अगर सी वोटर का सर्वे सही है तो मोदी-अमित शाह की जोड़ी दिल्ली में कमाल करने जा रही है. सर्वे बताता है कि दिल्ली के तीनों नगर निगमों मे बीजेपी न केवल भारी बहुमत से जीत रही है बल्कि पिछले प्रदर्शन को भी पीछे छोड़ रही है. दस साल तक बीजेपी का दिल्ली नगर निगम पर कब्जा रहा है. भ्रष्टाचार, लूट-खसोट के तमाम आरोप उसके पार्षदों पर लगते रहे हैं. बीजेपी भी इन आरोपों से इतना डरी कि उसने इस बार सारे के सारे पार्षद बदल दिए. सर्वे के हिसाब से जाएं तो बीजेपी को इस चुनावी रणनीति का भारी लाभ मिलता दिख रहा है. लेकिन बड़ा सवाल उठता है कि आखिर बीजेपी क्यों जीत रही है. इसकी दो वजह है. पहला, कांग्रेस और आप के बीच बीजेपी विरोधी वोट का बंटवारा. दूसरा, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर विश्वास.


मोदी का चेहरा दिखाकर एंटीइनकम्बैंसी दूर करने की रणनीति पर काम


किसी भी चुनाव में सत्तारुढ़ दल को दो तरह की एंटीइनकम्बैंसी से जूझना पड़ता है. पहला, उस सीट से जीते नेता के प्रति जनता को मोहभंग और दूसरा, पार्टी के प्रति मोहभंग. बीजेपी ने दिल्ली नगर निगम चुनावों में सभी पार्षदों के टिकट काटकर और नये चेहरे उतार कर पार्षदों के प्रति निजी एंटीइनकम्बैंसी को दूर कर दिया. अब बची पार्टी के प्रति एंटीइनकम्बैंसी. इसे वह मोदी का चेहरा दिखाकर दूर करने की रणनीति पर काम कर रही थी. सर्वे अगर सही हैं तो बीजेपी इसमें कामयाब होती दिख रही है.


आजकल विपक्षी दल बीजेपी के खिलाफ गठबंधन बनाने पर जोर दे रहे हैं. लेकिन सर्वे बताता है कि दिल्ली के तीनों नगर निगमों में अगर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मिलकर भी चुनाव लड़ते तो भी हार जाते. पूर्वी दिल्ली में बीजेपी को 64 में से 43 सीटें मिलती दिख रही हैं. वहां कांग्रेस के हिस्से में आठ और बीजेपी के हिस्से में 11 सीटें ही आ रही हैं. लेकिन वोट प्रतिशत की बात करें तो कांग्रेस के करीब 22 और आप के करीब 26 फीसद वोट बीजेपी के करीब 42 फीसद वोटों पर भारी पड़ते हैं. लेकिन सीटों का मायाजाल बीजेपी को फिर सत्ता दिला रहा है. यही हाल बाकी के दो नगर निगमों का भी है.


शासन चलाने की चाल ढाल में आमूलचूल परिवर्तन


अगर सर्वे सही है तो यहां बीजेपी की झोली में ही खुशी दिखाई देती है. लेकिन मोदीजी की जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ जाती है. अगर बीजेपी तीनों निगम जीतती है तो जाहिर है वह मोदी के चेहरे के कारण जीतेगी. ऐसे में दिल्ली के विकास के लिए मोदी को अलग से समय निकालना ही पड़ेगा. कांग्रेस के लिए दुख की बात है कि वह वापसी करती तो दिखती है लेकिन इतनी मजबूत भी नहीं हो रही कि आप को चुनौती दे सके. ऐसे में उसकी मजबूती का लाभ सीधे बीजेपी को मिल रहा है. आप के लिए तो संकट ही संकट है. वह दिल्ली विधानसभा चुनाव के अपने प्रदर्शन के आसपास भी नहीं ठहर पा रही है. विधानसभा चुनावों में 70 में से 67 सीटें जीतने वाली आप 272 वार्डों में से 90 फीसद से ज्यादा में बढ़त पर थी लेकिन सी वोटर के अनुसार उसे 272 में से सिर्फ 45 वार्ड ही मिल रहे हैं. आप को तेजी से सोचना होगा और अपनी शासन चलाने की चाल ढाल में आमूलचूल परिवर्तन करना पड़ेगा. ईवीएम मशीनों में खराबी का रोना रो कर जनता का दिल नहीं जीता जा सकता.


'मोदी पर ज्यादा यकीन कर रही है दिल्ली की जनता'


दिल्ली नगर निगम चुनावों में दो दलों के शासन की परख होनी थी. केन्द्र में करीब तीन सालों से बीजेपी की मोदी सरकार और दिल्ली में दो सालों से आप की केजरीवाल सरकार. दोनों विकास के अपने अपने दावे कर रहे थे. लेकिन सी वोटर का ओपीनियन पोल तो यही इशारा कर रहा है कि दिल्ली की जनता मोदी पर ज्यादा यकीन कर रही है. पानी माफ, बिजली का बिल हाफ के बाद हाउस टैक्स खत्म करने का लुभावना लालच देने वाली आप को अगर इस कदर दिल्ली का वोटर काट रहा है तो यह स्वभाविक रुप से केजरीवाल के लिए चिंता की बात होनी चाहिए. पहले पंजाब और गोवा, फिर दिल्ली विधानसभा की राजोरी गार्डन सीट और अब दिल्ली नगर निगम. हार की हैट्रिक का क्या तोड़ निकालेंगे केजरीवाल.


अंत में यही कहा जा सकता है कि अगर ओपीनियन पोल जैसे ही नतीजे आते हैं और बीजेपी तीनों नगर निगमों पर कब्जा करने में कामयाब हो जाती है तो क्या हम फिर से दोनों के बीच टकराव देखेंगे....क्य़ा तनख्वाह नहीं मिलने का आरोप लगाते हुए सफाई कर्मचारी पहले की तरह हड़ताल पर जाते रहेंगे और दिल्ली सड़ती रहेगी...क्या सड़कों की मरम्मत इसलिए नहीं होगी कि यह तय नहीं हो सकेगा कि सड़क नगर निगम के तहत आती है या दिल्ली सरकार के या केन्द्र के सीपीडब्लूडी विभाग के तहत.