राहुल गांधी पर ‘राहुल डिकोडिंग’ नाम की किताब की लेखिका आरती रामचन्द्रन के अनुसार बचपन में राहुल गांधी अंधेरे से बहुत डरते थे. एक शाम उनकी दादी और प्रधानमंत्री इंद्रिरा गांधी ने राहुल गांधी से घर के लॉन में अंधेरे की तरफ जाने को कहा. राहुल हिचके तो दादी ने भरोसा दिलाया कि वह उनकी सुरक्षा के लिए बैठी हैं. तब राहुल गांधी हिचकते हुए अंधेरी छाया की तरफ गये और वहां से वापस लौटकर दादी तक आए. लेखिका ने लिखा है कि उसके बाद राहुल का अंधेरे से डरना दूर हो गया. राहुल दादी के बेहद प्रिय थे. दादी इंद्रिरा गांधी के साथ ही वह और प्रियंका गांधी सोया करते थे. दादी की हत्या के बाद राहुल और प्रियंका एक तरह से घर के अंदर ही कैद हो गये थे. यहां तक कि एसपीजी उन्हें घर में भी रहते हुए लॉन तक में जाने से रोकती थी.


जब कालेज पहुंचे तो भी राहुल गांधी आजादी के साथ कहीं घूम फिर नहीं सकते थे. आरती रामचन्द्रन ने लिखा है कि कालेज में भी एसपीजी साथ में रहती थी. एक बार राहुल गांधी अपने सहपाठी के जन्मदिन की पार्टी में जाना चाहते थे. पार्टी भी कालेज परिसर में हॉस्टल में हो रही थी लेकिन एसपीजी ने राहुल को वहां भी जाने नहीं दिया था. चौबीस घंटे एसपीजी का साया और मौत का खौफ...उस पर दादी और पिता की मौत...राहुल गांधी की शख्सियत पर इसका बहुत असर हुआ था. कुछ ऐसी अन्य बातें जो शायद कम ही लोग राहुल के बारे में जानते हैं.


27 सितंबर 2013 , दिल्ली


दोपहर करीब सवा बारह बजे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी सोनिया गांधी के निवास स्थान दस, जनपथ के भीतरी दरवाजे से निकले और बगल के कांग्रेस मुख्यालय 24 , अकबर रोड पहुंचे. अंबिका सोनी ,सीपी जोशी , शकील अहमद , गुरुदास कामत...एक भी महासचिव अपने कमरे में नहीं था. राहुल गांधी ने कांग्रेस मीडिया सेल के प्रमुख अजय माकन के बारे में पूछा. पता लगा कि वह प्रेस क्लब में मीडिया से बातचीत कर रहे हैं. माकन दागियों को बचाने के लिए हड़बड़ी में लाए गये अध्यादेश की तारीफ कर रहे थे. तभी उनके पास फोन आया. वह उठे. वापस आए और कुछ देर बाद ठीक एक बजकर चालीस मिनट पर राहुल गांधी प्रेस क्लब में थे. वह बेहद गुस्से में थे और अध्यादेश को कूड़ेदान के हवाले करने की बात कर रहे थे. तीखा अंदाज , तल्ख तेवर , आक्रामक तरीका और माथे में सियासी बल. सबको पता चल गया था कि राहुल गांधी ही अब कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो हैं और मनमोहन सिंह सरकार के नये खैरख्वाह हैं. लेकिन राहुल गांधी को यहां आते आते चार साल लगा दिए. अब जाकर 2017 में वह कांग्रेस की कमान संभाल रहे हैं.


उनकी मां सोनिया गांधी ने 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष की कमान संभाली थी. तब सोनिया के साथ राहुल और प्रियंका भी चुनाव रैलियों में जाते थे लेकिन उनका काम हाथ हिलाने तक ही सीमित था. 1998 और 1999 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की जबरदस्त हार हुई थी. 2003 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के हाथ से राजस्थान , छत्तीसगढ और मध्यप्रदेश निकल गये थे. पार्टी में हताशा का माहौल था और बीजेपी की एनडीए सरकार का इंडिया शाइनिंग का नारा हर तरफ चमक रहा था. 2004 की शुरुआत में लोकसभा चुनाव घोषित हुए और राहुल गांधी ने उस सियासत में उतरने का फैसला किया जिससे वह अब तक किनारा करते रहे थे. उनके पिता राजीव गांधी की तरह राहुल गांधी को भी लगभग जबरन राजनीति में लाया गया था. हैरानी की बात है कि जब 1984 में राजीव गांधी को इंद्रिरा गांधी की हत्या के बाद राजनीति में लाया जा रहा था तब सोनिया गांधी ने राजीव गांधी से राजनीति से दूर रहने का आग्रह किया था. लेकिन समय की चाल देखिए इसके बीस साल बाद सोनिया गांधी ही राहुल गांधी को राजनीति में ला रही थीं.



