नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल  का विस्तार करने से एन पहले जिस तरह से कई बड़े मंत्रियों की छुट्टी की है, वह थोड़ा चौंकाने वाला इसलिए भी है कि मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में तीन बार कैबिनेट का विस्तार किया, तब भी इतना बड़ा और साहसिक फैसला नहीं लिया. अब सियासी गलियारों में ये सवाल तैर रहा है कि हटाने वाले मंत्रियों को क्या सजा दी गई है?


लेकिन पीएम मोदी की गुजरात वाली कार्यशैली को नजदीक से जानने वाले लोग बताते हैं कि उनकी गुड बुक में कभी कोई व्यक्ति नहीं होता, बल्कि उसका काम होता है. अगर किसी के काम से वे नाखुश हैं, तो वे उसके बारे में कोई बड़ा फैसला लेने से पहले उसे सिर्फ संकेत भर देते हैं. जो समझ गया वह रह जाता है और न समझने वाला बाहर हो जाता है. अपनी उसी शैली को उन्होंने दिल्ली में शायद पहली बार दोहराया है, इसलिए लोग हैरान हो रहे हैं.


हालांकि सियासी हलकों में उठा सवाल इसलिए भी जायज है कि इसमें सबसे बड़ा नाम स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन का है, जिनसे स्वास्थ्य मंत्रालय छीन लिया गया है. लिहाजा इसका मतलब यही निकाला जा रहा है कि कोरोना की दूसरी लहर से निपटने में जो बदइंतजामी हुई और जिसके चलते सरकार सवालों के घेरे में आई, उसका सारा ठीकरा हर्षवर्धन पर फोड़ा गया. कहा जा रहा है कि पीएम ने जितने भी मंत्रियों के प्रमोशन या डिमोशन करने का जो फैसला लिया है, वह उनके दो साल के कामकाज की समीक्षा के आधार पर ही लिया है. बताते हैं कि दो साल का रिपोर्ट कार्ड जांचते वक्त उन्होंने एक सख्त एग्जामिनर की भूमिका में आते हुए ज़रा भी रियायत नहीं बरती है.


पीएम के इस इम्तिहान में कुछ चेहरे अपने बड़बोलेपन की वजह से भी पास नहीं हो सके क्योंकि अहम मंत्रालय संभालने के बावजूद न्यूज़ चैनलों पर भले ही उनका प्रदर्शन बहुत बेहतर रहा हो लेकिन मंत्रालय में वह औसत या उससे भी कम था. सूत्रों के मुताबिक रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावड़ेकर को हटाने की बड़ी वजह यही मानी जा रही है. जबकि श्रम व रोजगार मंत्रालय संभाल रहे संतोष गंगवार को हटाने की सजा वह एक चिट्ठी बनी जो उन्होंने कोरोना काल के वक्त लिखी थी, जिसमें उन्होंने यूपी सरकार की जमकर आलोचना की थी. वह चिट्ठी सोशल मीडिया पर भी खूब वायरल हुई थी. वैसे भी न तो पीएम मोदी का मिजाज ऐसा है और न ही कोई भी पीएम यह कभी चाहेगा कि उनकी कैबिनेट का एक मंत्री अपनी ही पार्टी की राज्य सरकार की ऐसी आलोचना करे, जो जमाने में तमाशा बन जाए.


लोकतंत्र में किसी को मंत्री बनाने या हटाने का सारा विशेषाधिकार प्रधानमंत्री का ही होता है लेकिन एक साथ बड़ी संख्या में इस्तीफे लेने के बाद विपक्षी दल भी सरकार पर हमलावर हो गया है. विस्तार से पहले हुए कई इस्तीफे पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने निशाना साधते हुए कहा, 'मैं नहीं कह सकती कि इतने सारे मंत्रियों ने इस्तीफा क्यों दिया?' स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन के इस्तीफे पर ममता ने कहा कि क्या आपको लगता है कि वे शासन को लेकर गंभीर हैं? उन्होंने कहा. 'कोरोना को लेकर सारी बैठकें प्रधानमंत्री करते हैं. स्वास्थ्यमंत्री को शिकार बना रहे हैं. अगर वे गंभीर होते तो कोविड-19 की दूसरी लहर नहीं होती.'


ममता ने यह सवाल भी किया कि क्या अचानक बाबुल सुप्रियो और देबाश्री अब बीजेपी के लिए गलत हो गए हैं? वहीं कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, 'अगर परफॉर्मेंस ही पैमाना है तो सबसे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को हट जाना चाहिए क्योंकि उनके रहते चीन ने हमारी जमीन पर कब्जा कर लिया है. गृह मंत्री को भी हट जाना चाहिए, क्योंकि उनके रहते मॉब लिंचिंग और कस्टोडियल डेथ जैसे मामले आम हो गए हैं. नक्सलवाद बेकाबू हो गया है.'


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