अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन का दिन यानी की पांच अगस्त. ऑफिस से झोंतेश्वर जाने का आदेश था. जहां शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज का लाइव इवेंट करवाना था. बहुत दिनों के बाद बाहर जाने का मौका मिल रहा था. वरना इस कोरोना काल में बाहर आने-जाने की झिझक बढ़ गई है.


नरसिंहपुर जाने के लिए एक दिन पहले दोपहर में गाड़ी आ गई. साफ सुथरी सफेद गाड़ी. विनम्र ड्राइवर का हमसे बात करने का अंदाज, गाड़ी चलाने का तरीका, हमारी गाड़ी का ड्राइवर हमें हमसे ज्यादा खुश दिखा. अंदाजा लगाया कि हो ना हो जो राम मंदिर के भूमि पूजन का हर्षोल्लास आम जनता में है, जैसा कि बताया जा रहा था, ये उसी का असर होगा. उसका नाम था रामपूजन.


थोड़ा आगे चलते ही हमने पूछ लिया कि रामपूजन जी बहुत प्रसन्न दिख रहे हो, अयोध्या में राम मंदिर अब बनने जा रहा है क्या इसलिए, अब उसका जबाव हमारे लिए हैरान करने वाला था. सर मंदिर बन रहा है अच्छी बात है, पर हमारी खुशी का कारण दूसरा है. सर बात ये है कि इस महीने में ये हमारी गाड़ी पहली बार निकली है. वो भी पंद्रह दिन के बाद. पिछले पूरे महीने तीन बार बुकिंग मिली. क्या करें सर लॉकडाउन में जिंदगी लॉक हो गई है. हमारे ट्रेवल कंपनी के मालिक बहुत अच्छे हैं सर, अप्रैल महीने में काम नहीं था फिर भी उन्होंने हमें पूरी तनख्वाह दी.


सर भगवान उनका भला करें. मगर मई में तनख्वाह आधी हो गई फिर भी हमने उनका एहसान माना. सर बताइए कौन करता है इतना. उनकी सारी गाड़ियां खड़ी हैं, कोई बुकिंग कोई काम नहीं, मगर सर जून में तो जरा भी काम नहीं आया तो बेचारों ने कह दिया कि भाई जितना काम उतना पैसा. सर चार बार काम आया खींचतान के दो हजार मिले. ऐसा ही जुलाई में हुआ. अब अगस्त में पहले हफ्ते में ही काम मिल गया. उम्मीद है काम की गति बढ़ेगी, इसलिए बहुत खुश हूं सर. वैसे आप बुरा मत मानना हिंदू हूं, दोनों टाइम घर पर ही भगवान राम की पूजा करता हूं, रामरक्षास्त्रोत पढ़ता हूं मगर क्या करूं सर मंदिर बनने की खुशी नहीं हो रही, ये तो काम मिलने की खुशी है. काम मिलेगा तो बच्चे पाल पाउंगा, घर चला पाउंगा.


रामपूजन की बात में सच्चाई का डोज इतना कड़वा था कि फिर पूरे रास्ते बात करने की हिम्मत नहीं हुई. बीच में उसने कुछ गाने वाने चलाने की पूछी तो हमने मना ही कर दिया. मन अनमना हो गया था. रास्ते भर दाएं-बाएं ही देखता रहा. हालांकि रास्ते में दाएं-बाएं कुछ देखने को था नहीं जो दिख रहा था, तो वो ये कि कड़ाके कि धूप में खेतों में लगी धान की रोपे सूख रहे थे. अच्छे दिन होते तो ये रोपे पानी में डूबे होते मगर पानी पूरी जुलाई भर नहीं बरसा और अगस्त भी अब तक सूखा ही जा रहा था.


रास्ते में ट्रैफिक बेहद कम था. रक्षाबंधन का त्योहार एक दिन पहले ही गुजरा था, तो मोटरसाइकिलों पर लदे-फदे परिवार ही एक गांव से दूसरे गांव आते-जाते दिख रहे थे. सार्वजनिक परिवहन महीनों से बंद है, तो सामाजिकता निभाने के लिए ये मोटर साइकिलें ही सहारा बनी हुई हैं. हालांकि इनके चलते दुर्घटनाएं भी ज्यादा हो रही हैं.


रास्ते में बहुत सारे बंद पड़े ढाबों के बाद एक छोटा सा ढाबा खुला दिखा. सोचा चलो चाय ही पी ली जाए. रामपूजन गाड़ी रोको यहां पर ही चाय पीते हैं, चाय वाय पीते हो कि नहीं, हमने पूछा. अरे सर आज कल चाय ही चाय पी जा रही है दिन भर, अपने ट्रैवल सेंटर पर बैठकर चाय ही पीते रहते हैं हम ड्राइवर लोग. बैठे-बैठे दस दस चाय हो जाती है सर. मगर आपको बहुत अच्छी जगह चाय पिलाना चाहता था, लेकिन सारे अच्छे ढाबे बंद पड़े हैं, मालूम नहीं कब खुलेंगे. सर आप बताइए ना आप तो पत्रकार हैं, ये करोना कब खत्म होगा और कब तक चलेगा.


अचानक मुझे वही चुटकुला याद आ गया, जब किसी मरीज ने डाक्टर से पूछा कि ये करोना कब खत्म होगा तो उसने कहा कि मैं डाक्टर हूं पत्रकार नहीं. मैंने मुस्कुराकर कहा कि रामपूजन जी सच्चाई तो राम जाने मगर मुझे लगता है ये महामारी बहुत लंबी चलेगी. मेरी हंसी रामपूजन पर भारी पड़ी वो उदास होकर अपने आप से बोला यदि बीमारी लंबी चलेगी तो फिर घर कैसे चलेगा.


रामपूजन से ध्यान हटाकर मैंने रामसहाय ढाबे वाले से पूछा अब तो मंदिर बन रहा है खुश हो? मगर उसका जवाब फिर मुझे पलट कर लगा, अरे साहब मंदिर तो जब बनेगा, तब बनेगा मगर ये हमारे एनएच 12 का रोड कब बनेगा. बीस सालों से बन ही रहा है, जाने कितने ठेकेदार बदल गए, रात दिन धूल उड़ती है, आप शायद तैयारी से नहीं चले वरना इस रोड से नहीं आते. एक तो सालों से धूल उड़ाती ये टूटी सड़क उस पर कोरोना, अब तो यहां ताला डालकर खेती करने का मन है, अब इससे गुजारा नहीं हो रहा.


भोपाल से छह घंटे में नरसिंहपुर आ ही गया जहां पर रात रुकने के लिए होटल तलाशा. होटल में प्रवेश करते ही पूरा स्टाफ मुस्कुराया. काउंटर पर बैठे मैनेजर से यूं ही हंसी ठिठोली में पूछ लिया भई रूम खाली है कि नहीं मगर मैनेजर मुझसे शातिर निकला बोला आप रूम की बात कर रहे हैं यहां तो पूरा होटल खाली पड़ा है, दो तीन महीने से. जहां चाहे वहां रूक जाएं. अब झेंपने की बारी मेरी थी. मैनेजर भी रामदयाल था. बताने लगा सर खर्चा नहीं निकल रहा. एक दो बार स्टाफ की छंटनी हो चुकी है, किस दिन अपनी हो जाए राम जाने.


भोपाल से नरसिंहपुर आने के ढाई सौ किलोमीटर के सफर में ही लग गया कि अब अयोध्या में मंदिर जल्दी बनना चाहिए क्योंकि अब इस देश की बहुसंख्यक जनता के बहुत सारे सवालों के जवाब भगवान राम के ही पास हैं.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)