आरती रामचंद्रन अपनी किताब ‘राहुल डिकोडिंग’ में लिखती हैं कि राहुल गांधी ने भले ही मनमोहन सिंह सरकार में न तो कोई पद लिया न संसद में ही मुखर रहे अलबत्ता इस दौरान विदेश यात्राएं बहुत की. जून 2005 में स्विटजरलैंड में विश्व आर्थिक फोरम की यंग ग्लोबल लीडर बैठक में भाग लिया तो अगले ही महीने जर्मनी में ग्लोबल गर्वनेंस के सेमिनार में गये. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ अफगानिस्तान और सिंगापुर के दौरे पर भी वह गये. जून 2006 में सिंगापुर के दौरे ने राहुल गांधी की राजनीति की दिशा दशा ही बदल डाली. ‘डीकोडिंग राहुल’ किताब की लेखिका आरती रामचंद्रन लिखती हैं कि सिंगापुर के पहले प्रधानमंत्री ली कुआन यी के राहुल गांधी मेहमान थे. वहां राहुल गांधी ने एयरपोर्ट , पोर्ट , कॉलेज और कारखाने देखे. ली कुयान ने विशेष भोज के मौके पर राहुल गांधी को राय दी कि जब तक वह देश की जटिलताओं को नहीं समझ लेते और अपनी एक मजबूत टीम नहीं बना लेते तब तक उन्हे सत्ता की कमान अपने हाथ में नहीं लेनी चाहिए.


राहुल की वह टीम...


राहुल गांधी ने अब अपनी टीम बनानी शुरु की. आज भंवर जीतेन्द्र सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अशोक तंवर, सचिन पायलट, मिलिंद देवड़ा, हरीश चौधरी, मीनाक्षी नटराजन, दीपेन्द्र सिंह, जितेन प्रसाद, नवीन जिंदल जैसे युवा नेताओं को राहुल ब्रिगेड का हिस्सा कहा जाता है. लेकिन राहुल गांधी के दो खासमखास साथी थे कनिष्क सिंह और सचिन राव. कनिष्क सिंह ने दिल्ली के सेंट स्टीफन कालेज से अर्थशास्त्र में डिग्री ली. इसके बाद अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ पेननसिल्वेनिया से और व्हारर्टन से पढ़ाई की. राहुल गांधी से जुड़ने से पहले कनिष्का ने न्यूयॉर्क में एक इनवेस्टिंग बेंकिग में तीन साल काम किया. एक बार उनसे इतनी अच्छी नौकरी छोड़ने की वजह पूछी गयी तो उनका कहना था कि जिंदगी का सार यही है कि आप अंत में कितना पैसा कमाते हैं. आप भरपूर पैसा कमाते हैं. फिर आप सब चीजों से उब जाते हैं , आप थक जाते हैं. तब आप का शायद तलाक हो जाता है , परिवार बिखर जाता है. मेरी नजर में ये एक अर्थहीन जीवन है. कनिष्क के लिए कहा जाता है कि वो हमेशा एक लैपटॉप लेकर चलते थे जिसमें भारत की हर विधानसभा सीट तक के जाति और समुदाय के तमाम आंकड़े रहते थे.


राहुल गांधी के दूसरे विश्वस्त साथी थे सचिन राव जो 2006 में राहुल टीम का हिस्सा बने. सचिन सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं. अमेरिका की मिशीगन यूनिवर्सिटी से सचिन ने एमबीए किया है. सचिन गरीबी दूर करने के नये तरीके तलाशते रहते हैं. कैसे गांवों में कम्प्यूटर क्रांति लाई जा सकती है, कैसे किसानों को उनकी उपज पर ज्यादा से ज्यादा मुनाफा दिया जा सकता है. कैसे दलितों आदिवासियों को आगे लाने के प्रयास स्वयंसेवी संगठनों और कॉरपोरेट को मिलाकर किये जा सकते हैं. एक बार सचिन से जिंदगी का उद्देश्य पूछा गया तो उनका कहना था कि मैं दुनिया को बदल देना चाहता हूं. आज यह दोनों राहुल की टीम के हिस्सा हैं या नहीं कोई नहीं जानता.


