जेपी आंदोलन से बिहार में उदित हुए राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया लालू प्रसाद यादव जब-जब जेल यात्रा करते हैं तब-तब यह सवाल सामने आ खड़ा होता है कि अब लालू का क्या होगा? लेकिन हर बार लालू जी सिद्ध कर देते हैं कि ‘जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू’. बात सच भी है क्योंकि वह बिहार के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर आसीन रहें या न रहें, सत्ता की चाबी का गुच्छा उनकी कमर में बंधा ही रहता था.


लेकिन इस जेल-यात्रा के बाद लालू जी की राह इतनी आसान नहीं रह जाएगी. एक तो उनकी अवस्था, दूसरे नीतीश कुमार के पलटी मारने के कारण बिहार के बदले राजनीतिक समीकरण और तीसरे खुद लालू के परिवार में मची कलह इसकी प्रमुख वजहें हैं. लालू के वकील चित्तरंजन प्रसाद कहते हैं कि उन्हें अधिकतम सात साल और न्यूनतम एक साल की कैद की सजा हो सकती है जबकि सीबीआई अधिकारियों के मुताबिक इस मामले में गबन की धारा 409 के तहत 10 साल और धारा 467 के तहत आजीवन कारावास तक की सजा भी हो सकती है! अगर ऐसा हुआ तो जेल से लौटने पर उनके लिए खैनी मलने के अलावा बिहार की राजनीति में क्या बचा रहेगा?

कुख्यात चारा घोटाले के एक और मामले में सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा बिहार के इस पूर्व मुख्यमंत्री को दोषी करार देने के बाद उनकी यह 9वीं जेल-यात्रा होगी. कितने साल की होगी यह 3 जनवरी को पता चलेगा. सजा सुनने के बाद लालू ने अपने ही अंदाज में प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि एक ही मुर्गी को नौ-नौ बार हलाल किया जा रहा है. लालू की भाषण शैली की ही तरह उनकी जेल यात्राएं भी कम मजेदार और नाटकीय नहीं होतीं! चारा घोटाले में जब वह पहली बार जेल गए थे तो उन्होंने हाथी की सवारी की थी. ऐसे ही एक अन्य जेल-यात्रा के दौरान पटना से रांची जाते वक्त वह गाड़ियों के बड़े काफिले के साथ निकले थे और रास्ते में रैलियों को अपनी खास शैली में संबोधित करते हुए जेल के दरवाजे तक पहुंचे थे. इस बार भी बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार जाने के दौरान मुंह में पान का बीड़ा दबाए लालू जी के साथ दर्जनों गाड़ियां और सैकड़ों समर्थक दौड़ लगा रहे थे.

देवघर चारा घोटाले में लालू प्रसाद यादव समेत कुल 22 लोग आरोपी थे, जिसमें से लालू समेत 16 आरोपियों को दोषी करार दिया गया है, जबकि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र और ध्रुव भगत समेत 6 लोगों को बरी कर दिया गया है. बरी होने वाले लोगों में अधिकांश लोगों के तार अब भाजपा से जुड़ गए हैं. शायद इसी बौखलाहट में लालू ने एक के बाद एक तीखी प्रतिक्रियाएं दीं.

एक ट्वीट में उन्होंने कहा कि भाजपा अपनी विफल नीतियों से ध्यान भटकाने के लिए बदले और बैर की भावना से विपक्षियों की छवि बिगाड़ रही है. एक जगह उन्होंने लिखा कि सामंतवादी ताकतों, जानता हूं, लालू तुम्हारी राहों का कांटा नहीं आंखों की कील है. पर इतनी आसानी से उखाड़ नहीं पाओगे. ऐ, सुनो कान खोल कर, आप इस गुदड़ी के लाल को परेशान कर सकते हो, पराजित नहीं! एक ट्वीट में उन्होंने नारा दिया- न जोर चलेगा लाठी का, लालू लाल है माटी का. लेकिन जिस ट्वीट में लालू की राजनीति का पासवर्ड छिपा है, वह था- ‘मरते दम तक सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ता रहूंगा. जगदेव बाबू ने गोली खाई, हम जेल जाते रहते हैं लेकिन मैं झुकूंगा नहीं. लड़ते-लड़ते मर जाऊंगा लेकिन मनुवादियों को हराऊंगा.’

