स्वर कोकिला, स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर आज 28 सितम्बर को 89 बरस की हो गयीं. इसी के साथ उन्होंने हिंदी फिल्मों में अपने पार्श्व गायन के 70 साल भी पूरे कर लिए. यह सच है कि वह पिछले करीब 10 साल से फिल्मों के लिए नहीं गा रही हैं. लेकिन इन पिछले दस साल को हटाकर भी यदि हम उनके उससे पहले के 60 वर्ष का ‘सिंगिंग करियर’ देखें तो इतना शानदार और सुहाना सफ़र अन्य किसी गायिका का नहीं रहा. यदि फिल्मों में पार्श्व गायन की लम्बी पारी की भी बात करें तो उनका मुकाबला सिर्फ और सिर्फ अपनी छोटी बहन आशा भोंसले से रहा है. यहां तक लता मंगेशकर के पूरे करियर में भी यदि कोई उनका मजबूत प्रतिद्वंदी रहा है तो वह भी आशा भोंसले रही हैं.


आशा भोंसले भी अपनी लता दीदी की तरह एक बेमिसाल गायिका हैं. जबकि कुछ लोग यह भी मानते रहे हैं कि कुछ एक दो ख़ास किस्म के मद मस्त गीतों में जिस तरह के अंदाज़, जिस तरह की रंग आशा भोंसले भरती रही हैं, वैसा शायद लता भी नहीं कर सकतीं. लेकिन यह भी सच है कि कुल मिलाकार लता मंगेशकर जैसी गायिका इस देश में ही नहीं, इस धरती पर भी कोई और नहीं है. आशा भोंसले करोड़ों को अपनी मादक आवाज़ से दीवाना बनाने का दमख़म रखने और कई बड़े शिखर छूने के बाद भी लता मंगेशकर के सामने, अपने जीवन में ही नहीं, गायिका के रूप में भी उनकी छोटी बहन हैं.


बहुतों ने किया दूसरी लता बनने–बनाने का दावा
सच तो यह है कि पिछले 70 बरसों में कोई भी और गायिका लता मंगेशकर के शिखर को नहीं छू सकी है. अब जबकि लता इतने बरसों से पार्श्व गायन से दूर हैं तब भी कोई ऐसी गायिका हमको दूर दूर तक दिखाई नहीं देती जिसे आने वाले कल की स्वर साम्राज्ञी कहा जा सके. फिर लता ने 20 भाषाओँ में लगभग 30 हज़ार गीत गाकर भी जिस क्षितिज को छुआ है, वह भी उन्हें सबसे आगे ले जाता है. हालांकि इतने बरसों में एक से एक खूबसूरत गायिका फिल्म संगीत की दुनिया में आई. कुछ संगीतकारों ने तो लता का विशाल साम्राज्य देख दूसरी लता बनाने के बहुत से दावे ठोके. यहां तक ओ पी नय्यर और आर डी बर्मन जैसे दिग्गज संगीतकारों ने तो आशा भोंसले को उनसे आगे ले जाने के हर संभव प्रयास किये. साथ ही इन बरसों में सुमन कल्यानपुर, कविता कृष्णमूर्ति, हेम लता, सुषमा श्रेष्ठ, अनुराधा पोडवाल, सपना मुखर्जी, अलका याज्ञनिक, सुनिधि चौहान और श्रेया घोषाल जैसी कई अच्छी गायिकाओं ने अपने सुरों का अच्छा जादू चलाया लेकिन लता मंगेशकर के शिखर तो पहुंचना तो दूर, इनमें से कुछ गायिकाएं तो कुछ दूर आगे बढ़कर कहां खो गयीं यह तक पता नहीं चला. हाल के बरसों में भी कई अच्छी नयी गायिकाएं फिल्म संगीत में आई हैं लेकिन उनमें भी अभी तक किसी ने ऐसे संकेत नहीं दिए, जिससे लगे कि यह गायिका बहुत आगे तक जायेगी, लता जैसा बनेगी. यह देखकर गीतकार जावेद अख्तर की वह बात याद आती है कि एक सूरज है, एक चाँद है और लता मंगेशकर भी एक है.