देश को समझने निकले राहुल गांधी...


टीम बन चुकी थी और राहुल गांधी सिंगापुर के पीएम की सलाह माने हुए देश को समझने निगल गये. दलित के यहां रात काटी, कहीं रोड शो किया, कहीं कालेज छात्रों के साथ बातचीत की, कहीं नरेगा में मिट्टी ढोई तो कहीं सड़क किनारे चाय पी. विपक्ष ने इसे राहुल गांधी का पॉलिटिकल टूरिज्म कहकर मजाक उड़ाया लेकिन राहुल के दौरे जारी रहे. राहुल गांधी के गरीब भारत और अमीर इंडिया की बात की, मनरेगा मजदूरों की मजदूरी समय पर और पूरी मिलने का मुद्दा उठाया, दलितों आदिवासियों के अधिकारों की बात की, राजनीति में आगे आने के मौके मिलने की वकालत की और सिस्टम को बदल डालने पर जोर दिया. सियासी मोर्चे पर राहुल गांधी ने एक बहुत बड़ा फैसला लिया. अकेले चुनाव लड़ने का, यूपी और बिहार में आईसीयू में पड़ी कांग्रेस को फिर से जिंदा करने की.


राहुल गांधी की पहली बड़ी अग्निपरीक्षा 2007 का यूपी विधानसभा चुनाव में हुई. यूपी की 425 सीटों में से कांग्रेस ने 1989 में 94 सीटें जीती थी और उसे 27.90 फीसद वोट मिले थे. 2002 में कांग्रेस को 402 सीटों में से सिर्फ 25 सीटें मिली और वोट प्रतिशत गिर कर 8.96 ही रहा गया. अब राहुल गांधी के सामने चुनौती थी. उन्हे संगठन खड़ा करना था, लगातार हार से निराश हताश कार्यकर्ता में जोश भरना था उसे घर से निकालना था. 12 मई 2007 को नतीजे आए तो राहुल फेल हो चुके थे. कांग्रेस की सीटे 25 से घटकर 22 ही रह गयीं. उसका वोट प्रतिशत भी गिर कर 8.61फीसद ही रह गया. राहुल गांधी ने तब कहा था कि दरअसल हमारा यूपी में संगठन नहीं हैं. लंबा रास्ता हमें तय करना है. हमें संगठन फिर खड़ा करना है और हम यह करके रहेंगे. दिलचस्प बात है कि पांच साल बाद 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस फिर पिटी, उसके हिस्से सिर्फ 28 सीटें ही आई तो राहुल गांधी ने पांच साल पुरानी बात ही दोहरा दी थी. उसके पांच साल बाद अखिलेश यादव से हाथ मिलाया और फिर दोनों लड़के यूपी में खारिज कर दिये गये.


अमेरिका प्रशासन की राहुल पर राय...


23 अप्रैल 2007 को दिल्ली में अमेरिकी दूतावास से भेजे गये केबल में कहा गया, ‘’राहुल ने अपने सक्रिय सियासी सफर की उबड़खाबड़ शुरुआत की है. कांग्रेस के नेता शिकायत करते हैं कि राहुल गांधी राजनीति के ऐसे रंगरूट हैं जिनमें प्रधानमंत्री बनने का ना तो गुण है और ना ही लक्षण. कांग्रेसियों की उम्मीदें अब गांधी नेहरू खानदान के दूसरे सदस्य पर टिक गयी हैं. राहुल गांधी की बहन प्रियंका. कांग्रेस नेता प्रियंका के राजनीति में उतरने का इंतजार कर रहे हैं.


प्रियंका तो रायबरेली और अमेठी तक ही सीमित रहीं उधर राहुल गांधी को प्रमोशन मिला. 24 सिंतबर 2007 को राहुल को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में महासचिव बनाया गया. साथ ही युवा संगठन एनएसयूआई और युवक कांग्रेस की जिम्मेदारी दी गयी. उस समय तक युवक कांग्रेस के दफ्तर के बाहर मोटी-मोटी सोने की चेन पहने, लंबी चौड़ी गाड़ियों की टेक लगाये नेता चाय की चुस्कियां लेते दिखते थे. साल में एक बार जंतर मंतर पर किसी धरने प्रदर्शन में जाते थे और उसकी बड़ी-बड़ी तस्वीरों से युवक कांग्रेस के दफ्तर की दीवारें पट जाती थीं.


