इतिहास के महान अर्थशास्त्री और कूटनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य ने लिखा है कि शत्रु आपको पराजित करने के लिए आपकी सबसे कमजोर कड़ी और बुरी आदत पर प्रहार करता है. लेकिन उससे पैदा होने वाले क्रोध पर जिसने काबू पा लिया, वही किसी भी राष्ट्र का नेता बनने के शिखर को छूने का माद्दा भी रखता है.  लेकिन उसी चाणक्य ने ये भी कहा है कि राजनीति के मैदान में अपने विरोधी को परास्त करने का सबसे अचूक औजार ये भी है कि आप उसकी उपेक्षा यानी उसे Ignore करना शुरु कर दें. 


लेकिन अफसोस की बात ये है कि इस देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के नेताओं में अहंकार इतना है कि न तो उन्होंने 15 साल पहले ही कभी इसे समझा और न ही आज समझ पा रहे हैं. साल 2007 में 'मौत का सौदागर' कहने से लेकर अब 'मोदी तेरी कब्र खुदेगी' जैसे नारे देकर कांग्रेस ने अपनी जमीन मजबूत करने की बजाय पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी के वोट बैंक को और भी ज्यादा मजबूत कर दिया है. 


कांग्रेस की सबसे बड़ी बदकिस्मती ये है कि 10 साल तक केंद्र की सरकार में रहते हुए भी उसके मंत्री-नेता मोदी को लानत-मलानत देने से कभी बाज नहीं आये. हालांकि मोदी तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे. लेकिन उन्होंने एक बार भी कभी ये नहीं सोचा कि वे हर मामले में गुजरात और मोदी को घसीटते हुए देश में उनकी TRP को बढ़ाने में कितने बड़े मददगार साबित हो रहे हैं.


कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा भी निकाल ली और ये मंसूबा भी पाल लिया कि इससे 2024 के चुनाव में बड़ा उलटफेर हो जायेगा. बेशक मुख्य विपक्षी दल होने के नाते कांग्रेस के इस प्रयास की तारीफ होनी चाहिये कि उसने एक खास तरह की विचारधारा के खिलाफ अपनी लड़ाई को लेकर सड़कों पर उतरने की हिम्मत जुटाई है. 


लेकिन कांग्रेस इतने साल बाद भी इस हकीकत को मानने से शायद जानबूझकर कतरा रही है कि नरेंद्र मोदी सिर्फ देश के पीएम नहीं हैं, बल्कि एक विचारधारा को प्रवाहित करते हुए उसमें जान फूंकने वाले RSS के एक पुराने स्वयंसेवक और प्रचारक भी है. उनकी कही हर बात का संघ के स्वयंसेवकों और उनके परिवारों पर किस कदर असर होता है, ये सच्चाई जानने के लिए रायपुर में जुटे कांग्रेसी दिग्गजों को वहां होने वाली सुबह की किसी शाखा में एक आम आदमी की तरह हिस्सा लेना चाहिये. और पूरी ईमानदारी के साथ ये जानने की कोशिश करनी चाहिये कि इस शख्स में आख़िर ऐसा क्या है कि उसकी हर बात सुनकर लाखों लोग सिर्फ मुरीद ही नहीं होते, बल्कि कोई भी चुनाव आते ही निस्वार्थ तरीके से बीजेपी के उम्मीदवार को जिताने के लिए अपनी पूरी जी-जान लगा देते हैं. 


मुख्य विपक्षी होने के नाते कांग्रेस मोदी सरकार को अगर ज्वलंत  मुद्दों पर घेरती है, तो उसकी आलोचना कोई भी समझदार शख्स नहीं करेगा लेकिन उसके नेताओं की बेलगाम जुबान ही पीएम मोदी को हर बार एक ऐसा नया अवसर दे देती है, जहां कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को भी बगले झांकने की नौबत आ जाती है.  ईमानदारी से आकलन करेंग, तो राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से जो थोड़ा-बहुत मोमेंटम बना था, उसे दिल्ली एयरपोर्ट पर कांग्रेसी नेताओं के लगाये इस नारे ने चकनाचूर कर दिया-"मोदी तेरी कब्र खुदेगी. " कांग्रेसी नेता भले ही न मानें लेकिन इस अदद नारे ने उनके पैरों पर कुल्हाड़ी मारने वाला काम कर दिखाया है, तो वहीं मोदी के लिए सहानुभूति की लहर ला दी है. 


शायद आपको याद होगा कि देश में कोरोना महामारी की विपदा आते ही पीएम मोदी ने कहा था कि हमें इस आपदा में भी अवसर तलाशने हैं. इसलिये विरोधियों के हर हमले को भी वे अपने लिए एक सुनहरा अवसर मानते हुए उसका जवाब देने से चूकते नहीं हैं. राजनीति में किसी भी नेता की यही सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाती है कि वह विपक्ष के फेंके किसी जुमले को भी अपने पक्ष में भुनाने में कितना माहिर है. अभी तक दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी को ही इसमें सबसे माहिर समझा जाता था लेकिन इस कब्र वाले नारे के बाद लगता है कि मोदी ने उनको भी पीछे छोड़ दिया है. 


फिर से याद दिलाऊं और शायद आपने भी गौर किया होगा  कि विरोधियों को जवाब देते वक्त मोदी उसी चाणक्य नीति का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें अपने दुश्मन की उपेक्षा करने के लिए कहा गया है. पिछले नौ साल में उनके मुंह से शायद ही किसी ने सुना होगा कि विरोधी दल की आलोचना करते हुए मोदी ने सोनिया या राहुल गांधी या फिर किसी और कांग्रेसी नेता का नाम लिया हो. 


शुक्रवार को भी मोदी अपनी उसी नीति पर अडिग रहे. नगालैंड में रोड शो के बाद वे मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग पहुंचे थे. वहां चुनावी जनसभा में उन्होंने कहा,  'जिन्हें देश ने नकारा वो माला जप रहे हैं. वो कह रहे हैं मोदी तेरी कब्र खुदेगी और देश कह रहा है मोदी तेरा कमल खिलेगा. ' अब इसे क्या समझा जाये? कांग्रेस की नादानी या मोदी की वह चाणक्य नीति जो विरोधियों के हर अपमान को वोटों में बदलने का हुनर जानती और समझती है!


नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.