संघर्ष में तपकर बनी सोना
28 सितम्बर 1929 को मध्यप्रदेश के इंदौर में जन्मीं लता मंगेशकर ने यूं तो अपने बचपन से ही बहुत संघर्ष किये. लेकिन अच्छी बात यह थी उन्होंने मात्र 5 वर्ष की आयु में अपने शास्त्रीय गायक और रंगकर्मी पिता दीनानाथ मंगेशकर से गायन सीखना शुरू कर दिया था. जब वह सात साल की थीं, तभी उनका परिवार महाराष्ट्र में आ गया था. जहां आकर लता ने मंच पर गीत संगीत के कुछ कार्यक्रम करके अपने बालपन में ही अपनी प्रतिभा से सभी का मन मोहा. लेकिन सन 1942 में जब वह 13 साल की हुईं तो उनके पिता का निधन हो गया. इससे परिवार की सबसे बड़ी संतान होने के कारण अपने छोटी बहनों और भाई- मीना, आशा, उषा और ह्रदयनाथ मंगेशकर की ज़िम्मेदारी भी उनके कन्धों पर आ गयी.


नंदा के पिता ने दिया साथ
ऐसे में लता के पिता दीनानाथ के दोस्त और मराठी फिल्मकार और अभिनेता विनायक दामोदर कर्नाटकी, जो मास्टर विनायक के नाम से विख्यात थे, उन्होंने लता को एक अभिनेत्री और गायिका बनने में मदद की. यहां यह भी बता दें कि मास्टर विनायक सुप्रसिद्द अभिनेत्री नंदा के पिता थे. मास्टर विनायक के कहने से अपने पिता के निधन से एक सप्ताह बाद ही लता ने उनकी मराठी फिल्म’ पहली मंगलागौर’ में अभिनय किया और गीत भी गाया. इसके बाद लता ने पैसों की खातिर 7 अन्य मराठी फिल्मों में भी अभिनय किया. लेकिन लता का मन अभिनय के लिए नहीं गायन के लिए मचल रहा था. हालांकि सन 1942 में लता ने एक मराठी फिल्म ‘किटी हासल’ में एक गीत ‘नाचूं या गड़े’ गाया था लेकिन बाद में इस गीत को फिल्म से निकाल दिया था. इसके बाद कुछ और लोगों ने भी लता को गायिका के रूप में यह कहकर रिजेक्ट कर दिया कि उनकी आवाज़ पतली है.


दो साल में ही छा गयीं थीं लता
हालांकि बाद में यही लता मंगेशकर ने अपने सुरों से जो इतिहास लिखा वह किसी से छिपा नहीं है. दुनिया भर के संगीत प्रेमी और संगीत तथा स्वर विशेषज्ञ बरसों तक इस रहस्य को जानने के लिए उतावले रहे कि कोकिला कंठ लता के कंठ में ऐसा क्या है जो इतनी मधुर और मखमली आवाज की स्वामिनी हैं. लेकिन यह रहस्य आज तक रहस्य बना हुआ है. लता ने हिंदी फिल्मों में पहले पहल सोलो गीत सन 1947 में वसंत जोगलेकर की फिल्म ‘आप की सेवा’ में गाया था, गीत के बोल थे- चलो हो गयी तैयार. इस फिल्म के संगीतकार थे दत्ता देवजेकर. इसके बाद लता को फिल्मों में गीत गाने के मौके तो मिलते रहे लेकिन सफलता मिली दो बरस बाद सन 1949 में. यह साल लता के लिए ऐसी सौगात लेकर आया कि उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. इस साल उन्हें पहली सफलता मिली खेमचंद प्रकाश के संगीत से सजी फिल्म ‘महल’ के गीत –‘आएगा आने वाला’ से. साथ ही इसी साल आई राजकपूर की फिल्म ‘बरसात’ ने तो लता के करियर को हवा दे दी. शंकर जयकिशन के संगीत में ‘बरसात’ के लता के कुल 10 गीत थे, जिसमें 8 गीत सोलो ही थे. ‘हवा में उड़ता जाए’, जिया बेक़रार है, बरसात में हमसे मिले तुम और मुझे किसी से प्यार हो गया जैसे गीतों ने धूम मचा दी थी. जिनमें से कुछ गीत तो आज भी सदाबहार हैं.


लता से पहले नूरजहां थीं मल्लिका ए तरन्नुम
जब लता मंगेशकर ने फिल्म संगीत की दुनिया में कदम रखा तब राजकुमारी, शमशाद बेगम, खुशीद और नूरजहां जैसी गायिकाओं का फिल्मों में बोलबाला था. नूरजहां और सुरैया बड़ी गायिका होने के साथ अभिनेत्री भी थीं. नूरजहां तो तब मल्लिका ए तरन्नुम कहलाती थीं. इसलिए शुरू में लता की गायकी को नूरजहां की गायकी के तराजू में तोला जाता था. स्वयं लता भी नूरजहां की आवाज़ से प्रभावित थीं. यहाँ तक संगीतकार भी लता को नूरजहां जैसा गाने के लिए कहते थे. इसलिए शुरू के लता के कुछ गीतों मसलन, ‘आएगा आने वाला’ और ‘उठाये जा उनके सितम’ में नूरजहां के अंदाज़ की झलक साफ़ मिलती है. लेकिन बाद में जब नूरजहां पाकिस्तान चली गयीं और सुरैया ने इश्क में निराश होने के बाद फिल्मों से बेरुखी कर ली तो लता मंगेशकर सभी से इतना आगे निकल गयीं कि आज तक कोई उनके पास नहीं पहुँच पाया है.


