मशहूर क्रिकेटर और पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के खराब प्रदर्शन का गुस्सा लोग उनकी छह साल की बेटी पर निकाल रहे हैं. उनकी बेटी को रेप की धमकियां मिली हैं. इस दुखद घटना पर कोई क्या कह सकता है. पर क्या हम कठुआ की आठ साल की बच्ची को भूल गए हैं जिसके साथ भयानक दरिंदगी की गई थी? वह भी पूरे खानाबदोश बकरवाल समुदाय को मजा चखाने के लिए. स्त्री देह को हमेशा से जंग का मैदान ही माना जाता है. चाहे, उसकी उम्र पांच साल हो या पचास साल. धोनी की बेटी को मिलने वाली धमकियां इसी की मिसाल हैं.


यह मर्दानगी जहरीली ही है
रेप और यौन शोषण की धमकियां अक्सर टॉक्सिक मैसुलेरिटी यानी जहरीली मर्दानगी का आइना होती हैं. जहरीली मर्दानगी सोशल साइंस का शब्द है लेकिन इसका सीधा सीधा मतलब मर्दानगी की ऐसी परंपरागत विशिष्टताएं होती हैं जोकि सभी को नुकसान पहुंचाती हैं- औरतों को भी, और मर्दो को भी. पितृसत्तात्मक समाज में इन खासियतों को बराबर पुष्ट किया जाता है. जैसे लड़के कभी रोते नहीं. लड़के टफ होते हैं. असली मर्द औरतों की रक्षा करते हैं. असली मर्द हिसाब बराबर करता है. गलत बातों को बर्दाश्त नहीं करते.


संजय दत्त ने चार साल पहले एक विज्ञापन में मर्दानगीरी (गांधीगीरी की तर्ज पर) का नारा दिया था. उनका कहना था कि बाल लंबे करना, पिंक और पर्पल रंग के कपड़े पहनना, खाना पकाना, बच्चे पालना मर्दों का काम नहीं. यही मर्दानगी तब जहरीली बन जाती है, जब इसी लकीर को पीटती रहती है. इसी जहरीली मर्दानगी के चलते मर्दों के मन में अपने विरोधियों को मजा चखाने का भाव आता है और इसके लिए उनकी नजर सीधा औरत की देह पर जाती है. जैसा कि वाइ मेन रेप, द इंडियन अवकवर इनवेस्टिगेशन नाम की किताब लिखन वाली तारा कौशल कहती हैं- गुस्से, ताकत दर्शाने, जहरीले मर्दवाद और आत्मविश्वास में कमी से ही यौन हमले की इच्छा पैदा होती है.


ऑनलाइन उत्पीड़न की साइकी
सोशल मीडिया पर धमकियां के पीछे एक साइकी और काम करती है. कई साल पहले मशहूर अमेरिकी साइकोलॉजिस्ट जॉन सुलर ने कहा था कि वर्चुअल दुनिया ने हमारे व्यक्तित्व की उन परतों को उधेड़कर रख दिया है जिसे हम अक्सर छिपा कर रखते हैं. इसे उन्होंने ऑनलाइन डिसइनहिबिशन कहा था. सुलर का कहना था कि चूंकि इंटरनेट पर पहचान छिपी रहती है, इसलिए लोग अपने व्यवहार के प्रति जवाबदेह नहीं होते.


असल दुनिया से अगर वे किसी का उत्पीड़न करेंगे तो उसकी सजा उन्हें भुगतनी पड़ सकती है. पीड़ित के चेहरे के भाव दिख सकते हैं, उसके विरोध के स्वर सुनाई दे सकते हैं. कई बार हिंसा का जवाब हिंसा से देने की संभावना होती है. लेकिन ऑनलाइन वर्ल्ड में ये प्रतिक्रियाएं या तो होती ही नहीं, या देर से नजर आती हैं. उत्पीड़क के लिए पीड़ित फेसलेस, इमैजनरी कटआउट वाला होता है जिसमें कोई भावनाएं नहीं होतीं, इसीलिए उससे कोई सहानुभूति भी नहीं होती.


नन्हीं बच्चियों को शिकार बनाना बहुत आसान
इसीलिए बच्चियों को शिकार बनाना बहुत आसान है. वैसे नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो का कहना है कि भारत में 2019 में हर दिन बलात्कार की औसत 87 घटनाएं हुईं. इस साल 4 लाख से ज्यादा औरतें अपहरण, बलात्कार, यौन हमले या रिश्तेदारों की क्रूरता की शिकार हुईं. इनमें से 4,900 लड़कियां 18 साल से कम और 417 लड़कियां 12 साल से कम उम्र की थीं. संसद के मानसून सत्र में महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी एक सवाल के जवाब में बता चुकी हैं कि इस साल मार्च और सितंबर के बीच नेशनल साइबर क्राइम रिकॉर्डिंग पोर्टल पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी, रेप और गैंगरेप से संबंधित कंटेट को लेकर 13,244 शिकायतें मिली हैं.


