यूनान के प्राचीनतम शहर एथेंस में जन्मे मशहूर दार्शनिक सुकरात ने सदियों पहले कहा था- "इस दुनिया में सम्मान के साथ जीने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है कि आप वो बनो, जो दूसरों को दिखाते हो." जिन अंग्रेजों ने तकरीबन दो सौ साल तक भारत पर राज किया, उसे हमारी सरकार ने अपने सिर्फ एक कदम से ही ये अहसास करा दिया कि अब ये भारत वो नहीं रहा, जो हर फरमान मानने के लिए खामोशी से तैयार हो जाए. अब ये 75 बरस का ऐसा जवान देश बन चुका है जो बोलने से पहले सोचता तो जरूर है लेकिन अगर एक बार कुछ बोल दिया, तो फिर उसे करके भी दिखाता है. यही किसी देश के आत्मसम्मान की सबसे बड़ी पहचान भी होती है. कोरोना वैक्सीन के मसले पर भारत ने ब्रिटेन के प्रति जो सख्त रुख अपनाया, उसके कारण ही इतने सालों में पहली बार ब्रितानी हुकूमत को भारत के आगे झुकना पड़ा. कहने को ये बात बहुत मामूली लग सकती है लेकिन अगर इसकी गहराई में जाएं तो कूटनीतिक लिहाज से भारत के लिए इसे एक बड़ी जीत के तौर पर ही देखा जाना चाहिए.


वैसे सच तो ये भी है कि अगर भारत ने भीगी बिल्ली बने रहने वाला ही रुख अपनाए रखा होता, तो कोई वजह ही नहीं थी कि ब्रिटेन इस मामले पर इतनी आसानी से झुक जाता. दरअसल, ब्रिटेन को ये अहसास ही नहीं था कि वैक्सीन को लेकर उसने भारत के लिए जो भेदभाव वाली नीति बनाई है, उसका इतना करारा जवाब भी उसे मिल सकता है. जवाब मिलने के बाद उसका वही हाल हुआ, जो अखाड़े की मिट्टी में कुश्ती लड़कर हार गए किसी तगड़े पहलवान का होता है. ब्रिटेन ने अब नरम रवैया अपनाते हुए अपने क्वारंटीन नियमों में बदलाव किया है. जिन भारतीयों को कोविशील्ड वैक्सीन की दोनों डोज लगी होगी, उन्हें अब क्वारंटीन नहीं रहना होगा. इसके अलावा, जिस वैक्सीन को ब्रिटिश सरकार ने मंजूरी दी है, उसकी दोनों डोज लेने वाले भारतीयों को भी क्वारंटीन में रहने की जरूरत नहीं होगी. ये नियम 11 अक्टूबर से वहां लागू हो जाएंगे, जो भारत से जाने वाले यात्रियों के लिए किसी सौगात से कम नहीं है.


भारत में ब्रिटेन के राजदूत एलेक्स ऐलिस ने ट्वीट कर ब्रिटेन द्वारा यात्रा नियमों में किए गए बदलाव की जानकारी दी है. उन्होंने लिखा, ''भारत से ब्रिटेन जाने वाले भारतीयों के लिए कोई भी क्वारंटीन नियम लागू नहीं होगा. उन्हें कोविशील्ड या फिर यूके-अप्रूव्ड वैक्सीन लगी होनी चाहिए. यह नियम 11 अक्टूबर से लागू होंगे.'' इसके साथ ही ब्रिटेन सरकार ने भारत सरकार का धन्यवाद भी किया है. एलेक्स ने कहा, ''पिछले महीने से सहयोग के लिए भारत सरकार को धन्यवाद.''


हालांकि लोकतंत्र होने के बावजूद अभी भी राजशाही की खुमारी में मस्त ब्रिटेन की तरफ से ही ये सारा बवाल पैदा किया गया. उसने पहले तो भारत में निर्मित किसी भी वैक्सीन को मानने से ही इनकार कर दिया था. भारत की तरफ से सख्ती दिखाने के बाद इतना असर हुआ कि उसने कोविशील्ड टीके को अपनी अंतर्राष्ट्रीय ट्रेवल एडवाइजरी में मंजूरी दे दी लेकिन उसकी धूर्तता की हद देखिये कि इन टीकों की दोनों खुराक ले चुके भारत से वहां पहुंचने वाले लोगों पर उसने 10 दिन तक क्वारंटीन होने की पाबंदी को तब भी बरकरार रखा. ये तो ठीक ऐसा फैसला हुआ कि हम आपकी बात तो मान रहे हैं लेकिन फिर भी भारत से आने वाले लोगों को 10 दिन तक तो हमारी गुलामी झेलनी ही होगी.


