आज ऋषि कपूर का वो खूबसूरत गीत याद आ रहा है... चल कहीं दूर निकल जाएं. वाकई बहुत दूर निकल गए ऋषि कपूर.


आज सबकी जुबान पर यही जिक्र है कि कि क्या थे ऋषि कपूर? बॉलीवुड के ओरिजिनल चॉकलेट हीरो, अल्टिमेट रोमैंटिक स्टार, लवर बॉय... हां ऋषि कपूर ये सब कुछ थे. लेकिन ऋषि कपूर सिर्फ ये सब कुछ ही नहीं थे और भी बहुत कुछ थे. बेहद जिंदादिल थे, स्टबबर्न थे, सर्वाइवल इंस्टिंक्ट से भरपूर थे. लेकिन जो सबसे खास बात थी ऋषि कपूर की... जानते हैं वो क्या थी? अलग अलग तरह के इनविजिबल नकाब पहने घूमते फिल्म इंडस्ट्री के सैकड़ों हिपोक्रेट्स स्टार्स, जिनके दिल में कुछ होठों पर कुछ और है... उन सब से बिलकुल अलग ऋषि कपूर बेबाक थे, ईमानदार थे और जो दिल में था वही होठों पर भी.


ऋषि कपूर की फिल्में हम सबने देखी हैं. किसी को अमर अकबर एंथनी पसंद है, किसी को खेल खेल में, किसी को कर्ज तो किसी को हम किसी से कम नहीं. हम सबके ज़ेहन में ऋषि कपूर की अलग अलग तस्वीरें क़ैद हैं. लेकिन हर तस्वीर में वो जिंदगी से भरे, चेहरे पे एक ईमानदार मुस्कुराहट का नूर लिए. शायद स्विटज़रलैंट से खरीदा हुआ कोई रंगीन स्वेटर पहने नज़र आते होंगे.


ये सारी तस्वीरें उसी इमेज की तरफ इशारा करती हैं जिस इमेज में फिल्म इंडस्ट्री ने उन्हें शुरुआत में ही जकड़ दिया था. अब 1973 में पहली फिल्म बॉबी रोमांटिक फिल्म है, सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर है साल की, तो अब ऋषि कपूर तो रोमैंटिक फिल्में ही दी जाएंगी. ये ठप्पा लगा दिया गया जो फिल्म इंडसट्री की रीत है.


इसमें कोई प्रॉब्लम भी नहीं थी. सालों साल से हिंदी फिल्में रोमांस और रोमांटिक गीत ही परोस रही थीं. लेकिन 1973 में ही जिस साल बॉबी आयी उसी साल एक और फिल्म आयी- ज़ंजीर. और उसके साथ ही आए एंग्री यंग मैन. बात सिर्फ एक फिल्म की होती तो ठीक थी लेकिन अचानक ट्रेंड ही बदल गया. हिंदी सिनेमा रोमैंटिक फिल्मों से एक्शन की तरफ शिफ्ट होने लगा. ये खतरे की घंटी थी राजेश खन्ना जैसे जमेजमाए रोमैंटिक स्टार और नए नवेले रोमैंटिक स्टार ऋषि कपूर के लिए. ऋषि कपूर पर एक्शन सूट नहीं करता था. इसलिए अमिताभ के सामने टिका रहना जरूरी था और ऋषि कपूर ना सिर्फ टिके रहे बल्कि जमके खेले.



खेल खेल में, रफू-चक्कर, लैला मजनू, जैसी रोमांटिक सुपरहिट फिल्में भी देते रहे और जहरीला इंसान और दूसरा आदमी जैसी फिल्मों के जरिए एक्सपेरीमेंट भी करते रहे. ये सब तब कर रहे थे जब अमिताभ छाए हुए थे.


फिर मल्टीस्टारर फिल्मों का दौर भी शुरू हुआ. ऋषि कपूर का दूसरा चेहरा अमिताभ की फिल्मों में उनका भाई या दोस्त के रोल था. जिन रोल्स में दूसरे स्टार अमिताभ के करिज्मा सामने खो जाते थे वहां ऋषि कपूर ना सिर्फ अपनी प्रेज़ेस जर्द कराते बल्कि अपने सीन्स में छा जाते थे. अमर अकबर एंथनी हो, कभी-कभी, नसीब, कुली ये सब फिल्में अकेले अमिताभ की फिल्में नहीं कही जाती इसे ऋषि कपूर का जादू और सर्वाइवल इंस्टिंक्ट का करिश्मा ही कहा जाएगा.


जब जब बॉलीवुड में कमबैक की बात होती है ज्यादातर अमिताभ बच्चन का नाम लिया जाता है लेकिन कमबैक मैन ऋषि कपूर भी कम नहीं थे. ऋषि कपूर के करियर में ऐसे बहुत से मौके आए जब कहा गया कि अब उनका करियर ढल जाएगा. हर बार ऋषि कपूर ने कमबैक मारा. 1980 के आसपास, दो प्रेमी , आपके दीवाने, दुनिया मेरी जेब में जैसी फिल्में पिट रही थी. सारी उम्मीदें सुभाष घई की कर्ज से जुड़ी थी. कर्ज आयी और फ्लॉप हो गयी. जबकि कर्ज के साथ रिलीज हुई फिरोज खान विनोद खन्ना जीनत अमान की फिल्म कुर्बानी ब्लॉकबस्टर हो गयी. फिर अगले साल जमाने को दिखाना है, और दीदार ए यार बुरी तरह फ्लॉप रहीं. फिल्म नसीब हिट थी लेकिन उसकी कामयाबी अमिताभ के खाते में जुड़ी. तो बहुत खराब वक्त था.