इस उम्र में भी हैं सक्रिय
लता मंगेशकर पिछले कुछ बरसों से चाहे फिल्मों के लिए पार्श्व गायन नहीं कर रहीं लेकिन आज भी वह पूरी तरह सक्रिय हैं. फिल्मों के, अपने गीतों के और फिल्म कलाकारों के एक से एक पुराने किस्से उन्हें बखूबी याद हैं. उनसे जब भी बात होती है, उनके मीठे बोल दिल को छू लेते हैं. यह ठीक है कि कभी कुछ अस्वस्थ होने के कारण उनके कुछ निर्धारित कार्यक्रम भी कभी कभार डगमगा जाते हैं. लेकिन वह जहां ट्विटर पर अपने दिल की बात लोगों से साझा करती रहती हैं, वहां गैर फ़िल्मी गीत और भजन आदि के एल्बम के लिए भी यदा कदा गाती रहती हैं. यहां तक अपने इस 89 वें जन्म दिवस के सप्ताह में ‘बिग ऍफ़ एम’ के लिए रेडियो जॉकी बनकर भी सभी को चौंकाया. अपने इस जन्म दिवस पर लता ने अपनी बहन मीना मंगेशकर द्वारा लिखित पुस्तक ‘मोठी तिची सावली’ का भी लोकार्पण कराया.


70 की आयु में 17 सी मिठास
वह किस कोटि की गायिका हैं, यह बात सभी जानते हैं. अपनी 70 की उम्र में भी लता जी ने जो गीत गाये हैं, उन्हें सुनकर ऐसा ही लगता है कि कोई 16, 17 या फिर 20-21 साल की लड़की ही इन गीतों को गा रही होगी. 90 के दशक में तो अपनी- हम आपके हैं कौन, दिल वाले दुल्हनियां ले जायेंगे, माचिस, दिल तो पागल है जैसी फिल्मों से जो धमाल किया वह किसी चमत्कार जैसा ही लगता है. फिर उसके बाद सन 2000 के बाद आई फिल्मों में भी उनके गीतों का जादू सर चढ़कर बोलता रहा है. चाहे ‘कभी ख़ुशी कभी गम’ हो या ‘वीर ज़ारा’ और ‘रंग दे बसंती’. कोई गायिका अपनी 70-75 बरस की उम्र में ऐसा गा सकती है इसकी लता ने शानदार मिसाल पेश की है


मान सम्मान में भी हैं बेमिसाल
लता मंगेशकर ने सर्वाधिक गीत गाने का तो रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज कराया ही था. लेकिन जो मान सम्मान लता जी को अपने जीवन में एक पार्श्व गायिका के रूप में मिला है, उतना फिल्म संगीत क्षेत्र की किसी हस्ती को नहीं मिला. लता मंगेशकर को जहां देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न और फिल्म क्षेत्र का शिखर पुरस्कार दादा साहब फाल्के मिला है वहां उन्हें पदम् भूषण और पदम् विभूषण जैसे शिखर के नागरिक सम्मानों से भी नवाज़ा जा चुका है. लता के आलावा फिल्म क्षेत्र से यह सम्मान सिर्फ सत्यजित रे को हासिल हुए. लेकिन लता मंगेशकर ऐसी अकेली हस्ती हैं जिनके अपने जीवन काल में उनके अपने नाम से दो राजकीय सम्मान, लता मंगेशकर अवार्ड, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र सरकार द्वारा स्थापित किये गए. उधर लता ने अपने सर्वश्रेष्ठ गायन के लिए तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीता, फिल्म ‘परिचय’, ’कोरा कागज़’ और ‘लेकिन’ के लिए. जबकि उन्हें आजा रे परदेसी, कहीं दीप जले कहीं दिल, तुम्ही मेरे मंदिर और आप मुझे अच्छे लगने लगे गीतों के लिए चार बार सर्वश्रेष्ठ गायिका का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला और एक बार फिल्मफेयर का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार के साथ दो बार फिल्मफेयर के विशेष सम्मान भी प्राप्त हुए. यहाँ यह भी दिलचस्प है कि वह खुद कभी स्कूल में जाकर न पढ़ सकीं लेकिन उन्हें देश विदेश के कई विश्वविद्यालयों ने मानद उपाधि से सम्मानित किया जा चुका है.


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