ब्रिटेन का ये अड़ियल रुख तब भी जारी रहा, जबकि उनकी विदेश मंत्री लिज ट्रूस ने 21 सितंबर को भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की थी और उस बातचीत में जयशंकर ने साफ इशारा कर दिया था कि अगर ये भेदभाव जारी रहा तो फिर भारत भी उसी हिसाब से जवाब देने के लिए पूरी तरह से तैयार है. फैसला आपका है, चाहें तो मानें, अन्यथा जो परेशानी हमारे नागरिकों को हो रही है, वही सब ब्रिटेन से भारत आने वाले लोगों को भी झेलनी होगी. तब लीज के पास भी कोई चारा नहीं था, सो वे आश्वासन देकर लौट गईं. लेकिन ब्रिटेन पहुंचकर वे अपनी सरकार के बनाए इस नए कानून में कोई बदलाव नहीं करवा सकीं. नतीजा ये हुआ कि भारत से ब्रिटेन जाने वाले लोगों के प्रति वहां की सरकार ने अपना रवैया जरा भी नहीं बदला और वैक्सीन की दो डोज ले चुके यात्रियों को वहां तब भी 10 दिन के लिए क्वारंटीन होना पड़ रहा था.


अब चूंकि अंग्रेज झूठी शान में रहते हुए अपने अहंकार को ही सबसे बड़ा हथियार मानते हैं तो इस पर चोट करना भी जरूरी था. भारत ने 'जैसे को तैसा' वाली अपनी प्राचीन नीति पर अमल किया और ब्रिटेन के खिलाफ जवाबी कदम उठाते हुए भारत की यात्रा करने वाले ब्रिटिश नागरिकों के लिए भी कोविड-19 को लेकर सख्ती बरतने का फैसला कर लिया. इसके मुताबिक 4 अक्टूबर से भारत आने वाले सभी ब्रिटिश नागरिकों को, चाहे उनकी वैक्सीन की स्थिति जो भी हो, इनका पालन करना अनिवार्य बना दिया गया. ब्रिटिश नागरिकों को भारत यात्रा के लिए प्रस्थान से 72 घंटे पहले तक की आरटीपीसीआर निगेटिव रिपोर्ट साथ रखने के अलावा भारत में उनके आगमन के बाद हवाईअड्डे पर ही उनकी कोविड-19 आरटीपीसीआर जांच को भो जरूरी कर दिया गया. इतना ही नहीं, भारत आगमन के बाद 8वें दिन उन्हें कोविड-19 आरटीपीसीआर जांच दोबारा करवाने की शर्त भी जोड़ दी गई. साथ ही सरकार ने बड़ा फैसला ये लिया कि वैक्सीन की दोनों डोज लगे होने के बावजूद ब्रिटेन से आने वाले यात्रियों को 10 दिनों के लिए होम क्वारंटीन या उनके गंतव्य स्थान पर हर हाल में क्वारंटीन में ही रहना होगा.


दरअसल,ब्रिटेन में भले ही चुनाव होते हैं और सरकार भी लोगों के वोटों के दम पर ही चुनकर आती है लेकिन वहां राजशाही का अंत अभी भी नहीं हो पाया है. यही वो जड़ है, जो वहां पैदा होने वाले हर बच्चे के दिमाग में डाल दी जाती है कि भारत वो देश है, जिस पर हमने दो सौ साल तक राज किया था. ये एक तरह का 'सुपिरियरटी कॉम्लेक्स' है, जिस पर अगर हमारी सरकार ने अपना हथौड़ा नहीं चलाया होता, तो ब्रिटेन को न अपनी हैसियत पता लग पाती और न ही हमारी ताकत का अहसास हो पाता. दो सौ साल तक गुलामी की जिंदगी जीने वाला मुल्क अगर महज तीन दिन में ही अपने बादशाह को सिर झुकाने पर मजबूर कर दे तो इसे आप अपनी फतह नहीं तो और क्या मानेंगे?


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