उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी अब टूटने की तरफ आगे बढ़ रही है.पहले कई मुस्लिम नेताओं ने अपनी नाराज़गी जताते हुए साइकिल की सवारी को छोड़ दिया, तो अब सपा के सहयोगी दल भी एक-एक करके उसका साथ छोड़ रहे हैं.


चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने मिन्नतें करके ओम प्रकाश राजभर को मनाया था कि उनकी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी यानी सुभासपा उनके साथ मिलकर चुनाव लड़े क्योंकि इस क्षेत्रीय दल का पूर्वांचल के कुछ हिस्सों में खासा जनाधार है.


राजभर की पार्टी के छह विधायक भी चुनकर आये हैं. लेकिन सियासी फायदे के लिए हुई इस दोस्ती में जब अहंकार आड़े आने लगा, तो इसका भी वही हश्र हुआ, जो अक्सर ऐसी मित्रता का होता है. वैसे तो अखिलेश की अपने चाचा शिवपाल यादव से भी कभी नहीं निभी और उन्होंने सपा से अलग होकर अपनी अलग पार्टी बना ली थी लेकिन साथ मिलकर चुनाव लड़ने के लिए उन्हें मना लिया गया था. लेकिन अब अखिलेश ने शिवपाल और राजभर दोनों को ही सियासी तलाक देकर सपा के साये में रहने से आज़ाद कर दिया है. 


समाजवादी पार्टी ने सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के प्रमुख शिवपाल यादव को एक चिट्ठी लिखकर जमकर लताड़ लगाई है लेकिन साथ ही दोनों नेताओं को खुली छूट भी दे दी है कि वो कहीं भी जा सकते हैं. राजभर ने सपा के पत्र पर पलटवार करते हुए कहा कि उनका (अखिलेश यादव) तलाक आ गया है, हमने उनके तलाक को कबूल कर लिया है. वहीं, शिवपाल यादव ने ट्वीट किया कि मैं वैसे तो सदैव से ही स्वतंत्र था, लेकिन समाजवादी पार्टी द्वारा पत्र जारी कर मुझे औपचारिक स्वतंत्रता देने हेतु सहृदय धन्यवाद.


बता दें कि सपा के इन दोनों ही सहयोगी दलों ने राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के साझा उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का विरोध करते हुए उन्हें अपना समर्थन न देने का ऐलान किया था. उसके बाद राष्ट्रपति चुनाव के दिन हो रही वोटिंग से ऐन पहले पार्टी मुखिया अखिलेश यादव को ये बयान देने पर मजबूर होना पड़ा था कि जिस पार्टी को जो फैसला लेना है, ले सकती है. 


ओपी राजभर और शिवपाल यादव दोनों ने ही एनडीए की उम्मीदवार द्रोपदी मुर्मू को अपना समर्थन दिया था. वहीं हाल ही में ओपी राजभर ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी मुलाकात की थी, जिसके बाद यूपी की योगी सरकार ने राजभर को वाई-श्रेणी की सुरक्षा मुहैया कराई है. इसलिये सियासी हलकों में यही कयास लगाए जा रहे हैं ओपी राजभर एक बार फिर से बीजेपी का दामन थाम सकते हैं. 


हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव में और उससे पहले साल 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में राजभर की पार्टी एनडीए का ही हिस्सा थी लेकिन पिछले चुनाव में सीटों के बंटवारे पर बात न बनने से उन्होंने बीजेपी को छोड़कर अखिलेश की साइकिल की सवारी कर ली थी.


सपा द्वारा राजभर को भेजे गए पत्र में कहा गया है राजभर समाजवादी पार्टी लगातार भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ रही है. आपका भारतीय जनता पार्टी के साथ गठजोड़ है और लगातार भारतीय जनता पार्टी को मजबूत करने के लिए काम कर रहे हैं. अगर आपको लगता है कि कहीं ज्यादा सम्मान मिलेगा तो वहां जाने के लिए आप स्वतंत्र हैं. वहीं शिवपाल यादव को संबोधित पत्र में कहा गया है कि शिवपाल यादव जी अगर आपको लगता है कि कहीं ज्यादा सम्मान मिलेगा तो आप वहां जाने के लिए स्वतंत्र है.


हालांकि यूपी के सियासी हलकों में एक कयास ये भी लगाया जा रहा है शिवपाल और राजभर मिलकर तीसरा मोर्चा भी बना सकते हैं लेकिन इसकी संभावना कम है. वह इसलिये कि हर नेता राजनीति में पहले अपना फायदा ही देखता है और उसके मुताबिक ही फैसला लेता है. राजभर को बीजेपी के साथ जाने में अपना फायदा दिख रहा है क्योंकि छह विधायकों वाली उनकी पार्टी को योगी सरकार में एक मंत्री पद मिलने के आसार हैं.


हालांकि साल 2017 में बनी योगी सरकार में भी राजभर को पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग और विकलांग जन विकास विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया था.लेकिन मई 2019 में उन्हें गठबंधन विरोधी गतिविधियों के कारण मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया था.


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