कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का जब वहां की संसद में ये बयान आया, इसमें उन्होंने भारत पर ऊंगली उठाई और कनाडाई आतंकी हरजीत सिंह निज्जर की हत्या के लिए भारत की एजेंसी को कसूरवार ठहरा दिया. निज्जर की हत्या जून में की गई थी और करीब तीन महीने के बाद भारत के ऊपर कनाडा के पीएम की तरफ से ये आरोप लगाया गया, कि इसमें भारतीय खुफिया एजेंसी का हाथ है. 


इसके बाद भारत सरकार के आधिकारिक प्रवक्ताओं की तरफ से ये बात कही गई थी कि ये आरोप राजनीति से प्रेरित है. दरअसल, ये आरोप प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की एक राजनीतिक मजबूरी है, क्योंकि उनकी सरकार नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी की वैशाखी पर टिकी हुई है. जस्टिन ट्रूडो की सरकार अल्पमत में है और वो जगमीत सिंह धालीवार की नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थन से सत्ता में बनी हुई है. 


भारत पर आरोप, ट्रूडो की मजबूरी


ट्रूडो सरकार के ऊपर ये प्रेशर बना है कि वे भारत पर दबाव बढ़ाएं. इसलिए, उन्होंने बिना जांच पूरी किए हुए ये आरोप लगा दिए. एक हकीकत ये भी है कि जांच कभी भी राजनीतिक नेतृत्व की तरफ से नहीं की जाती है. वो तो जो उनकी इंटेलिजेंस एजेंसी हैं, सिक्योरिटीज एजेंसी हैं, पुलिस एजेंसी है, वो ये काम करती हैं. उन्होंने तो इन तीन  महीने के दौरान जांच पूरी की है और न ही चार्जशीट बनाई है, न कोई एफआईआर दर्ज की है और न ही किसी की गिरफ्तारी हुई है.



ऐसे हालात में इस तरह का आरोप लगा देना, जिसके लिए कनाडा के पास कोई तथ्य नहीं है, कोई सबूत नहीं है, कुछ यही बात विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कही है कि हमें ठोस सबूत इस मामले पर नहीं सौंपे गए हैं और अगर दिया जाएगा तो भारत सरकार उसे देखेगी. 


इसलिए, पीएम जस्टिन ट्रूडो का ये अपना ही चक्रव्यूह है, जिसमें वे खुद फंस गए हैं. भारत और पूरी दुनिया तो उनसे यही कह रही है कि ये जो इन्वेस्टिगेशन है उसे पूरा करिए, और अगर कोई प्रुफ है, कोई ठोस तथ्य है तो उसे दीजिए. ट्रूडो की अपनी पार्टी के लोग और जो विपक्ष में हैं, उनके अपने ही देश में, वो भी कुछ यही मांग कर रहे हैं कि आप कुछ इसका प्रमाण दीजिए. 



अमेरिका ने क्यों किया कनाडा का समर्थन?


दरअसल, ये समझ से परे है कि अमेरिका ने क्यों पूरे मामले पर कनाडा का समर्थन किया है. फाईव आइज की जो कुछ भी इन्फॉर्मेशन होगी, ऐसा लगता है कि न तो उन्होंने ये सब भारत के साथ साझ किया है, क्योंकि अगर शेयर किया होता तो हम ये कहते कि इन्फॉर्मेशन दी गई है. सार्वजनिक तौर पर तो ये नहीं पता चला कि आखिर ऐसी क्या इन्फॉर्मेशन है, वे कहते हैं ह्यूमेन इंटेलिजेंस है, सिग्नल इंटेलिजेंस है. 


जब तक हमें उसके बारे में कुछ मालूम नहीं है तो उसके बारे में हम टिप्पणी नहीं कर सकते हैं. ऐसे में क्या जानकारी है, क्या फाइव आइज के बीच शेयर की गई, उसे बिना देखे कुछ नहीं कहा जा सकता है.


कनाडा ने कहा कि क्रेडिबल एलिगेशन ऑफ पोटेंशियल लिंक्स, इसके लिए उन्हें सबूत देना होगा. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने साफतौर पर ये बात कही है, भारत ने सिरे से आरोपों को खारिज कर दिया है और कहा है कि ये हमारी पॉलिसी नहीं है.


जहां तक बात राजनयिकों के फोन टैपिंग की है तो राजनयिकों के ऊपर नजर रखना विएना संधि का एक तरह से उल्लंघन है. सभी देशों के इंटेलिजेंस होते हैं लेकिन वे जो संदिग्ध लोग होते हैं, उन्हीं के बारे में ट्रैक किया जाता है. लेकिन किसी देश के ऊपर ऐसे जासूसी करना ये विएना संधि के खिलाफ जाता है. अगर कनाडा ने किसी भारतीय राजनयिक की जासूसी की भी है तो विएना संधि के खिलाफ जाता है.


दूसरी बात ये कि कनाडा पीएम की तरफ से लगाए गए आरोपों के इतने दिन हो गए, अगर पीएम ट्रूडो के पास कोई ऐसा सबूत है भी तो पूरी दुनिया मांग रही है, उन्हें लोगों के बीच लाना चाहिए. ठोस सबूत लाइये. लेकिन, ये सबूत देने में अमेरिका पूरी तरह से विफल रहा है.


ट्रूडों के बयान बिना सबूत के


हालांकि, पीएम ट्रूडो ने कहा कि उन्होंने भारत के साथ काफी इन्फॉर्मेशन शेयर कर दी है. लेकिन, भारत के सामने कोई ठोस या मजबूत जानकारी नहीं दी गई है, जिसको लेकर भारत किसी तरह का कदम उठाए. दूसरा ट्रूडो की तरफ से आरोप लगाना काफी गंभीर मामला है. साथ ही, गैर जिम्मेदाराना है. इन देशों को ऐसा लगता है कि जो हम कहेंगे उसे सच मान लिया जाएगा और पूरी दुनिया को मानना पड़ेगा, जबकि बाकी कोई देश अगर कुछ कह रहा है तो उसका कोई महत्व नहीं है. ये बात ठीक नहीं है.


यही बात विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने कहा है कि आप दोहरे मापदंड को छोड़िए. अगर कोई तथ्य है तो उसे सामने लाइये या फिर जो आरोप लगाए उसका खामियाजा भुगतने के लिए तैयार रहिए. 


जी20 के दौरान पीएम ट्रूडो के साथ भारत ने जो जरूरी था, वो सारी औपचारिकताएं निभाई. लेकिन ट्रूडो राष्ट्रपति के साथ डिनर पर भी नहीं आए. इसके बाद, पीएम मोदी के साथ मुलाकात के दौरान मोदी ने बता दिया का कनाडा में खालिस्तानी आतंकी के साथ ट्रूडो को क्या करना चाहिए. लेकिन, ट्रूडो ने इसे भी नहीं समझा. 



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