वैसे सभी जानते हैं कि सऊदी अरब में औरतों को ड्राइविंग की इजाजत मिल गई है. ये कौन दे सकता है. मतलब हम ड्राइविंग करें, इसमें किसी को क्या ऑब्जेक्शन? लेकिन ऑब्जेक्शन था. वहां राजशाही है. वह भी वहाबी विचारधारा वाली है जिसमें औरतों के लिए खास कायदे हैं. वहां का कानून कहता है कि हर औरत का एक पुरुष गार्जियन होना चाहिए. चाहे पिता, पति, बेटा या कोई रिश्तेदार हो. औरतों को कुछ भी करने के लिए उनकी इजाजत लेनी होती है. नौकरी करने, घूमने-फिरने वगैरह की भी. ड्राइविंग पर तो पूरी तरह बैन था. लेकिन वहां के 32 साल के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने औरतों से यह बैन हटा दिया है. मतलब सरकार औरतों को ड्राइविंग लाइसेंस इश्यू कर रही है. लाइसेंस लेने और ड्राइव करने के लिए उन्हें किसी पुरुष साथी की जरूरत नहीं है.
कुछ सोचने की बात भी है. ड्राइविंग की इजाजत मिलना, इतनी सारी खुशियों को न्यौता कैसे दे सकता है? ऐसा भी क्या है जो ड्राइविंग सीट को इतना खास बनाता है. ड्राइव का मतलब क्या है...बताइए तो! क्रिया के रूप में इस्तेमाल हो तो रफ्तार. अपने मुताबिक, अपने नियंत्रण में. ड्राइविंग किसी भी शख्स को आजाद बनाती है, मूवमेंट देती है. हर ऊंचे-नीचे रास्ते पर अपनी मर्जी से, अपनी रफ्तार से आगे बढ़ने की आजादी. रास्ते में कभी अपने साथियों से पिछड़कर शांत बैठने का धैर्य तो कभी उनसे आगे बढ़ने की ललक. फिर यह अमूमन एक मेल एक्टिविटी है. पुरुष परिवार का वाहक होता है. जिंदगी की गाड़ी का स्टीयरिंग व्हील उसी के हाथों में होता है. वह चाहे जहां ले जाए. आप चूं नहीं कर सकतीं. उलटा हो तो कैसा हो. उसे धकेलकर पैसेंजर सीटों पर बैठाया जाए और खुद कंट्रोल अपने हाथ में लिया जाए. यूं यह मर्द-औरत के बीच की प्रतिद्वंद्विता की बात नहीं. कंट्रोल बारी-बारी से भी संभाला जा सकता है. तो, सऊदी अरब की औरतों ने कंट्रोल संभाल लिया है.
उनकी उजली खुशी का खयालनामा हम भी सुन रही हैं. हम सभी एक सी हैं. अमेरिकी सोशल साइंटिस्ट्स स्टीवन स्लोमन और फिलिप फर्नबक की किताब ‘द नॉलेज इल्यूज़न’ का कहना है कि मनुष्य को अकेले नहीं, सामूहिक रूप से सोचने की आदत है. औरतें समूह में सोचती हैं इसीलिए कई बार एक की जीत से दूसरों को नई जिंदगी को आगाज मिलता है. यह भी सच है कि हमारे यहां बैन न होने के बावजूद औरतों को ड्राइविंग का मौका कम ही मिल पाता है. 2014 में 21 राज्यों की स्टडी में बताया गया था कि सिर्फ 4% लाइसेंस होल्डर्स महिलाएं हैं. मणिपुर इन राज्यों में सबसे ऊपर है जहां 34.4% ड्राइविंग लाइसेस औरतों को इश्यू किए गए हैं. यह देश में सबसे अधिक है. रोड ट्रांसपोर्ट ईयर बुक में दर्ज इस डेटा में कई बड़े राज्यों जैसे बिहार, झारखंड, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान और पश्चिम बंगाल ने अपने आंकड़े दिए ही नहीं थे.
