लोकसभा चुनाव लगभग सिर पर है और कभी भी तारीखों की घोषणा हो सकती है. कांग्रेस ने चुनाव के लिए उम्मीदवारों की दो सूची जारी कर दी है. कुल 82 उम्मीद्वारों के नाम पर मुहर लग चुकी है. यह फिलहाल तो कांग्रेस के पक्ष में ही दिखती है. जो भी उम्मीदवार हैं, वो मैदान में काफी संघर्ष कर रहे हैं. कोई भी सत्ता की मलाई नहीं खा रहे हैं. इसको परिवारवाद की तरह देखना बिल्कुल ही गलत होगा. बहुत लोग के यहां ईडी और सीबीआई के छापा भी पड़ रहे हैं. ऐसे में कोई नहीं चाहेगा कि उनके घर यानी कैंडिडेट के यहां छापा पड़े. तो यह पूरी तरह से संघर्षवाद है परिवारवाद नहीं है.


यह परिवारवाद नहीं


लोग परिवारवाद को इस तरह से देखने के आदी हो गए हैं कि किसी का कोई बेटा है तो वो परिवारवाद हो गया. ये परिवारवाद  है ही नहीं. पिता के नाम का बेटा अगर सत्ता का दुरुपयोग कर के फायदा उठा रहा है, पद का या ओहदे का तो ये परिवारवाद  की श्रेणी में आता है, लेकिन जो जेल जा रहा है, मेहनत कर रहा है तो इसे संघर्षवाद कहते है. मोतीलाल नेहरू स्वतंत्रता संग्राम में थे. उनके बेटे जवाहरलाल नेहरू ने वकालत की, आजादी की लड़ाई में भी हिस्सा लिया. जवाहरलाल नेहरू के बहन, बहनोई बेटी, दामाद सब लोग जेल गए. तो क्या ये परिवारवाद है? संघर्ष के लिए कुर्बानी देना क्या परिवारवाद की श्रेणी में आता है? ये परिवार एकजुट होकर राजनीतिक लक्ष्य को प्राप्त करने का उदाहरण है. आज कांग्रेस सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. अगर कांग्रेस के लिए कोई कार्यकर्ता अपने परिवार के साथ संघर्ष के साथ खड़ा है तो इसे परिवारवाद कहना गलत होगा, यह कुर्बानी कही जाएगी.



अशोक गहलोत के बेटे के यहां सीबीआई के छापा पड़ रहा है. वो संघर्ष कर रहे हैं. अगर पार्टी टिकट दे रही है तो वो जनता के बीच जा रहे हैं. अगर जनता उनको लायक नहीं समझती है तो उनको नहीं चुनेगी. तरुण गोगोई के पुत्र गौरव गोगोई को पार्टी ने असम में टिकट दिया है लेकिन अब तरुण गोगोई दिवंगत हो चुके हैं. यहां कहां परिवारवाद आ गया? वो तो विपक्ष में रहकर विपक्ष को मजबूत कर रहे हैं. पार्टी को वहां पर मजबूत कर रहे हैं. कांग्रेस के अध्यक्ष और विधायक को खरीद लिया जा रहा है. उसके बावजूद वो संघर्ष कर रहे हैं तो यहां कहां से परिवारवाद है? कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ को पार्टी ने टिकट दिया है. उन्होंने पारदर्शी छवि खुद से बनाई है. पूरा समय उन्होंने कांग्रेस को दिया है तो इसमें उनको कहां से परिवारवाद का पूरा फायदा मिल रहा है?. पहले भी जनता ने सांसद बनाया था. अब फिर से मैदान में जा कर संघर्ष कर रहे हैं.


तीन CM के बेटों को टिकट, ओबीसी पर जोर


हालांकि कांग्रेस ने तीनों मुख्यमंत्री के बेटे को टिकट दिया है. ये आलोचना का मुद्दा बन सकता है, लेकिन परिवारवाद अलग चीज है, इसमें कहीं से भी परिवारवाद नहीं है. राहुल गांधी को क्या परिवारवाद कहा जाएगा. राहुल गांधी वर्तमान में संघर्ष कर रहे हैं. उनके पिता शहीद हुए, उनकी दादी शहीद हुई. उनकी मां ने लंबे समय तक पार्टी को खड़ा किया. कांग्रेस की सरकार में कोई पद नहीं लिया. राहुल गांधी ने भी खुद कोई पद नहीं लिया. पूरे देश की सड़क को, हजारों किलोमीटर की सड़क को लांघ दिया. क्या कोई इतना कोई संघर्ष कर सकता है? तो बिल्कुल इसे परिवारवाद नहीं कहा जा सकता.


