अक्षय कुमार मार्जिनलाइज्ड समुदायों के सेवियर हैं. फिल्मों के जरिए कभी औरतों के लिए शौचालय बनाने का बीड़ा उठाते हैं, कभी उन्हें मैन्स्ट्रुअल हाइजीन समझाते हैं. कइयों को अंतरिक्ष की ऊंचाइयों पर पहुंचाने की भी कोशिश कर चुके हैं. इस बार उनका इरादा ट्रांसजेंडर समुदाय को न्याय और पहचान दिलाने का है. उनकी नई फिल्म ‘लक्ष्मी बम’ का ट्रेलर आ चुका है. फिल्म 9 नवंबर को ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज होने वाली है. फिल्म में वह एक ट्रांस कैरेक्टर निभा रहे है. वैसे यह तमिल की सुपरहिट फिल्म ‘कंचना’ का रीमेक है और एक हॉरर कॉमेडी फिल्म है.


तमिल में बनी ‘कंचना’ मुनी सीरिज की फिल्मों में से एक थी. इसके निर्देशक राघव लॉरेंस 2007 में ‘मुनी’, 2011 में ‘मुनी 2: कंचना’, 2015 में ‘मुनी 3: कंचना 2’ और 2019 में ‘मुनी 4: कंचना 3’ बना चुके हैं. मुनी सिनेमैटिक यूनिवर्स उनका ट्रेडमार्क है. जिस ‘मुनी 2: कंचना’ पर ‘लक्ष्मी बम’ आधारित है, उसके केंद्र में तमिलनाडु का अरावनी समुदाय है. तमिलनाडु का हिंजड़ा समुदाय खुद को अरावन का पूर्वज मानता है. इसीलिए उन्हें अरावनी भी कहा जाता है.


दरअसल अरावन अर्जुन के बेटे थे जिन्होंने खुद को पांडवों के लिए बलिदान कर दिया था. पर बलिदान से पहले शादी की इच्छा होने के कारण कृष्ण ने मोहिनी के रूप में उनसे विवाह किया था. दोनों का एक दिन का विवाह अरावनी की पौराणिक कथा का एक अंग है. अरावन अरावनी समुदाय के देवता हैं. इस रिश्ते को ‘कंचना’ के क्लाइमेक्स का हिस्सा बनाया गया है. कंचना लाल साड़ी और स्त्री वेश में दुष्ट का नाश करती है. जाहिर सी बात है, ‘लक्ष्मी बम’ में यह काम लक्ष्मी यानी अक्षय करेंगे.


‘कंचना’ में कॉमेडी थी और कई जगहों पर भदेसपना भी. कई तबकों ने इस रिप्रेजेंटेशन का विरोध भी किया था. उसी तरह जिस तरह तमिल भाषा की एक दूसरी फिल्म ‘सुपर डीलक्स’ का विरोध हुआ था. ‘सुपर डीलक्स’ में चार अलग-अलग कहानियां थीं. एक कहानी एक ट्रांस वुमेन और उसके बेटे के रिश्ते पर आधारित थी. कहा गया था कि इस कहानी से ट्रांस लोगों की इमेज खराब होती है. इसमें ट्रांस वुमेन शिल्पा कबूल करती है कि उसने भीख मंगवाने के दो बच्चों को किडनैप किया था. इस एक हिस्से पर ‘सुपर डीलक्स’ का बहुत विरोध हुआ था. कहा गया था कि इससे ट्रांस लोगों की छवि दागदार होती है. वे पहले ही समाज में हाशिए पर जिंदगी जीने को विवश हैं. ऐसे किरदार उन्हें और दिक्कत में डालते हैं.


पर ‘कंचना’ और ‘सुपर डीलक्स’ की आलोचना का ‘लक्ष्मी बॉम्ब’ से क्या ताल्लुक? इन फिल्मों की आलोचना की एक बड़ी वजह यह भी थी एक सिस जेंडर शख्स ने इनमें ट्रांसजेंडर किरदार निभाए थे. ‘कंचना’ को लिखने, और डायरेक्ट करने वाले राघव लारेंस थे और कंचना का किरदार सरत कुमार ने निभाया था. इसी तरह ‘सुपर डीलक्स’ में विजय सेथुपथी एक ट्रांस वुमेन बने थे. अब ‘लक्ष्मी बम’ में अक्षय कुमार टाइटिल भूमिका में हैं. उनकी तारीफ करने वाले सिस जेंडर के लोग ही हैं जोकि उनके फैन हैं. वे लोग बताते हैं कि कैसे अक्षय कुमार हर किरदार में फिट हो जाते हैं.


