कहते हैं कि धर्म की आस्था जब लोगों के दिलो-दिमाग पर भारी पड़ जाये, तब वे कोरोना महामारी जैसी जानलेवा बीमारी की भी परवाह नहीं करते.पिछले साल हरिद्वार के कुंभ में जुटी लाखों लोगों की भीड़ की तस्वीरें पूरे देश ने देखी थी और उसके बाद कोरोना की दूसरी लहर ने जो मंज़र दिखाया था,उसे भी शायद लोग अभी भूले नहीं होंगे.लेकिन इस तीसरी लहर के दस्तक देते ही सबसे बड़ी चिंता की बात ये है कि आज 10 जनवरी से पश्चिम बंगाल में 'गंगा सागर' मेला शुरु हो रहा है जो 16 जनवरी तक चलेगा और सरकार को उम्मीद है कि इसमें देश भर से पांच लाख श्रद्धालु जुटेंगे.


लिहाज़ा, स्वास्थ्य विशेषज्ञों को ये डर सता रहा है कि कहीं ये मेला भी कुम्भ की तरह ही संक्रमण का सबसे बड़ा विस्फोट न साबित हो जाये क्योंकि इसका असर देश के अनेकों प्रदेशों पर पड़ना तय है.ये आलम तब है,जबकि पश्चिम बंगाल में रविवार को ही कोरोना वायरस संक्रमण के 24 हज़ार 287 नए मामले सामने आए हैं जो कि 2020 में आई महामारी की पहली लहर से लेकर अब तक के सर्वाधिक दैनिक मामले हैं. राज्य में कोरोना से एक ही दिन में 18 और मरीजों की मौत हुई है और बंगाल में संक्रमण दर 33.89 फीसदी पर जा पहुंची है,जो दिल्ली के मुकाबले 10 प्रतिशत अधिक है.


दरअसल,राजधानी कोलकाता से सटे दक्षिण 24 परगना जिले में स्थित सागरद्वीप में सोमवार से गंगासागर मेले की शुरुआत होनी है.इस द्वीप पर गंगा नदी बंगाल की खाड़ी में मिलती है.यानी गंगोत्री से उदगम करने वाली और हज़ारों किलोमीटर का सफर तय करने वाली पवित्र गंगा का इसी मुकाम पर आकर सागर से मिलन होता है औऱ फिर वे उसी में समा जाती हैं,इसीलिये इसे 'गंगा सागर' कहा जाता है.यहां के बारे में प्रचलित कहावत है कि 'सारे तीरथ बार-बार, गंगासागर एक बार.' हर साल देश-विदेश से लाखों लोग इस मेले में पहुंचते हैं. संगम में स्नान के बाद लोग वहां बने कपिलमुनि के मंदिर में दर्शन करके खुद को सौभाग्यशाली समझते हैं.


हालांकि बंगाल में कोरोना संक्रमण की तेज रफ्तार को ध्यान में रखते हुए ही एक स्थानीय डॉक्टर ने गंगासागर मेला रद्द करने की मांग को लेकर कलकत्ता हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी.लेकिन हाइकोर्ट ने इसे रद्द करने की बजाय बीते शुक्रवार को इसके आयोजन की सशर्त अनुमति दे दी.मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार अगर चाहती तो जनहित में इस मेले को कैंसिल करने का फैसला भी ले सकती थी लेकिन  सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने अपने हलफ़नामे में कहा कि कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए गंगासागर मेले के आयोजन का फ़ैसला किया गया है. सरकार का कहना था कि मेले की तमाम तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं, इसलिए वह आख़िरी मौक़े पर मेला रद्द करने के पक्ष में नहीं है.


दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने आखिरकार इस मेले के आयोजन की सशर्त अनुमति दे दी.हालांकि अदालत ने सरकार से मेला परिसर को 24 घंटे के भीतर अधिसूचित क्षेत्र घोषित करने के साथ ही मेले में निगरानी के लिए तीन-सदस्यीय समिति बनाने का निर्देश दिया.


