भारत सरकार के एनएफएचएस (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे) के मुताबिक, देश में 23 फीसदी से ज्यादा बच्च्यों के साथ बाल विवाह हुआ है. कुछ राज्यों में तो ये स्थिति और भी ज्यादा खराब है और कुछ जिलों में 55 फीसदी तक बच्चियों के साथ बाल विवाह हुआ है. यानी, इसका सीधा-सीधा मतलब है कि रोजाना करीब साढ़े चार हजार बच्चियों का बाल विवाह हो रहा है. हर साल में 16 लाख से ज्यादा बच्चियों का बाल विवाह होता है. ये यूनिसेफ के आंकड़े हैं, जबकि गैर सरकारी संगठनों के अनुसार तो ये संख्या कहीं और ज्यादा हो सकती है. देश के सामने ये बहुत ही ज्यादा गंभीर स्थिति है. 


बच्चों का विवाह दरअसल शारीरिक और स्वास्थ्य की ही नहीं बल्कि बच्चों की सुरक्षा, उनकी शिक्षा, देश की प्रगति की समस्या है. इस बारे में अगर सीधे-सीधे बात करें तो अगर एक बच्ची की कम उम्र में शादी हो जाती है तो कम उम्र में वो प्रग्नेंट भी होती है, और जैसा भारत में आज का कानून है, वो ये कहता है कि किसी भी बच्चे के साथ किसी भी तरह का यौन आचरण या सेक्चुअल इंटरकोर्स शादी में भी अगर होता है तो वो रेप माना जाए. सुप्रीम कोर्ट ने चार साल पहले अपने एक फैसले में ऐसा कहा है.



बाल विवाह गंभीर अपराध


ऐसे में यदि बच्चों के साथ हो रहा इंटरकोर्स होना रेप है, तो ये मान के चलिए कि ये एक गंभीर कानूनी समस्या है. इसके बाद बच्चे कम उम्र में शारीरिक और मानसिक रुप से तैयार नहीं होते कि वे प्रेग्नेंट हो और बच्चे की डिलीवरी कर सके. इस वजह से देश में जो ऑपरेशन हो रहे हैं, उनकी तादाद में काफी बढ़ोतरी हुई है. जो छोटे बच्चों के बच्चे होते हैं, वो शारीरिक तौर पर सक्षम भी नहीं होते हैं और कमजोर पैदा होते हैं. ये तमाम समस्याएं स्वास्थ्य और कानून संबंधी हैं.


अगर एक बच्चे की शादी हो जाती है और जब बाल विवाह की संख्या देश में 16 लाख से ऊपर है तो इतनी बच्चियों की अगर हर साल शादी हो रही है तो वो शिक्षा से भी वंचित है. देश की प्रगति में, सामाजिक और आर्थिक विकास में भी योगदान देने में अक्षम साबित हो जाती है. इस वजह से ये एक गंभीर समस्या है, जिसका शिक्षा, स्वास्थ्य, अपराध और पूरे देश की प्रगति पर सीधा-सीधा असर पड़ता है.



कानून सख्त, अमल में ढिलाई


भारत में सभी तरह के बच्चों की सुरक्षा को लेकर कानून बहुत ज्यादा सख्त भी है और बहुत ज्यादा अच्छे भी हैं. लेकिन, इनका अनुपालन पूरे देश में सबसे बड़ी समस्या है. 2015 से लेकर 2021 तक पिछले अगर पांच सालों के हम आंकड़ें ले, जो नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार मौजूद हैं तो पाएंगे कि 2021 में बाल विवाह के करीब एक हजार मुकदमे दर्ज किए गए थे, लेकिन उससे पहले ये संख्या 5 सौ, चार सौ, तीन सौ, सात सौ थी. 


कुल मिलाकर पांच साल में 2 हजार या तीन हजार मुकदमे दर्ज नहीं किए गए. ऐसे में अगर 2021 में एक हजार मुकदमे दर्ज होते हैं तो ये मानकर चलिए कि देश में करीब 788 जिले हैं, हर जिले में एक साल में औसत रुप से एक मुकदमा दर्ज हो रहा है. यानी, एक तरफ जहां बच्चों की शादी की संख्या 16 लाख है तो वहीं दूसरी तरफ मुकदमे दर्ज हो रहे हैं एक हजार. ऐसे में ये कानून सिर्फ मजाक से बनकर रह जाता है, क्योंकि इससे कोई डर नहीं लगता है.


बाल विवाह कानून का नहीं डर


देश में सबसे बड़ी बाल विवाह को लेकर चुनौती ये है कि इसके खिलाफ बने कानूनों का सख्ती से अनुपालन किया जाए. पिछले कुछ दिनों में पहली बार ये देखने में आया है कि असम सरकार ने बहुत ही अच्छे कदम उठाए हैं. जनवरी में उन्होंने डोर टू डोर सर्वे करके ये पाया कि न केवर 25 या 27 साल के नौजवान, 12-13 साल की लड़कियों के शादी कर रहे हैं, बल्कि बल्कि पंडित, कादरी व पुजारी फर्जी रुप से बच्चियों की शादी करवा रहे थे, ऐसे हलवाई, टेंट वाले, जिन्होंने छोटी बच्चियों की शादी करवा दी थी, इन सबके खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए और सिर्फ एक महीने में तीन हजार से ज्यादा मुकदमे दर्ज किए गए.


हालांकि, बहुत सारी जगहों से इसका विरोध किया गया, लेकिन ये समाज को सोचना है कि हम किसी भी तरह के अपराध को बढ़ावा देना चाहते हैं क्योंकि सरकार जो उसको रोकने के लिए सख्त कदम उठाती है तो हम मानवाधिकारों या दूसरी ऐसी बातें करके चाहते हैं कि सरकार अपराधों के खिलाफ कदम ही न उठाए. ऐसे में असम सरकार का ये कदम काफी प्रशंसनीय है और न केवल भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए ये एक सबक है.


जब संयुक्त राष्ट्र ये कह रहा है कि अभी बाल विवाह के खात्म में 300 साल लगेंगे. जब संयुक्त राष्ट्र कह रहा है भारत में 2050 तक ये दर 6 फीसदी होगी, तो यदि असम सरकार बाल विवाह को लेकर ये कह रही है कि ये अपराध है और इस पर सख्त कदम उठाए जाने चाहिए तो पूरी दुनिया को इसी आधार पर एक व्यापक तरीके से एक्शन लेना चाहिए और बाल विवाह जो एक अपराध है, उसके खिलाफ उसी तरह सख्त एक्शन उठाने जाने की जरूरत है.



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