जब पापा राज कपूर की प्रेम रोग आयी और सुपर हिट रही तब ऋषि का करियर पिर चल निकला. हिट फ्लॉप के ये खेल चलता रहा. लेकिन उनकी सर्वाइवल इंस्टिंक्ट हमेशा एक्टिव रही. 2-4 साल बाद जब फिल्में फिर फ्लॉप होना शुरू हुईं तो ऋषि कपूर ने अपना स्टार वाला ईगो एक तरफ रखकर वो फिल्में भी साइन करना शुरू कर दिया जिनमें कहानी के केन्द्र में हीरोइन थीं. तवायफ, नगीना, सिंदूर, चांदनी. ये सब जबरदस्त हिट फिल्में थीं. लेकिन सारी हीरोइन प्रधान फिल्में लेकिन हीरो ऋषि कपूर.



खासतौर पर दो फिल्में चांदनी जिसे श्रीदेवी की फिल्म माना जाता है और दामिनी जिसे मीनाक्षी शेषाद्री की फिल्म माना जाता है. अब जब वक्त मिले इन दोनों फिल्मों में ऋषि कपूर के परफॉरमेंस पर गौर कीजिएगा. आप हैरान रह जाएंगे कि कितना स्पॉनटेनियस और कितने सहज हैं वो. जिस कहानी में फोकस हीरो पर नहीं है उस कहानी में ऋषि कितने ब्रिलिएंट होते थे. ये उनकी फिल्में देख कर समझ सरकते हैं आप कि ये बहुत मुश्किल काम है.


1987 के बाद 1991 तक फिर बहुत बुरा दौर था. ये वो दौर था जब आमिर खान और सलमान खान का डेब्यू हो चुका था. मतलब रोमांटिक स्टार्स की नयी पीढ़ी आ चुकी थी. ऋषि कपूर की उम्र और उनका वजन दोनों बढ़ चुके थे. इंडस्ट्री से आवाजे आने लगी थी कि रिटायर हो जाना चाहिए. अब बाप के रोल करने चाहिए. फिर 1992 में आयी डेविड धवन की 'बोल राधा बोल' सुपरहिट रही. उसी साल आयी दीवाना जो शाहरुख कान की पहली फिल्म थी लेकिन हीरो थे ऋषि कपूर. दो बड़ी हिट्स के सथ ऋषि कपूर ने जबरदस्त कमबैक मारा. बॉबी के बीस साल बाद वो साल में दो रोमैंटिक सुपरहिट दे रहे थे.


फिर 2000 तक आते आते उम्र के उस पड़ाव पर थे जब हीरो बनना मुमकिन नहीं था शायद. तो आरके बेनर के लिए फिल्म डायरेक्ट की 'आ अब लौट चले'. एंटरटेनिंग फिल्म थी लेकिन समझ में आया कि डायरेक्शन उनका खेल नहीं है. जब तक हीरो थे इमेज में जकड़े हुए थे अपने आपको रिपीट करते रहे थे. लेकिन अब अपनी दूसरी पारी में मौका मिला जंजीरे तोड़ने का और फिर दिखाया कि क्या थे ऋषि कपूर.


नमस्ते लंदन, लक बाय चांस देखिएगा, लव आजकल, और हां डी डे में दाऊद इब्राहीम के रोल में थे. फिर अग्निपथ, औरंगजेब और मुल्क ये फिल्में देखेंगे तो पता चलेगा कि क्या शानदार रेंज थी, जिसे इंडसट्री ने देर से समझा, लेकिन समझा जरूर.


और जाता जाते एक बात और ऋषि कपूर कई पीढ़ियों के बीच के एक पुल थे. राज कपूर के साथ शुरुआत की, दिलीप कुमार के साथ काम किया. राजेश खन्ना और अमिताभ के समकालीन थे. धर्मेन्द्र के साथ भी हीरो थे तो उनके बेटे सनी के साथ भी हीरो रहे. शाहरुख सलमान आमिर के साथ भी काम किया तो बेटे रणबीर और उनकी पीढ़ी के साथ भी कामयाब फिल्में दीं. ये पुल बहुत मज़बूत पुल था.


हर पीढ़ी में जिसने भी उनके साथ काम किया उसने एक बात जरूर कही- इस तरह ऋषि कपूर कितने कूल हैं और कैसे जो उनके दिल में है वही चेहरे पर.


एक ज़िंदगी में इससे ज्यादा क्या हासिल करेंगे आप. आपके जैसा कोई नहीं है. आप बहुत याद आएंगे ऋषि कपूर.


(उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)