शुक्रवार की शाम जब पूरे देश के क्रिकेट प्रेमी अगले दो दिन की छुट्टियों की खुमारी में होंगे तो उनके बीच चर्चा का एक बड़ा विषय होगा. ये विषय देश की अर्थव्यवस्था, राजनीति या किसी और चीज से जुड़ा होने की बजाए जुड़ा होगा क्रिकेट से. यकीन मानिए शुक्रवार की पार्टी से लेकर शनिवार की सुबह नौ बजे तक क्रिकेट प्रेमियों में इसी बात को लेकर सस्पेंस होगा कि विराट कोहली धर्मशाला के मैदान में उतरेंगे या नहीं?



दरअसल, इस वक्त सबसे बड़ा सवाल ये है कि टीम इंडिया को कितने ‘फिट’ कोहली की है जरूरत? विराट कोहली ने टेस्ट मैच से पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहाकि उनके खेलने या ना खेलने पर फैसला वो मैच से पहले ही लेंगे. विराट कोहली के कंधे में चोट है. उन्होंने ये भी साफ किया कि उनकी तकलीफ बल्लेबाजी में कम फील्डिंग में ज्यादा है. अब सस्पेंस इस बात को लेकर है कि शनिवार सुबह विराट कोहली की कौन सी छवि देश को देखने को मिलेगी... क्रिकेटर की, फाइटर की या एक रिस्की खिलाड़ी की.



नेट्स की तस्वीरें क्या कहती हैं



धर्मशाला में मैच से पहले विराट कोहली ने नेट्स में बल्लेबाजी का अभ्यास किया. सिर्फ अभ्यास ही काफी नहीं था नेट्स खत्म होने के बाद लौटते वक्त विराट कोहली अपना किटबैग कंधों पर टांगे हुए थे. किटबैग का वजन इतना तो होता ही है कि अगर दर्द बहुत ज्यादा है तो खिलाड़ी उसे कंधे पर नहीं टांगेगा. यानि नेट्स में बल्लेबाजी और कंधे पर किटबैग, ये दो तस्वीरें साफ करती हैं कि विराट कोहली को पहले के मुकाबले आराम है.



लगे हाथ इस बात पर भी चर्चा कर लेते हैं कि क्या वाकई विराट कोहली की परेशानी बल्लेबाजी में कम और फील्डिंग में ज्यादा है. ये बात कम ही व्यवहारिक लगती है. विराट कोहली चाहें तो ‘सर्किल’ के अंदर फील्डिंग कर सकते हैं, स्लिप में फील्डिंग कर सकते हैं. जहां से उन्हें बहुत ताकत लगाकर ‘थ्रो’ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.



विराट की असली परेशानी बल्लेबाजी ही है. खास तौर बल्ले के हैंडल को नीचे से पकड़कर खेले जाने वाले शॉट्स में. ड्राइव लगाने में. ऐसे में सौ की सीधी बात ये है कि मैच की सुबह विराट कोहली अगर खुद को 75-80 फीसदी भी फिट पाते हैं तो वो इतने अहम मैच को ‘मिस’ नहीं करेंगे.



खुद एक मिसाल हैं कोच कुंबले



कुंबले की वो तस्वीरें हर क्रिकेट प्रेमी को याद हैं. जब साल 2002 में एंटिगा टेस्ट में वो टूटे जबड़े के साथ गेंदबाज़ी करने के लिए उतर गए थे. पूरे चेहरे पर पट्टी थी. उस दिन पूरे देश ने कुंबले में एक फाइटर देखा था. अनिल कुंबले ने ना सिर्फ गेंदबाजी की थी बल्कि उस मैच में ब्रायन लारा का अहम विकेट भी हासिल किया था. कुंबले अब टीम के कोच हैं.



आईपीएल में बैंगलोर की टीम के साथ जुड़े होने की वजह से कुंबले और कोहली में आपसी तालमेल भी जबरदस्त है. कुंबले एक बेहद संतुलित खिलाड़ी होने के साथ साथ बेहद संतुलित इंसान भी हैं. धर्मशाला में विराट कोहली के मैदान में उतरने या ना उतरने के फैसले में उनका भी रोल होगा. वो अपने तजुर्बे से विराट कोहली को सही सलाह दे सकते हैं.



टीम इंडिया को विराट की जरूरत तो है



इस सीरीज में अब तक कांटे का मुकाबला देखने को मिला है. जिस ऑस्ट्रेलिया की टीम को बेहद कमजोर आंका गया था उसने पहले टेस्ट मैच में भारतीय टीम को बड़े अंतर से हराया. अगले टेस्ट मैच में भारतीय टीम ने जीत हासिल कर सीरीज में बराबरी की. रांची में खेले गए तीसरे टेस्ट मैच में कंगारूओं ने बेहद सधे प्रदर्शन से मैच को ड्रॉ कराया. ऐसे में सीरीज में जीत और हार का मौका है. तमाम क्रिकेट दिग्गजों ने इस सीरीज को पिछले एक दशक की सबसे दिलचस्प सीरीज का ‘टाइटल’ भी दिया है.



ऐसे में इंग्लैंड, न्यूजीलैंड और बांग्लादेश के खिलाफ हालिया सीरीज जीत चुकी भारतीय टीम किसी भी सूरत में अपने घर में सीरीज हारने के कलंक से बचना चाहेगी. पूरी सीरीज में अभी तक विराट कोहली का बल्ला खामोश ही रहा है. उनसे एक अहम मौके पर एक अहम पारी की दरकार है. उनकी चोट को लेकर हुए विवाद की वजह से आग में घी भी पड़ चुका है. इरादे ऑस्ट्रेलिया के भी कमजोर नहीं हैं. उन्हें पूरी दुनिया के सामने खुद को साबित करने का मौका दिख रहा है.



जिन दिग्गजों ने उन्हें अनाड़ी कहा था उन्हें गलत साबित करने का मौका दिख रहा है. यानि आग दोनों तरफ बराबर है. अब बस कुछ घंटे हैं आपके पास इस बात पर चर्चा करने के लिए कि विराट कोहली क्या करेंगे? बस ये मत भूलिएगा कि ये वही विराट कोहली हैं जो अपने पिता की मौत के बाद भी मैदान में उतरे थे, जिंदगी के उस दुखद लम्हें और धर्मशाला के मैच में कोई तुलना ही नहीं है लेकिन मैदान पर उतरने या ना उतरने को लेकर अगर कहीं पर भी मुकाबला है तो बस विराट कोहली के इरादों के बीच.