राहुल का टयोटा वे...


राहुल गांधी ने नई जिम्मेदारी लेते समय कहा था कि उन्हे एक मरा हुआ संगठन मिला है जिसमें जान फूंकनी हैं. राहुल गांधी ने यहां रास्ता निकाला टोयोटा वे का. जापान की कार बनाने वाली कंपनी टोयोटा दुनिया की सबसे ज्यादा कार बनाने वाली कंपनी बन गयी थी. टोयोटा ने बाकी दुनिया की तमाम कार कंपनियों को जिस रणनीति से पछाड़ कर पहला स्थान हासिल किया उसे ही टयोटा वे कहा जाता है. सबसे बात करो, सारे विकल्पों पर विचार करो और फिर एक सर्वसम्मत फैसले पर पहुंचो. इसमें जरूर वक्त लगेगा लेकिन फैसले पर पहुंचने के बाद इस पर बहुत तेजी से अमल होता है और हैरतअंगेज नतीजे आते हैं. इसे जापानी भाषा में नेमावाशी भी कहते हैं. आरती रामचंद्रन की ने अपनी किताब में इसका जिक्र किया है. तब राहुल गांधी ने तो कुछ नेताओं को जापान में टोयोटा कंपनी के दौरे पर भी भेजा. राहुल गांधी का टेलेंट हंट यानि प्रतिभा की तलाश अभियान शुरू किया. नेता बनो , नेता चुनो का नारा लगा. राहुल गांधी ने कहा कि हर दूसरे साल यूथ कांग्रेस के नेताओं की सूची कांग्रेस को दी जाएगी. इन्हे फिर कांग्रेस आगे बढाएगी. यूथ कांग्रेस का सदस्यता शुल्क दो रुपये से बढ़ाकर 15 रुपये कर दिया गया. राहुल गांधी ने के जी राव, जेम्स लिंगदोह, एन गोपालास्वामी और टी एस कृष्षामूर्ति जैसे पूर्व चुनाव आयुक्तों की सेवाएं ली गयी. जुलाई 2008 में यूथ कांग्रेस में चुनाव की प्रक्रिया शुरु हुई. नवंबर 2011 तक 23 राज्यों में यूथ कांग्रेस के चुनाव हुए. दावा किया गया कि यूथ कांग्रेस की सदस्यता चार गुना बढ़कर एक करोड़ पार कर गयी. राहुल गांधी ने इन सद्स्यों को आम आदमी का सिपाही का दर्जा दिया. कहा कि उनका काम मनरेगा, जननी सुरक्षा, राशन की दुकानों जैसी केन्द्र की योजनाओं पर नजर रखने का था. इसके लिए उन्हे सूचना के अधिकार के इस्तेमाल के बारे में खासतौर पर ट्रेनिंग दी गयी.



लेकिन अफसोस राहुल गांधी की इस योजना को उनके दल के वरिष्ठ नेताओं ने ही पलीता दिखा दिया. कांग्रेस शासित असम में सात से आठ हजार आम आदमी के सिपाही वहां राशन की दुकानों में हो रही गड़बड़ियों की जांच के लिए भेजे गये. राहुल गांधी के सिपाहियों और राज्य सरकार के नेताओं के बीच टकराव शुरू हो गया. आरोप लगा कि एक राजनीतिक दल को एक एनजीओ की तर्ज पर नहीं चलाया जा सकता. राहुल गांधी को आखिरकर इस प्रयोग को रोकना पड़ा. राहुल गांधी का इस बीच देश दौरा जारी रहा. इसी दौरान वो महाराष्ट्र में कलावती से मिले, मुम्बई में लोकल में सवार हुए और वो अमेठी में अपने साथ ब्रिटेन के पूर्व विदेश सचिव डेविड मिलीबैंड को भी ले गये जहां दलित के घर रात बिताई. इसी दौरान नियमगिरी में वेदांता के बॉक्साइट कारखाने का स्थानीय आदिवासियों ने विरोध किया तो राहुल गांधी वहां भी गये. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर राहुल गांधी चाहते क्या हैं...राहुल गांधी ने साफ कर दिया था कि उनकी प्रधानमंत्री बनने में कोई रुचि नहीं है. वह शादी करने के भी इच्छुक नहीं हैं. अन्ना हजारे का दिल्ली में जनलोकपाल को लेकर इतना बड़ा और इतना लंबा आंदोलन हुआ लेकिन राहुल गांधी खामोश रहे. लोकपाल बिल पर बहस के दौरान जरूर लोकपाल को संवैधानिक संस्था का दर्जा देने का गेम चेजिंग आइडिया दिया जो वोटिंग के दौरान गिर गया. दिल्ली के निर्भया गैंग रेप कांड पर युवा वर्ग जब इंडिया गेट और विजय चौक पर पुलिस के डंडे खा रहा था तब भी राहुल गांधी चुप रहे. बाद में वह और सोनिया गांधी देर रात अपने घर के बाहर धरना दे रहे नौजवानों से जरूर मिले लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.