मुख्य न्यायाधीश वाली खंडपीठ ने गृह सचिव को निर्देश दिया कि वो ये सुनिश्चित करें कि मेले के दौरान 16 जनवरी तक सरकार की ओर से घोषित पाबंदियों का सख्ती के पालन हो. तीन सदस्यीय समिति निगरानी रखेगी कि राज्य सरकार की ओर से लागू पाबंदियों का कड़ाई से पालन हो रहा है या नहीं. इसमें किसी कोताही या लापरवाही की स्थिति में समिति को मेला बंद करने की सिफारिश करने का भी अधिकार है.अदालत के अनुसार सरकार को रोज़ाना विज्ञापन के ज़रिए लोगों को मेले में पहुंचने से होने वाले खतरों से आगाह भी करना होगा. वैसे राज्य सरकार किसी धार्मिक समारोह में एक साथ पचास से ज़्यादा लोगों के नहीं जुटने की पाबंदी पहले ही लागू कर चुकी है.लेकिन हैरानी की बात ये है कि वह लाखों लोगों की भीड़ जुटने से होने वाले खतरे के प्रति बिल्कुल भी फ़िक्रमंद नज़र नहीं आती. हाईकोर्ट की सशर्त अनुमति देने के बावजूद स्वास्थ्य विशेषज्ञों और राजनीतिक दलों ने इस मेले के आयोजन से संक्रमण तेज़ी से फैलने का अंदेशा जताया है,जो काफी हद तक सही भी लगता है.


उनका कहना है कि बीते साल हरिद्वार में आयोजित कुंभ की तरह इस बार गंगासागर मेला कोरोना का सुपर स्प्रेडर इवेन्ट साबित हो सकता है.वेस्ट बंगाल डॉक्टर्स फोरम के सचिव डॉ. कौशिक चाकी कहते हैं, "यह वोट बैंक की राजनीति है. एक ओर सरकार सोशल डिस्टेंसिंग पर ज़ोर दे रही है तो दूसरी ओर मेले में पांच लाख लोगों के पहुंचने की बात कह रही है. बीते साल कुंभ मेला के बाद उपजे हालात हम देख चुके हैं. इसलिये बड़ा डर यही है कि कहीं यह मेला भी सुपर स्प्रेडर न साबित हो जाये." उनकी इस आशंका को इसलिये भी गलत नहीं कह सकते क्योंकि राजधानी कोलकाता और उससे सटे उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिलों की हालत सबसे गंभीर है. वहां रोजाना कोरोना संक्रमण के हजारों नए मामले दर्ज किए जा रहे हैं.


हालांकि राज्य सरकार ने मेले में कोरोना संक्रमण से सुरक्षा की व्यवस्था पूरी तरह चुस्त-दुरुस्त होने का दावा किया है और कहा है कि कोरोना प्रोटोकाल का कड़ाई से पालन किया जा रहा है.मेले में कोरोना की जांच का इंतजाम है. वैक्सीन की दोनों डोज लिए बिना कोई भी मेला परिसर में नहीं पहुंच सकता. वहां 55 बिस्तरों वाला एक अस्थाई अस्पताल भी बनाया गया है. मेले में ज़रूरी संख्या में डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी भी तैनात रहेंगे.लेकिन डाक्टर्स फोरम के सचिव कौशिक का ये सवाल उठाना भी उस लिहाज़ से बिल्कुल जायज़ लगता है कि इतनी छोटी-सी जगह में  पांच लाख लोगों के जुटने की स्थिति में सोशल डिस्टेंसिंग आखिर कैसे संभव हो सकती है?


दरअसल,बंगाल में अगले कुछ दिनों में चार नगर निगमों के चुनाव होने हैं,लिहाज़ा स्वास्थ्य विशेषज्ञ मेले के आयोजन को वोट बैंक से जोड़ते हुए इसे धर्म और राजनीति के घालमेल का नमूना बता रहे हैं. लेकिन बड़ा सवाल तो ये उठता है कि महज तीन सदस्यों वाली समिति लाखों लोगों की भीड़ पर चौबीसों घंटे भला कैसे निगरानी रख सकती है कि लोग कोरोना नियमों का पालन कर रहे हैं या नहीं? इसलिये कहना पड़ेगा कि हर महामारी पर भारी है धर्म से जुड़ी आस्था निभाने की जिम्मेदारी !


नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.