हर-हर महादेव शंभू, काशी विश्वनाथ गंगे ... हर हर नीलकंठ शंभू .. काशी विश्वनाथ गंगे . ई है काशी नगरिया तू देख बबुआ.. भोले बाबा की डगरिया तू देख बबुआ... काशी आदि है.. अनादि है..अनंत है. तीन लोक से न्यारी है काशी.. सृष्टि के आरंभ की बात हो, दुनिया में भारत की पहचान की बात हो, संगीत और संस्कृति की बात हो, स्वाधीनता संग्राम की बात हो या फिर चुनाव की चर्चा - ये सभी काशी का जिक्र किए बिना पूरी नहीं होती.


काशी ने कितनों को बनाया... कितनों को जीवन की दिशा दी- इसकी फेहरिस्त गिनने में सदियां निकल जाएंगी. राजा हरिश्चंद्र, कबीरदास, काशी नरेश विभूति नारायण सिंह, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महामना मदन मोहन मालवीय, जयशंकर प्रसाद, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, गिरिजा देवी जैसे तमाम लोगों पर काशी की माटी का कर्ज है तो पिछले सौ साल की आधुनिक राजनीति में महात्मा गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक के सामाजिक-राजनीतिक जीवन को इसी काशी ने कसा और नई ऊंचाईयों पर पहुंचाया.

गांधीजी को 1916 में बनारस हिंदू विश्वविदियालय के उदघाटन समारोह में अगर भारत की सच्चाई का आत्मज्ञान न मिलता तो शायद वे लंबे समय तक अभिजात्य वर्ग के बैरिस्टर ही रहते. 1916 में बीएचयू का उदघाटन था और गांधीजी को दक्षिण अफ्रीका से लौटे एक साल ही हुआ था. महामना के निमंत्रण पर उन्हें भी उदघाटन सत्र में भाषण देने का मौका मिला. इस सत्र में राष्ट्रवाद पर खूब चर्चा हो रही थी. कांग्रेस के बड़े नेता जिनमें ज्यादातर बड़े वकील, जमींदार, कारोबारी या अंग्रेजों की सेवा कर रिटायर हुए अफसर थे. इसी में गांधीजी ने ऐतिहासिक भाषण दिया. उन्होंने कहा राष्ट्रवाद आज महज अभिजात्य वर्ग और मिडिल क्लास की आकांक्षा का परिचायक बना हुआ है. इसे निचले तबके से जोड़ना होगा. दबे कुचले वर्ग में जब तक राष्ट्रवाद हिलोरें न मारे, इसका लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता. इसके बाद गांधीजी की राजनीति ने देश को क्या दशा और दिशा दी उसे दुनिया जानती है.


2014 में काशी ने नरेंद्र मोदी को चुना. इस शहर ने न सिर्फ इन्हें सिर आंखों पर बिठाया बल्कि देश की सबसे बड़ी कुर्सी तक पहुंचने का रास्ता दिया. ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि अगर लालकृष्ण आडवाणी को अपने राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा उछाल सोमनाथ से मिला तो मोदी को बाबा विश्वनाथ से. आध्यात्मिक जगत में बड़ी मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ जो आपसे करवाना होता है करवा लेते हैं.


काशी को भगवान शिव की राजधानी कहा जाता है. कहते हैं इसे खुद शिव ने चुना और वो यहां साक्षात मां पार्वती के साथ निवास करते हैं. सनातन परंपरा में शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग बताए गए हैं- जहां शिव का निवास माना जाता है- और कैलाश उनका स्थायी निवास कहा जाता है. लेकिन धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक भोले बाबा अक्सर अपनी राजधानी में ही रहते हैं और यहां से सृष्टि की निगरानी करते हैं. इसीलिए कहते हैं काशी प्रलय के वक्त भी नष्ट नहीं होती- भगवान शिव इसे अपने त्रिशूल पर थाम लेते हैं.

ये बातें आस्था के धरातल पर कही जाती है लेकिन वाराणसी का अक्खड़पन, फक्कड़पन, जिंदादिली और साफगोई इस कदर पुरातन संदर्भों से साम्य बिठाती है कि अनास्थावान भी इसे शिव की नगरी माने बिना नहीं रह सकते हैं. काशी भोले बाबा की तरह दुनिया को कुछ न कुछ देने वाला शहर है. लेने वाला नहीं. यहां हर कोई 'गुरु' है, कोई किसी का चेला नहीं. काशीवासी दुनिया की चालाकियां समझते हुए भी मस्त रहते हैं. इन्हें कोई बेवकूफ नहीं बना सकता है.


ये संयोग ही है कि 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव का समापन वाराणसी से हो रहा है. गंगा मैया के लाडलों, यूपी के बेटों, पूर्वांचल की पतोहू और बहनजी में से किस पर मेहरबान होगी काशी.. इसका देश को बेसब्री से इंतजार है.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)


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