जब एक पत्रकार पहचान छुपा कर राहुल गांधी से मिले...


राहुल गांधी के काम करने की शैली पर एक बेहद दिलचस्प घटना का ब्यौरा हमें आरती रामचंद्रन ने सुनाया. अक्टूबर 2010 में कामनवेल्थ खेलों से पहले ऐसी खबरें छपी कि दिल्ली सरकार ने बाल भिखारियों को शहर से बाहर भेजने की योजना बनाई है. आरती ने इस पर राहुल गांधी को खत भेजा. आरती ने अपनी पहचान छुपा कर खत लिखा था. दो दिन के भीतर ही आरती के पास जवाब आया और तीन दिन बाद ही आरती राहुल गांधी की एक जनसभा में थीं. ये जनसभा दस जनपथ यानि सोनिया गांधी के निवास के लॉन में थी. आरती का लगभग अंत में नंबर आया. राहुल गांधी ने सीधे कहा कि ग्रामीण इलाकों से गरीब लोग दिल्ली में रोजगार की तलाश में आते हैं और उनके बच्चे भीख मांगने को मजबूर हो जाते हैं. आरती ने राहुल गांधी से कहा कि उन्हें भिखारी बच्चों के लिए कुछ करना चाहिए तो राहुल गांधी ने जवाब दिया कि वह गरीबी के व्यक्तिगत मामले सुलझाए या गरीबी की जड़ तक जाकर उसे उखाड़ने की कोशिश करें.


राहुल गांधी ने कनिष्क से कहा कि मुझे मीनाक्षी नटराजन से मिलवा दें. मीनाक्षी ने मुझे किसी अन्य के पास भेज दिया. जाते-जाते मैंने राहुल गांधी से कहा कि मैं पत्रकार हूं. राहुल गांधी चौंक गये और मेरे पत्रकार कैरियर के बारे में पूछा. मैंने इस मौके का फायदा उठाते हुए राहुल गांधी से कहा कि क्या कुछ सवाल मैं पूछ सकती हूं. इस पर राहुल गांधी ने पहले साफतौर पर मना कर दिया फिर कहा कि हो सकता है कि बाद में कभी मुझे इंटरव्यू का मौका मिले. वापसी में मैं सोच रही थी कि राहुल गांधी मीडिया से इतने दूर भागते क्यों हैं...उनका फोकस  ठीक नहीं है. उनकी सोच तो ठीक है लेकिन सोच को राजनीतिक रूप से कैसे अमली जामा पहनाया जाए और जनता तक पहुंचाया जाए. इस मामले में राहुल गांधी में अनुभव की कमी साफ झलकती है.


राहुल बने कांग्रेस उपाध्यक्ष...


कांग्रेस पार्टी ने जनवरी 2013 के जयपुर चिंतन शिविर में राहुल गांधी को और भी बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी. राहुल गांधी को कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया. कांग्रेस पर किताब लिखने वाले राशिद किदवई बताते हैं कि राहुल गांधी को 19 जनवरी 2013 को उपाध्यक्ष बनाया गया लेकिन इसकी स्क्रिप्ट सोनिया गांधी के जन्मदिन 9 दिसंबर 2012 को ही लिख ली गयी थी. तब सोनिया गांधी 66 साल की हुईं. उन्होंने दल के बड़े नेताओं को बता दिया था कि वह 70 साल की उम्र में रिटायर हो जाएंगी. अब 42 साल के राहुल गांधी पर बड़ी जिम्मेदारी लेने का दबाव डाला जाने लगा. इसके चार साल बाद 2017 में सोनिया गांधी 70 साल की हो गयी हैं और जैसा कि उन्होंने चार साल पहले कहा था वह सक्रिय राजनीति से रिटायरमेंट के संकेत भी दे रही हैं. गुजरात में एक दिन भी वह प्रचार के लिए नहीं गयीं और राहुल गांधी को कांग्रेस की कमान सौंप दी.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)