देश की सियासत को मजबूत करने, एक उद्देश्य के साथ, अपनी पारिवारिक विरासत को मजबूत करने के लिए राहुल गांधी का महत्वपूर्ण संघर्ष है. दूसरी सूची में छह राज्यों के 43 उम्मीदवारों के लिए टिकट जारी की गई है. असम में 12 , गुजरात से 7, मध्य प्रदेश से 10, राजस्थान से 10, उत्तराखंड से 3 और दमन दीव से एक सीट पर उम्मीदवार के नाम का ऐलान किया गया है. दूसरी सूची के अनुसार सबसे अधिक ओबीसी जाति से 13 है. उसके बाद सामान्य 10,  एसटी 9, एक मुस्लिम और चार महिला उम्मीदवार हैं.


कुल 76 प्रतिशत उम्मीदवार 60 वर्ष से कम आयुवर्ग के हैं. दूसरी लिस्ट में कांग्रेस संभावनाएं तलाश रही है. परंपरागत वोट बैंक है. उसे अपने पक्ष में करने का काम कर रहे हैं , जो कभी बीच में छिटक गया था. आज कांग्रेस 50-52 सीट पर सिमट गई. जो अलग-अलग सियासत हुई, इसमें जाति प्रथा का बोलबाला रहा. इसमें कांग्रेस कहीं न कहीं पीछे रह गई. कांग्रेस अब जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी उतनी भागीदारी पर काम कर रही है. तो कांग्रेस को ये चीजें टिकट बंटवारा में भी दिखानी होगी. इसमें काफी हद तक कांग्रेस ने ऐसी कोशिश की है. पहले कांग्रेस में ऐसा नहीं होता था. लेकिन अब कांग्रेस पूरी तरह से बदल रही है.


राजस्थान में नयी टीम, एमपी में नए चेहरे


राजस्थान में कांग्रेस ने पूरी तरह से नई टीम खड़ी कर दी है. इस बार कांग्रेस ने पूरी तरह से 10 नए चेहरों को टिकट देकर मैदान में उतारा है. राजस्थान वो प्रदेश है जहां कांग्रेस विधानसभा में सत्ता हासिल तो नहीं कर पाई, लेकिन अपने वोट बैंक को बनाए रखा. राजस्थान में भाजपा ने एक ऐसा प्रयोग किया है कि पहली बार के विधायक को वहां का सीएम बना दिया है. वहां पर पूरी तरह से भाजपा में भी असंतोष है. उस असंतोष को भुनाने का भी अवसर कांग्रेस के पास है. ऐसे में जनजाति समुदाय का ध्यान रखा गया है, तो हो सकता है कि राजस्थान में कांग्रेस वापसी कर सकती है. जो भी हिंदी भाषी राज्य है उनमें से राजस्थान वो मजबूत जगह है जहां कांग्रेस की वापसी करने की उम्मीद ज्यादा है.



मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने आठ सीटों पर नए उम्मीदवार उतारे हैं. सिर्फ दो चेहरों को रिपीट किया है. छिंदवाड़ा पर कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ और बैतूल की सीट पर कांग्रेस ने उम्मीद़वार को दोहराया है. कांग्रेस का नेतृत्व मध्यप्रदेश में बदला है. जीतू पटवारी युवा हैं. वो अपनी टीम तैयार करते हुए दिख रहे हैं. कमलनाथ के बेटे को टिकट देकर उन्होंने तालमेल बिठाने का भी पूरा प्रयास किया हैै. नया चेहरा नयी उम्मीद जगाता है. एमपी में कांग्रेस लगातार हारते रही है. मध्यप्रदेश में कांग्रेस सभी सीटें खो देने के बाद सिर्फ छिंदवाड़ा की सीट पर ही जीत दर्ज की थी. कांग्रेस के पास पाने के लिए सबकुछ है और खोने के लिए कुछ भी नहीं. नये चेहरे को मौका दिया गया है. लेकिन कौन सा चेहरा कितना प्रभावशाली है ये कहना मुश्किल होगा. लेकिन जब भी नए चेहरे पर भरोसा जताया जाता है तो उसके परिणाम अच्छे ही निकलते हैं. बीजेपी और आरएसएस का गढ़ माने जाने वाला यह प्रदेश है. लगातार सत्ता में है. नया चेहरा को मौका देकर ही कांग्रेस वहां कुछ कर सकती है. कांग्रेस इसी कोशिश में दिख रही है.


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