वह तस्वीर बहुत अच्छी लगती थी जिसमें दुर्गा बनी एक औरत अपने आठ हाथों में अलग-अलग किस्म की चीजें पकड़े हुए है. एक हाथ में बच्चा है, दूसरे में सब्जी का थैला, तीसरे में कलम, चौथे में फाइल यानी औरतों की मल्टीटास्किंग का सर्वोत्तम उदाहरण. यह बात और है कि मल्टीटास्किंग जैसे कॉन्सेप्ट मनुष्यों पर लागू नहीं होता. न औरतें इसके लिए बनी हैं. ठीक आदमियों की ही तरह उन्हें भी मल्टीटास्किंग में कोई महारत हासिल नहीं. उनका दिमाग किसी तरह की मल्टीटास्किंग करने लायक नहीं है. हमने खुद ही यह इमेज बनाई है कि आदमियों के मुकाबले, औरतें बेहतर तरीके से मल्टीटास्किंग कर लेती हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि हम औरतों से मल्टीटास्किंग करवाते ही रहना चाहते हैं.


हाल ही में साइंटिफिक जरनल प्लस वन ने एक स्टडी के बाद यह खुलासा किया है कि आदमियों और औरतों का ब्रेन ठीक एक तरह से काम करता है. औरतों में आदमियों के मुकाबले ऐसी कोई विशेषता नहीं होती कि एक साथ ढेर सारे काम कर पाएं. अगर आदमी एक साथ कई काम करने में गड़बड़ियां करते हैं तो औरतें भी करती हैं. स्टडी में कहा गया है कि औरतों से ज्यादा काम करवाने के फेर में हम उन्हें बेहतर बताते रहते हैं. औरतें भी खुश होकर एक साथ ढेर सारे काम एक साथ करती रहती हैं.


मल्टीटास्किंग दरअसल है क्या बला? मल्टीटास्किंग का मतलब है, अलग-अलग प्रकार के स्वतंत्र काम थोड़े से समय में एक साथ करना. स्टडी का कहना है कि मानव मस्तिष्क इतना शार्प नहीं होता कि बहुत सारे काम एक साथ कर पाए. हां, वह एक काम से दूसरे काम में शिफ्ट आसानी से कर लेता है. इसे ही हम मल्टीटास्किंग समझ बैठते हैं. मल्टीटास्किंग अपने आप में कुछ नहीं है. इसमें न तो आदमी सिद्धहस्त होते हैं, न औरतें. आम तौर पर औरतें काम के बोझ से ज्यादा दबी हुई होती हैं. उनके सामने यह भ्रम पैदा किया जाता है कि वे बहुत सारे काम एक साथ कर सकती हैं. इसी का नतीजा होता है कि वे अतिरिक्त काम अपने सिर पर लेती रहती हैं.


हाल में एक ब्रिटिश अध्ययन में कामकाजी औरतों की मानसिक स्थिति पर एक खुलासा भी किया था. यूके के मशहूर मैनचेस्टर विश्वविद्यालय और एसेक्स विश्वविद्यालय के एक साझा शोध में कहा गया था कि कामकाजी औरतों को दूसरी औरतों के मुकाबले 18 प्रतिशत अधिक तनाव का शिकार होना पड़ता है. तिस पर अगर उसके दो बच्चे हों तो यह तनाव बढ़कर 40 प्रतिशत हो जाता है. इस शोध में शरीर की मनोवैज्ञानिक प्रणालियों से जुड़े 11 संकेतकों या बायोमार्कर्स को शामिल किया गया था जोकि खराब स्वास्थ्य और मृत्यु से संबंधित थे.


शोध में कहा गया था कि इन बायोमार्कर्स में क्रॉनिकस्ट्रेस, हारमोनल लेवल और ब्लड प्रेशर शामिल हैं और औरतों में यह सभी पुरुषों के मुकाबले ज्यादा पाए गए हैं. बच्चों वाली मां में यह सब ज्यादा होता है, बजाय उन औरतों के जिनके बच्चे नहीं होते. सैलरी डॉट कॉम का कहना है कि मां और बीवी बनने वाली हर औरत एक साथ 10 पदों पर काम करती है. वह भी हफ्ते में करीब 97 घंटे. इस बात से कौन इनकार करेगा कि औरतों को आदमियों के मुकाबले ज्यादा काम करना पड़ता है. वह अनपेड वर्क भी ज्यादा करती हैं. जैसा कि ओईसीडी के डेटा कहते हैं कि भारत में रोजाना औरतों के हिस्से लगभग छह घंटे का घर काम आता है. यह अनपेड वर्क, उनके पेड वर्क के साथ होता है. जबकि आदमी उनके मुकाबले रोजाना एक घंटे से भी कम अनपेड वर्क करते है.


ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) के एक अध्ययन में कहा गया है कि भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में हाउसहोल्ड प्रोडक्शन आर्थिक गतिविधि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. चूंकि यह अनपेड है इसीलिए ज्यादातर औरतों द्वारा किया जाता है. यह इस बात पर निर्भर नहीं करता कि घर में कमाऊ कौन है- औरत या आदमी. औरत कमाऊ होकर भी आदमी के मुकाबले ज्यादा अनपेड वर्क करती है.


मल्टीटास्किंग को लेकर जो मिथ है, उसके चलते औरतों को लगातार जोता जाता है. औरत घर काम न करे, तो उसे जज करने वाले कम नहीं. ऐसा कहने वाले बहुत से मिलते हैं कि बेचारे आदमी को घर काम करना पड़ता है, चूंकि उसकी बीवी बहुत आलसी है. टेलीविजन पर कितने ही सीरियल्स में इसी कथासूत्र के इर्द-गिर्द कॉमेडी बुनी जाती है. आदमी बीवी से आतंकित रहता है और पड़ोस की भाभीजी पर लाइन मारता है. वह निरीह बन जाता है. चुपचाप, घर काम करते रहने वाली बीवी आदर्श का दर्जा पाती है, घर काम से दूर भागने वाली बीवी बुरी बन जाती है. वह औरत भी बुरी है जो घर संभाल नहीं सकती. अस्त-व्यस्त घर जैसे आदमियों को नजर ही नहीं आता. औरतें घर संभालने में लगी रहती हैं.


ऑस्ट्रेलिया की एक स्टडी गुड हाउसकीपिंग, ग्रेट एक्सपेक्टेशंस: जेंडर एंड हाउसवर्क नॉर्म्स में यह साफ कहा गया है कि अस्त-व्स्त घर आदमियों और औरतों, दोनों को नजर आते हैं, लेकिन ऐसे घर को ठीक करने का काम औरतें ही करती हैं. वह भी इसलिए क्योंकि घर की साफ-सफाई को लेकर भी उन्हें लोग लगातार जज करते हैं. आदमी किसी भी लिहाज से डर्ट ब्लाइंड; नहीं होते. वे काहिल की तरह घर की सफाई नही करते. सो, मल्टीटास्किंग में कोई पारंगत नहीं. औरतें भी नहीं. उनसे ऐसी उम्मीद न करें. औरतें खुद भी खुद से यह उम्मीद न करें. मल्टीटास्किंग का विकल्प है, सही श्रम विभाजन. आदमी खुद यह सोचें कि उन्हें औरतों के साथ मिलकर काम करना है. यह स्टीरियोटाइप उन्हें स्वयं तोड़ना होगा कि कोई खास काम किसी खास जेंडर का व्यक्ति ही कर सकता है.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)