आज रात 12 बजे के बाद अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से नया साल शुरू हो जायेगा और लोग इसका जश्न भी जमकर मनाएंगे, लेकिन जश्न की इस खुमारी में लोग शायद ये भूल जायेंगे कि पिछले पौने दो साल में तबाही का मंजर दिखाने वाला वो नामुराद कोरोना का वायरस अभी दुनिया से खत्म नहीं हुआ है.


कोरोना साल में दो बार अपना नया रूप लेकर आता है और ये बताता है कि उसमें तबाही मचाने की कितनी ताकत अभी भी बची हुई है. किसी भी वायरस और वैक्सीन का कुत्ते-बिल्ली का बैर हमेशा से होता आया है,लिहाजा चीन के वुहान प्रान्त से निकले या जानबूझकर निकाले गये इस वायरस का पूरी तरह से खात्मा तो अभी तक नहीं हुआ है.इसलिये सबसे ज्यादा फिक्रमंद तो उन लोगों को होना चाहिये, जो नए साल का जश्न मनाने के लिए सबसे भीड़भरे हिल स्टेशनों पर पहुंच गए हैं.
जाहिर है कि ऐसी बेपरवाही और लापरवाही ही ऐसी संक्रमण वाली बीमारी को न्योता देती है और दो-तीन दिन के बाद जब लोग अपने घरों में पहुंचते हैं,तब उनमें से कइयों को ये अहसास होता है आखिर ये क्या हो गया.इस गुजरते हुए साल को हम कोरोना से निजात दिलाने के तौर पर याद कर सकते हैं लेकिन इसमें वैक्सीन की दो डोज लेने के अलावा सबसे अहम भूमिका मास्क लगाने और सोशल डिस्टेंसिंग को अपनाने की ही रही ,जिसे मार्च 2020 से अनिवार्य रूप से लागू किया गया था.ऐसे में लगता है कि  कि चीन और बाकी देशों में कोरोना के नये वेरिएंट से बरपे कहर को देखकर भी हमारे देश के लोग आज भी उतने ही उदासीन बने हुए हैं.


सावधानी बरतने की जरूरत
फिलहाल ये तो कोई भी नहीं जानता कि कोविड-19 का ये नया अवतार हमारे देश में कितना असर डालने वाला है और कितने लोगों को अपनी चपेट में लेगा,लेकिन इस एक आकलन पर तमाम स्वास्थ्य विशेषज्ञों की एक ही राय है कि जनवरी का पूरा महीना और फरवरी का पहला हफ्ता हमारे लिये कुछ ज्यादा जोखिम भरा है,इसलिये जरुरत से ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है.


दुनिया के बहुत से मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि ये इंसान के दिमाग की फितरत होती है कि जिसका सीधा वास्ता उसकी जिंदगी से न जुड़ा हो,वो दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी को अपनी आंखों से देखकर भी उसे भुलाने में ज्यादा देर नहीं लगाता क्योंकि वो श्मशान और कब्रिस्तान की हकीकत को जानते हुए भी उससे दूर भागना चाहता है और अपने दिलो-दिमाग को ये झूठी तसल्ली देता है कि मेरा तो फिलहाल इससे कोई वास्ता नहीं पड़ने वाला है. कोरोना की पहली और खासतौर पर दूसरी लहर के दौरान भारत के लोगों ने जिस मंजर को अपनी आंखों से देखा-झेला है,ठीक वैसे ही हालात का सामना पिछले दो हफ्ते से चीन भी कर रहा है.हालांकि दुनिया से हकीकत को छुपाना वहाँ की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी का पहला मकसद होता है, लेकिन इस बार उसकी पोल खुल गई,जिसे दुनिया ने भी देखा. वैसे हमारे देश के कुछ महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में जाने के लिये लोगों की लंबी लाइन और घंटों लंबी वेटिंग करते हुए तो सबने देखा होगा. कोरोना की पहली व दूसरी लहर के दौरान हम सब मे सबने ये पहली बार ही देखा कि श्मशान स्थलों व कब्रिस्तान के बाहर भी इतनी लंबी वेटिंग है और लोग अपने सगे-संबंधी का संस्कार जल्द करने के लिए वहां के कर्मचारियों को उनकी मांग के मुताबिक पैसा देने से भी नहीं कतरा रहे थे.


कोरोना ने लोगों को बनाया स्वार्थी
ऐसे ही कुछ बेहद डरावने दृश्यों गवाह रहा हूं, जहां सबसे महंगी गाड़ी में बेटा अपनी मां या पिता का पार्थिव शरीर शमशान में लाकर वहां के कर्मचारियों के हाथों में नोटों का बंडल पकड़ा कर ये कहकर निकल जाता था कि जितनी जल्द हो सके, इनका संस्कार कर देना, इसलिये कहते हैं कि कोरोना की महामारी ने लोगों को बहुत कुछ सिखाया है. उसने काफी हद तक मानवीय संवेदनाओं को खत्म किया है और लोगों के बीच आत्मीय संवाद को कम करते हुए बहुतेरे लोगों को स्वार्थी भी बनाया है. लिहाजा, इस बात से बेपरवाह मत हो जाइये कि बीते हुए साल में जिस बेमुराद वायरस से निजात मिली थी, वो नये साल में हमें अपनी चपेट में लेने को तैयार बैठा हो.


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