आज से तीन साल पहले गलवान घाटी में चीन और भारत के सैनिकों की भिड़ंत हुई थी, जिसमें भारत के 20 जवानों ने बलिदान दिया था. चीन ने पहले तो लगातार ऐसी झड़प में उसके सैनिकों के मरने से इनकार किया, फिर 8 महीने बाद मृतक सैनिकों की संख्या 5 बताई. हालांकि, ऑस्ट्रेलिया के एक अखबार ने कुछ और ही दावा किया था और उसके मुताबिक चीन के 45 से 60 जवानों की मौत हुई थी. बहरहाल, तब से चीन और भारत के बीच एलएसी पर तनाव लगातार बढ़ा ही है, घटा नहीं है. 


चीन आदतन विस्तारवादी


गलवान में तीन साल पहले जो घटना हुई थी, उसमें भारत के 20 जवानों के बलिदान की खबर थी. चीन ने पहले तो अपने जवानों की मौत से इनकार किया, फिर 8 महीने बाद उन्होंने स्वीकारा कि उनके 4 सैनिकों की मौत उस झड़प में हुई थी. अभी रिपोर्ट के मुताबिक अक्साई चिन और गलवान में चीन के 50-60 हजार जवान इकट्ठा हैं और भारत की तरफ से 1 लाख 20 हजार जवान तैनात हैं. हालात लगभग स्टेलमेट के हैं, यानी स्थिति तनावपूर्ण हैं, दोनों तरफ से कोई अपनी जगह से हिलने को तैयार नहीं है. अभी तक कुल 18 बार कोर कमांडर की बैठक हो चुकी है और दो साल पहले दोनों देशों के रक्षा मंत्रालय ने तय किया कि जिन भी जगहों पर संघर्ष की स्थिति है, वहां 'डिस-इंगेजमेंट' और 'डि-एस्केलेशन' करेंगे. 'डिस-इंगेजमेंट' का अर्थ है कि सेनाओं को एलएसी से सेना को दूर रखेंगे. 'डि-एस्केलेशन' का अर्थ है कि टैंक या हल्के आर्मर्ड जो हथियार हैं, उनको भी बहुत दूर हटाएंगे.



लगातार झूठ बोलता है चीन


हालांकि, 18 बार की मीटिंग हुई, लेकिन अभी तक फ्रिक्शन-पॉइंट यानी जहां संघर्ष की स्थिति है, वहां हालात ठीक नहीं हुए. और दो जगह यानी देमचोक और देपसंग प्लेन पर इनका कब्जा जारी है और इसीलिए 17 जून 2020 को हमारे विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि अगर सीमा के पार शांति नहीं रही, तो द्विपक्षीय संबंधों पर उसका असर बहुत पड़ेगा. अभी तक वही बात चल रही है. हमारे बीच कुछ 30 डायलॉग्स हैं, जैसे- मीडिया एक्सचेंज या फोरम, थिंक टैंक फोरम, स्ट्रेटेजिक डायलॉग, स्ट्रेटेजिक एंड इकोनॉमिक डायलॉग, रक्षा मंत्रालय के वार्षिक डायलॉग...और इस तरह के बहुतेरे डायलॉग हैं, जो 2020 के बाद शुरू नहीं हुए हैं. यूथ एक्सचेंज हम करते थे हरेक साल. 1000 नौजवानों को हम बुलाते थे, हमारे 1000 नौजवान जाते थे, एक-दूसरे को समझने के लिए, तो वो सारा जैसा कि मैंने बताया, लगभग 30 डायलॉग्स हैं, जो ठप पड़े हुए हैं, पिछले तीन साल से. द्विपक्षीय संबंधों में केवल वाणिज्यिक स्तर पर कुछ बात हो रही है. जबकि, यह भी एक जटिल विषय है. हमारा व्यापार-असंतुलन काफी है. व्यापार घाटा जो है, चीन के पक्ष में बहुत है. हमारी कॉमर्स मिनिस्ट्री कुछ ऐसे उपाय कर रही है, जिससे वह घाटा कम हो. कुछ चीजें ऐसी हैं जो हमें नहीं चाहिए. जैसे, विनाइल की मूर्तियां, इलेक्ट्रिसिटी बल्ब वगैरह, जो सस्ते में मिलता है. उन सबको हम बंद करेंगे. यह तीन साल की हालत है. 


हालात नहीं हैं सामान्य 


जब चीन के रक्षामंत्री ली शांगफू दिल्ली आए और जी20 और एससीओ वगैरह की मीटिंग के संदर्भ में भारत यात्रा की. जब वह आए तो उन्होंने कहा था कि सब कुछ नॉर्मल है. उन्होंने बताया कि बफर जोन है और उसे खाली करने का कोई संकेत नहीं दिया. हालांकि, 2021 में दोनों ही देशों के रक्षा मंत्रालय का संयुक्त बयान आया था कि सभी फ्रिक्शन पॉृइंट से दोनों ही देश पीछे हटेंगे. वहां से हथियारों और सैनिकों को हटाएंगे. चीन अपनी बात पर कायम नहीं रहता है और यह उसकी पुरानी बात है. 1993, 1996 में, 2006 में 2013 में जो शांति एवं परस्पर विश्वास कायम करने के समझौते किए हमने, उनको भी चीन ने पूरी तरह नहीं माना, न ही अपनी तरफ से उसका पालन किया. 2021 में जो उन्होंने हस्ताक्षर किया, उस पर भी कायम नहीं रहे. अब भारत की सोच ये है कि पहले से जो समझौता है, उसको ही चीन जब पालन नहीं कर रहा है, तो फिर नया समझौता करने का मतलब क्या रह जाता है? भारत पहले शांति चाहता है, सैनिकों का हटाना चाहता है और चीन के हिसाब से जो अभी है, वही शांति है. तो दोनों देशों की विचारधारा में काफी अंतर है. 


गलवान में हुआ, सिक्किम में हुआ, पिछले साल 9 दिसंबर को तवांग के बगल में यांगजी इलाके में छिटपुट संघर्ष हुआ. मिडिल सेक्टर में भी हो रहा है. सीमा-विवाद जहां भी है, वहां चीन एक्टिव है. वहां एक मिलिटराइज्ड जोन जैसा बन गया है, तो जब ली शांगफू कहते हैं कि सब ठीक है, तो वह दरअसल झूठ बोल रहे होते हैं. 




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