लेकिन ऐसी वाहवाही करके, हम सिर्फ ऐक्टर की बड़ाई करते हैं, किरदार को भूल जाते हैं. वैसे किसी सिस-ट्रांसजेंडर कलाकार को ट्रांसजेंडर का रोल दिया जाता है, यह गलत तो नहीं, लेकिन क्या यह सामान्य है कि किसी ट्रांसजेंडर कलाकार को सिस-ट्रांसजेंडर का रोल दिया जाए. ‘लक्ष्मी बम’ तो यहां तक बताती है कि कैसे ट्रांस व्यक्ति की कहानी को भी सिस जेंडर के व्यक्ति की जरूरत होती है.


एक बात और है. हमारी फिल्मों में क्वीर-ट्रांस लोगों को हमेशा सिस-हेट्रो लोगों के नजरिए से देखा गया है. वह नजरिया जो सिर्फ अपनी तरह से सोचता है. नहीं जानता और न ही जानना चाहता है कि क्वीर-ट्रांस लोगों की जेंडर और सेक्सुएलिटी की क्या अवधारणा है. इस नजरिए में ट्रांस लोगों के लिए अधिकतर उपहास और छिछोरेपन का भाव है. फिर जब फिल्म का जॉनर कॉमेडी हो तो उसमें तमाम छूट ले ली जाती है. ‘लक्ष्मी बम’ ट्रांस लोगों को लेकर बरसों से कायम स्टीरियोटाइप्स को ही पुष्ट करती है. वे लोग फनी होते हैं और आक्रामक, उन्माद से भरे भी. फिल्म के ट्रेलर में यह सब नजर आ जाता है. हिंसा और डर, जब भी आप ट्रांस लोगों को देखते हैं. इससे बचने के लिए जरूरी सिर्फ यह है कि क्वीर-ट्रांस लोगों को फिल्मों का हिस्सा बनाया जाए.


यूं बॉलिवुड में यह आम है कि एक ही जेंडर के लोग, यानी पुरुष सभी जेंडर्स के उद्धार में लग जाएं. कई सालों में हिट बॉलिवुड फिल्मों में पुरुष ऐक्टर्स महिला विषयों पर बनी फिल्मों से धूम मचा रहे हैं. ‘चक दे इंडिया’ में हॉकी टीम की विद्या, कोमल, प्रीति सभी को कबीर यानी शाहरुख चाहिए. औरतें आपस में लड़ती हैं और उन्हें एकजुट करने के लिए एक आदमी की जरूरत पड़ती है. इसी तरह ‘दंगल’ में गीता बबीता यानी लड़कियों को अनुशासन में लाने का काम महावीर यानी आमिर खान करते हैं. ‘टॉयलेट- एक प्रेमकथा’ एक साहसी लड़की जया की कहानी भले ही लगती हो लेकिन उस यात्रा को अंतिम पड़ाव पर पहुंचाने यानी घर में शौचालय बनवाने का काम केशव यानी अक्षय कुमार करते हैं. ‘पैडमैन’ महिलाओं के लिए मैन्स्टुअल हाइजीन के कहानी तो कहती है लेकिन उसकी कहानी में सिर्फ और सिर्फ एक ही आदमी लक्ष्मीकांत यानी अक्षय कुमार के इर्द गिर्द घूमती है. ‘पिंक’, ‘मिशन मंगल’, इन सभी में मेल ऐक्टर्स ही महिलाओं को न्याय दिलाने और उनके सपने पूरे करने का काम करते हैं.


फिलहाल ट्रांसजेंडर राइट्स एक्टिविस्ट लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ‘लक्ष्मी बम’ के समर्थन में खड़ी हैं. अक्षय कुमार के साथ फिल्म के प्रमोशन में दिखाई भी दे रही हैं. फिर भी कुछ सवाल अब भी मौजूद हैं जो रिप्रेजेंटेशन से जुड़ते हैं. जाहिर सी बात है, हर मुद्दे पर मसीहा बनने वाले नायकों को कभी यह परचम दूसरों को भी थमा देना चाहिए. ट्रांस लोगों को लेकर जब चहुंओर यह सोच कायम हो तो न तो अक्षय इस बहस से भाग सकते हैं और न ही ‘लक्ष्मी बम’ फिल्म के डायरेक्टर-प्रोड्यूसर. उन्हें हर सवाल का जवाब देना ही होगा.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)