पिछले हफ्ते ही मेरे एक दोस्त योगेश के पिताजी को कोविड के चलते ऑक्सीजन की जरूरत पड़ी तो उसने अपने लगभग सभी परिचित लोगों को पूछा था कि कहीं भी ऑक्सीजन सिलेंडर मिल रहा हो तो बताएं. मगर 3-4 दिनों के बाद भी जब उसे सिलेंडर नहीं मिला तो किसी ने उसको एक नंबर दिया और बोला कि ये नंबर उसको गूगल से मिला है और वो इस नंबर पर कॉल करके ऑक्सीजन सिलेंडर की होम डिलीवरी ले सकता है. फिर योगेश ने उस नंबर पर कॉल किया, सिलेंडर मंगवाया, ऑनलाइन पैसे भी दे दिए. मगर इस बात को आज 10 दिनों से ज्यादा का समय हो चुका है. ना ही वो ऑक्सीजन सिलेंडर आया है और पैसे वापसी के लिए जब उस नंबर पर कॉल किया जाता है तो वो नंबर बंद जा रहा है.


सिर्फ योगेश ही नहीं ऐसे कितने ही योगेश इस समय हमारे समाज में हैं जो ऐसे ही धोखेबाजों का आसन शिकार बन रहे है. आज ये धोखाधड़ी सिर्फ ऑक्सीजन सिलेंडर या कंसंट्रेटर की बिक्री या ऑनलाइन ठगी तक ही सीमित नहीं है. अब नकली या कम क्षमता के कंसंट्रेटर जिनकी क्षमता एक से पांच लीटर प्रति मिनट ऑक्सीजन बनाने की बताई जाती है मगर वास्तविकता में वो इतनी ऑक्सीजन नहीं बना पाते हैं. फिर भी बाजारों में भारी दाम पर बेचकर लोगों को ठगा जा रहा हैं और जरूरतमंद लोग मजबूरी में अपनी मेहनत की अच्छी खासी रकम गवां रहे है.


अकेले राजधानी में ही मई महीने के पहले हफ्ते तक दिल्ली पुलिस ने कोविड के नाम पर की जा रही धोखाधड़ी के 372 मामले पकड़े और एफआईआर दर्ज की. 91 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया, 95 उपकरणों को जब्त किया और 53,60,000 रुपये की ठगी की राशि के 214 बैंक खातों को भी जब्त किया है. हाल ही में जो ऐसे मामले सामने आए है उनमें से एक दिल्ली है-



  • दिल्ली पुलिस के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) शिबेश सिंह ने हाल ही में दो अफ्रीकी नागरिकों को ऑक्सीजन सिलेंडर देने के बहाने लोगों को ठगने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. पुलिस ने उनके पास से 163 सिम कार्ड, 19 मोबाइल फोन, पांच लैपटॉप, चार डेबिट कार्ड और अन्य सामान बरामद किया है. पुलिस ने पाया कि वे धोखाधड़ी के लिए 20 से अधिक बैंक खातों का उपयोग कर रहे थे और उन्होंने पूरे भारत में 1,000 से अधिक लोगों के साथ 2 करोड़ रुपये से अधिक की ठगी की है.

  • कुछ दिनों पहले ही दिल्ली से सटे गाजियाबाद-नोएडा के प्रमुख अस्पतालों में ऑक्सीजन बेड उपलब्ध कराने के बहाने कोविड ग्रस्त दोस्तों और रिश्तेदारों को धोखा देने के आरोप में दो लोगों को गिरफ्तार किया गया था. जिनसे करीब 1.95 लाख रुपये बरामद किए गए थे. एसपी सिटी गाजियाबाद निपुण अग्रवाल के अनुसार युवाओं ने दिल्ली-एनसीआर में 25 से अधिक लोगों को ठगा था और उन्ही में से 12 गाजियाबाद निवासियों से केवल तीन दिनों में 7 लाख रुपये से अधिक की धोखाधड़ी की थी.


हालांकि दिल्ली और उत्तर प्रदेश पुलिस का कहना है कि वो ऐसे मामलों पर कार्रवाई कर रही है और ऐसे किसी भी धोखाधड़ी से निपटने के लिए अलग से फोन नंबर बनाए गए है, जिससे कि तुरंत कार्यवाई करने में आसानी हो. मगर पुलिसिया कार्यवाही कितनी आसानी से हो सकती है ये किसी से छुपा नहीं है. TransUnion (एक अमेरिकी उपभोक्ता क्रेडिट रिपोर्टिंग एजेंसी है जो भारत में वित्तीय रिकॉर्ड्स भी बनाती है) के अनुसार 11 मार्च 2019 से 10 मार्च 2020 और 11 मार्च 2020 से 10 मार्च 2021 के बीच की अवधि की तुलना करने पर पता चलता है कि भारत में डिजिटल लेनदेन में होने वाली धोखाधड़ी 28.32 फीसदी बढ़ गई है. 


ट्रस्टचेकर (बेंगलुरु की एक कंपनी जो लेन-देन की निगरानी और धोखाधड़ी जोखिम की भविष्यवाणी और समाधान के बारे में बताती है) ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा कि यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) द्वारा की जा रही धोखाधड़ी में से कुल हो रही वित्तीय धोखाधड़ियों में इस समय सबसे ज्यादा (41%) धोखाधड़ी भारत के पूर्वी हिस्सों जैसे पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, असम, कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, त्रिपुरा, नागालैंड, मिजोरम, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश और सिक्किम में होती है.


इसके अलावा केवाईसी, नकली कैश-बैक, डिजिटल वॉलेट के माध्यम से धोखाधड़ी, नकली बिक्री, क्यूआर कोड, यूपीआई फिशिंग, लॉटरी घोटाले और सोशल मीडिया पर वित्तीय धोखाधड़ी करने में पटना, चंडीगढ़, कोलकाता और मेरठ शीर्ष पर है. साथ ही अधिकांश क्यूआर कोड घोटाले असम से उत्पन्न होते हैं जो कुल की गई वारदातों का 20% है.


जानकारों की माने तो पुलिस या प्रशासन ऐसी किसी भी घटना को रोकने के लिए नाकाफी है क्योंकि ये घटनाएं जिस जगह होती है ज्यादातर उस जगह पैसे ट्रांसफर नहीं होते. पैसे लेने वाला अपने फर्जी दस्तावेजों के जरिए अपना एड्रेस कहीं और का दिखता है. बैंक एकाउंट कहीं और खुलवाता है और पैसे अकाउंट में आते ही कहीं और ट्रांसफर कर देता है. ऐसा एक बार नहीं कई बार करता है जिससे कि असल अकाउंट ना खोजा जा सके. कई बार ये लोग देश के बाहर भी अकाउंट खुलवाते हैं और कई बार किसी का निष्क्रिय अकाउंट उपयोग में लाते हैं जो उस अकाउंट को कई समय से उपयोग में नहीं ले रहे हो.


जहां आज कोरोना महामारी में बहुत से लोग किसी भी तरह से अनजान लोगों की मदद करने में जुटे हैं, फिर चाहे वो खाना बांटने का हो या गुरुद्वारे का ऑक्सीजन लंगर. वहीं दूसरी तरफ कुछ अपराधी ऐसे भी हैं जो अलग-अलग तरीकों से लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकर फर्जीवाड़ा करते है और इंसानियत को शर्मसार करते हैं.


(नोट- ये लेख फोटो जर्नलिस्ट भूपिंदर रावत ने लिखा है. उपरोक्त लेख में दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)