तो, बैन तो हमारे यहां नहीं है लेकिन लाइसेंस लेने जाती ही कितनी औरतें हैं. बैन अपने यहां नौकरियों पर भी नहीं है. पर वर्कफोर्स में औरतों की मौजूदगी 24% से 29% के बीच है. वोट देने सभी जा सकते हैं पर पति या पिता के कहे मशीन पर बटन दबा देना हमारी नियति है. कपड़े अपनी पसंद से नहीं पहन सकते क्योंकि शोहदे आंख उठाए-जीभ लपलपाए घूमते रहते हैं. हमारे लिए मेल गार्जियनशिप जरूरी नहीं लेकिन उसके बिना हमें निजात नहीं मिलती. मर्दों की इजाजत के बिना हमारी पढ़ाई-शादी-ब्याह-नौकरी करना सब पर बैन ही है.
वैसे सऊदी अरब ने यह बैन मजबूरन उठाया है. कुछ कदम पहले भी उठाए गए हैं. पब्लिक सेक्टर की नौकरियों के दरवाजे खोले गए हैं. कपड़े-लत्तों में रिलैक्सेशन दिए गए हैं. प्रिंस ने कहा है कि औरतों के लिए ट्रेडीशनल काले रंग का अबाया पहनना अब जरूरी नहीं है. अब वे म्यूनिसिपल चुनावों में वोट दे सकती हैं. चुनाव में खड़ी भी हो सकती हैं. फुटबाल मैच देखने स्टेडियम भी जा सकती हैं. चलो, औरत तुम्हारी जंजीर कुछ ढीली कर दी गई हैं ताकि देश को तुम दौलत से भर सको. दरअसल सऊदी अरब के आर्थिक हालात खस्ता हैं. इसके लिए विजन 2030 देखा जा रहा है. 22 मिलियन लोगों में जब 60% लोग 30 साल से भी कम के हों तो औरतों को हाशिए पर रखने का नुकसान हो सकता है. इसीलिए औरतों को मोहाने की कोशिश की जा रही है.
जो भी हो, सब कुछ होने के बाद भी जब बदलाव का नया रास्ता, एक नया ठिकाना खुलता या न्योता देता दिखता है तो उसे ईमानदार मानने की ही इच्छा होती है.लेकिन इस ईमानदार कोशिश के साथ कुछ दिक्कतें भी हैं. महिला अधिकारों की वकालत करने वाले लोग अब भी जेलों में बंद हैं. लोग ट्विटर पर हैशटैग के साथ अरबी में लिख रहे हैं तुम ड्राइव नहीं करोगी.
जाहिर सी बात है, नीतियों में बदलाव व्यक्तिगत जीवन में नहीं नजर आ रहा. प्रायः देखा गया है कि अगर आप तथ्यों की बौछार भी कर दें तो राय नहीं बदलती. अपनी राय के खिलाफ तथ्य अक्सर पसंद नहीं किए जाते और यह मानना लोगों के लिए अपमानजनक होता है कि अब तक वे अतार्किक थे या सचमुच कहा जाए तो मूर्ख थे.
लोग कहते हैं तो कहते रहें. एक्टिविस्ट जयवती श्रीवास्तव की किताब ‘लेडी ड्राइवर : स्टोरीज़ ऑफ विमेन बिहाइंड द व्हील’ पढ़ने से पता चलता है कि बिहाइंड द व्हील बैठने से कितनी ताकत आती है. इस किताब में 12 औरतों के इंटरव्यू हैं जो परेशानियों की खाई इसीलिए फलांग पाईं क्योंकि उनके हाथों में चार पहियों का कंट्रोल था. हम सऊदी अरब की औरतों के लिए भी शुभ अंजाम की दुआ करते हैं. रास्ता जितना खुले, अच्छा ही है. एक से दूसरे रास्ते की ओर बढ़ने का मौका मिलता है.