके आधार पर किसी मंत्री के खिलाफ सीबीआई जांच की सिफारिश करने में जरा भी देर न लगाएं. अगर आसान भाषा में कहें, तो दिल्ली सरकार एक तरह से केंद्र सरकार के काबू में है क्योंकि उस पर हर वक़्त केंद्रीय जांच एजेंसियों की जांच के पिंजरे की तलवार लटकी रहती है.


केंद्र ने अपने म्यान में रखी उसी तलवार को अब बाहर निकाल दिया है, जिसके बहाने वीर सावरकर और शहीद-ए-आज़म भगत सिंह की तुलना करते हुए शब्दों के ऐसे तीर चलाये जा रहे हैं, जो हमारी राजनीति के गिरते स्तर का सबसे बड़ा सबूत हैं. दरअसल,पिछले साल नवंबर में दिल्ली की केजरीवाल सरकार जो नई आबकारी नीति लेकर आई है, उसमें कई सारी खामियां होने के आरोप बीजेपी लगा रही है. इसमें कैसे और कितना भ्रष्टाचार हुआ है, इसकी जांच तो अब सीबीआई ही करेगी, जिसकी सिफारिश दिल्ली के उप राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने केंद्र से की है. जाहिर है कि केंद्र इस सिफारिश को मानने और इसे मंजूरी देने में जरा भी देर नहीं लगायेगा. इसलिये कि इस जांच की आंच की लपटें सीधे दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को झुलसाने वाली हैं, क्योंकि वित्त औऱ शिक्षा के अलावा आबकारी विभाग के मुखिया भी वही हैं.


सस्ती शराब के चलते निशाने पर केजरीवाल
केजरीवाल को पहले ही इसकी भनक लग गई कि अब केंद्र सिसोदिया को गिरफ्तार करने की तैयारी में है, लिहाज़ा उन्होंने खुलकर मोदी सरकार के खिलाफ अपना मोर्चा खोल दिया. उनकी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन मनी लॉन्ड्रिंग के कथित आरोपों के मामले में पहले से ही ईडी की न्यायिक हिरासत में हैं. लेकिन इस मुद्दे पर बीजेपी के हमलावर होने की एक और बड़ी वजह भी है, जिस पर उसे दिल्ली की महिलाओं का भरपूर साथ मिला है. दरअसल, दिल्ली की नई आबकारी नीति में शराब बेचने का जो निजीकरण किया गया है और इसके लिए जो कार्टेल बनाया गया है, उसके चलते कई ठेकेदारों ने मूल कीमत से आधी कीमत पर शराब बेचना शुरु कर दी है. यानी एक बोतल खरीदने पर एक बोतल शराब मुफ्त मिलेगी. ये केजरीवाल के उस दावे के बिल्कुल उलट है, जो उन्होंने कहा था कि दिल्ली में आप की सरकार बनने पर राजधानी को 'शराबमुक्त' किया जायेगा. 


लेकिन इस स्कीम से तो पूरी दिल्ली 'शराबयुक्त' बनती जा रही है, क्योंकि सस्ती मिलने के कारण लोग अब अपनी क्षमता से अधिक शराब पी रहे हैं और उसी अनुपात में आपसी झगड़ों व अपराध की वारदातों में बेतहाशा बढ़ोतरी भी हो रही है. शायद इसीलिए सीएम केजरीवाल द्वारा मोदी सरकार पर लगाये गए आरोपों का जवाब देने का मोर्चा नई दिल्ली की सांसद व केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी ने संभाला. उन्होंने अरविंद केजरीवाल से सीधा सवाल किया, "वे खुद को ईमानदारी का सर्टिफ़िकेट देने से पहले हमारे इन सवालों का जवाब देने से आखिर कतरा क्यों रहे हैं? उन्होंने साफ आरोप लगाया कि "दिल्ली सरकार ने ग़ैर-क़ानूनी ढंग से शराब नीति लागू की थी, जो दिल्ली की जनता के साथ बड़ा धोखा है." लेखी ये कहने से भी नहीं चूकीं कि, "केजरीवाल प्रश्नों के उत्तर न दें, ये तो नहीं चलेगा, लोकतंत्र में मतदान पर भरोसा होता है, न कि मद्यपान पर. दिल्ली में एक गैंग है जो यह चला रहा है. कोरोना व डेल्टा वेव के दौरान ये हरकत हुई. ब्लैकलिस्टेड कंपनी को ठेका दिया गया. दिल्ली की जनता के साथ खुलेआम धोखाधड़ी हुई है."


एलजी द्वारा सीबीआई जांच की सिफारिश किये जाने के तुरंत बाद अरविंद केजरीवाल ने अपने सहयोगी का बचाव करते हुए कहा था कि, "मैं कहता रहा हूं कि वे मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार करेंगे. भारत में एक नई व्यवस्था है. वे तय करते हैं कि किसे जेल भेजना है, फिर उस व्यक्ति के खिलाफ एक फर्जी मामला बनाया जाता है. यह मामला फर्जी है. इसमें कोई सच्चाई नहीं है." उन्होंने इसके लिए उप राज्यपाल को जिम्मेदार ठहराया. लेकिन अपने पीछे लगी भगतसिंह और अंबेडकर की तस्वीरों को दिखाते हुए  केजरीवाल ने अपने वीडियो संदेश में जिस अंदाज में बीजेपी पर वार किया है, वह इस लड़ाई को बहुत आगे तक ले जाने का संदेश देता है. केजरीवाल ने कहा, "तुम लोग सावरकर की औलाद हो, जिन्होंने अंग्रेजों से माफ़ी मांगी थी, हम भगत सिंह की औलाद हैं, भगत सिंह को हम अपना आदर्श मानते हैं, जिन्होंने अंग्रेजों के सामने झुकने से मना कर दिया और फांसी पर लटक गए. हमें जेल और फांसी के फंदे से डर नहीं लगता. हम कई बार जेल होकर आ गए हैं."


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)