अभी इसी हफ्ते हरदोई और मुंबई में 5 और 6 साल की बच्चियों के साथ रेप की घटनाएं हुई हैं. ऐसे में ऑनलाइन धमकी देना, क्या बड़ी बात है. वह भी पिता पर गुस्सा निकालने के लिए. आखिरकार, जन्म के बाद, और शादी होने से पहले तक, स्त्री देह पिता की संपत्ति ही तो मानी जाती है.


फिर जैसा कि जाहिर है, ऑनलाइन कुछ भी कह देना, बिल्कुल मुश्किल नहीं. भारत में 71 करोड़ लोग इंटरनेट एक्सेस करते हैं. इनमें सिर्फ 25 करोड़ महिलाएं हैं. करीब 35 प्रतिशत. इन 35 प्रतिशत में से 80 प्रतिशत साइबर ब्लैकमेलिंग और सेक्सुअल प्रकृति के अपराधों की शिकार होती हैं. उन्हें गंदी तस्वीरें और वीडियो भेजे जाते हैं. उनकी तस्वीरों और वीडियो को मॉर्फ किया जाता है. साइबरस्टॉकिंग की जाती है.


ऑनलाइन उत्पीड़न पर सर्विस प्रोवाइडर की भी जिम्मेदारी तय हो
ऐसे कंटेंट के लिए कौन-कौन जिम्मेदार है. संसद की एक कमिटी ने इसके लिए इंटरमीडियरी यानी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर और सर्च इंजन की जिम्मेदारी भी तय की है. इसी साल फरवरी में जयराम रमेश की अध्यक्षता में राज्यसभा की एडहॉक कमिटी ने सोशल मीडिया में पोर्नोग्राफी और बच्चों पर उसके प्रभाव पर एक रिपोर्ट दी थी. उसमें पॉक्सो एक्ट में बाल पोर्नोग्राफी की परिभाषा को व्यापक बनाने का सुझाव दिया गया था ताकि उसमें लिखित सामग्री और ऑडियो रिकॉर्डिंग को भी शामिल किया जा सके.


खास बात यह थी कि रिपोर्ट में कमिटी ने इस संबंध में इंटरमीडियरी को भी जिम्मेदार माना था. कमिटी ने कहा था कि यह इंटरमीडियरीज़ का दायित्व है कि वे बच्चों के यौन शोषण से जुड़ी सामग्रियों को हटाएं और बच्चों के पोर्न को एक्सेस करने वाले लोगों की पहचान करें. इसके लिए समय सीमा तय होनी चाहिए कि इंटरमीडियरी कब तक यह सामग्री हटाएंगी और अपराधियों की पहचान करेंगी. अगर इंटरमीडियरी एक निश्चित समय सीमा में यह सामग्री न हटाए तो उसे सजा दी जाए. कमिटी ने यह भी कहा था कि इंटरमीडियरी की जिम्मेदारियों को इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट (इंटरमीडियरीज़ को दिशानिर्देश) नियम, 2011 में स्पष्ट रूप से लिखा होना चाहिए.


बाकी सरकार बच्चों के साथ उत्पीड़न के खिलाफ सजा को सख्त कर चुकी है. 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ रेप और गैंगरेप की सजा फांसी तक हो सकती है. इसके लिए आईपीसी, 1860, साक्ष्य अधिनियम, 1872, सीआरपीसी, 1973 और यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा (पोक्सो) अधिनियम, 2012 में संशोधन किए गए हैं.


क्योंकि बदनामी में भी नाम मिल जाता है
फिलहाल पुलिस ने धोनी की बेटी को धमकी देने वाले नाबालिग लड़के को गुजरात के कच्छ से गिरफ्तार कर लिया है. लड़के ने अपराध कबूल भी कर लिया है. यूं यह एक छोटी बात दिखती है लेकिन है बहुत गंभीर. यहां उत्पीड़क और पीड़ित, दोनों बालिग नहीं. ऐसे में सजा क्या होगी, और कितनी. लेकिन अक्सर ऑनलाइन धमकी या गाली गलौच के बाद गंभीर सजा मिलती भी नहीं. इंस्टाग्राम पर एकता कपूर को एब्यूसिव वीडियो भेजने वाला हिंदुस्तानी भाऊ, मनोज वाजपेयी के भोजपुरी रैप के जवाब में अपना रैप रिलीज कर चुका है और उसे हजारों लोग देख भी चुके हैं. तो, बदनामी में भी नाम मिल जाता है.





(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)



माशा