लालू अपनी राजनीतिक एबीसीडी जिस ऑडियंस को पढ़ाते रहे हैं, वह दलित, पिछड़ा, मुसलमान और पसमांदा जातियों से आती है. इन्हीं जातियों के बल पर वह सवर्ण शक्तियों से लोहा लेते रहे. हालांकि उनकी राजनीति के शिखर पर एक वक्त ऐसा भी आया कि चमारों, मुसहरों के दिनदहाड़े कत्ल हुए. शहाबुद्दीन जैसे कई कुख्यात और दुर्दांत अपराधियों के सिर पर लालू का खुला वरदहस्त रहा. रणवीर सेना, लोरिक सेना और सनलाइट सेना जैसी घोर जातिवादी और अवैध वाहनियों ने बिहार में हिंसा का ताण्डव मचाया. पुलिस थाने तक यादववादी हो गए! उनके मुख्यमंत्रित्व काल को ‘जंगल राज’ कहा गया. मंचीय कवियों ने उनकी ‘चारा चोर’ छवि को लेकर कविताएं गढ़ीं और देश-विदेश के कवि-सम्मेलनों में पढ़ीं.

परिवारवाद के चक्कर में लालू जब अंधे हुए तो अरबों की सम्पत्ति जमा कर डाली. लेकिन वही लालू जब समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी का रथ रोक कर उन्हें गिरफ्तार कर लेते हैं, तो रातों-रात साम्प्रदायिकता के खिलाफ खड़े एकमात्र योद्धा और मनुवादियों का जानी दुश्मन बन कर उभरते हैं. गरीब-गुरवों के लिए पूरे बिहार में चरवाहा विद्यालय खोलते हैं, 6 विश्वविद्यालय खोलते हैं, खुली सरकारी भर्तियां करवाते हैं. परंतु चारा घोटाला ने लालू प्रसाद यादव की राजनीति में ऐसा ग्रहण लगा दिया कि उनकी सारी राजनीतिक कमाई चौपट हो गई.

बिहार पुलिस ने 1994 में राज्य के गुमला, रांची, देवघर, पटना, डोरंडा और लोहरदगा जैसे कई कोषागारों से फर्जी बिलों के जरिए करोड़ों रुपए की कथित अवैध निकासी के मामले दर्ज किए थे. लेकिन 1996 में जब इस घोटाले का पूरा खुलासा हुआ तो इसमें लालू समेत बिहार की राजनीति के बड़े-बड़े दिग्गज लपेटे में आ गए. लालू जी को सीएम पद छोड़ना पड़ गया लेकिन उन्हों ने जबरदस्त सियासी दांव खेलते हुए जेल जाने से पहले अपनी सीधी-सादी पत्नी राबड़ी देवी को कुर्सी पर बिठा दिया और सत्ता की चाबी अपने कुर्ते की जेब में रख ली. हालांकि सजा पाने के बाद संसद से अयोग्य ठहराए जाने वाले वह देश के पहले राजनेता भी बन गए. इतना ही नहीं उनके करीब 11 वर्षों तक किसी भी तरह के चुनाव में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया गया.

ऐसे में लालू ने अपने दोनों बेटों तेज प्रताप और तेजस्वी को बिहार की राजनीति में फिट कर दिया और सत्ता का लाभ लेने लगे. लेकिन अब भाजपा ने नीतीश को अपने पाले में करके लालू जी का पूरा खेल बिगाड़ दिया है. उनकी पत्नी राबड़ी देवी अपने दम पर पार्षद का चुनाव भी नहीं जीत सकतीं. तेज प्रताप और तेजस्वी यादव भी राजनीतिक बेरोजगार हो गए! चारा घोटाले में इस बार की जेल लालू के लिए दोहरा नहीं तिहरा प्रहार है. उनकी बेटी मीसा भारती और दामाद शैलेष कुमार भी मनी लॉंड्रिंग के केस में फंस गए हैं. यानी लालू जी के पूरे कुनबे पर संकट के बादल छा गए हैं.

आशंका यह भी है कि कहीं लालू की यह जेल-यात्रा आरजेडी के ही टुकड़े न कर दे! दोनों बेटों को अचानक आगे बढ़ाने के कारण आहत हुए पार्टी के कुछ बड़े और वफादार नेता बगावत कर सकते हैं और लालू की अनुपस्थिति में अपने वरिष्ठ नेताओं को एकजुट रख पाना नौसिखिए तेजस्वी और तेज प्रताप यादव के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी. उत्तराधिकार को लेकर दोनों भाइयों के बीच चल रहा मनमुटाव किसी से छिपा नहीं है. आरजेडी की विश्वस्त सहयोगी कांग्रेस में भी खलबली मच सकती है. सुनने में आ रहा है कि कांग्रेस के करीब डेढ़ दर्जन विधायक पहले ही एनडीए की राज्य सरकार के सम्पर्क में हैं. पार्टी को लालूविहीन पाकर भाजपा निश्चित ही भ्रष्टाचार को मुद्दा बना कर पहले से ज्यादा हमलावर हो जाएगी. तो क्या ‘जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू’ वाले नारे के दिन अब सचमुच लद गए?

लेखक से ट्विटर पर जुड़ने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/VijayshankarC

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)