'खोना' महज एक शब्द भर ही है लेकिन महसूस किया जाए तो यह उस दर्द का सूचक है जिसे किसी दवा से आराम नहीं मिलता है. यह बात केवल वही समझ सकता है जिसने इस कोरोना काल में किसी अपने को खोया है. मौत किसी के लिए हो सकता है आंकड़ें भर हों लेकिन वास्तव में यह एक दुनिया के उजड़ जाने की कहानी है. वह दुनिया जो एक बूढ़ी मां के लिए उसका बेटा, पत्नी के लिए उसका पति और बच्चों के लिए उनके मां-बाप होते हैं. न ज़ाने ऐसे कितने लोगों की दुनिया कोरोना के कारण उजड़ गई. लोग इस महामारी की चपेट में आकर अपने परिवार से इतना दूर चले गए जहां से कभी वह अब लौट कर नहीं आएंगे.


जब पूरी दुनिया में कोरोना से त्राहिमाम मचा हुआ था और लोग ऊपरवाले से अपनों की सुरक्षा के लिए प्राथना कर रहे थे तब ऐसी स्थिति में देश के डॉक्टर्स अपनी जान पर खेल कर लोगों की जिंदगियां बचाने की हर संभव प्रयास करने में लगे थे. कोरोना वायरस के मरीजों की जिंदगी बचाने की जद्दोजहद में लगे डॉक्टर्स को भी मालूम था कि जरा सी असावधानी उनकी जान जोखिम में डाल सकती है. उनका भी एक परिवार है, उनके भी छोटे बच्चे हैं और उनके घर में भी कोई न कोई बुजुर्ग है, लेकिन इन तमाम बातों को भूल देशभर के डॉक्टर्स ऐसे मुश्किल समय में कर्तव्य पथ पर डटे रहे और इस कथन को सही साबित किया कि वाकई डॉक्टर्स भगवान का दूसरा रूप होते हैं.


लगातार कोरोना मरीजों की देखभाल कर रहे डॉक्टर्स को मालूम था कि कई घंटों तक कोरोना वार्ड में संक्रमित मरीजों के बीच रहने के बाद जब वो घर जाएंगे तो इस बात की पूरी संभावना है कि उनका परिवार भी इस वायरस की चपेट में आ जाए, लेकिन इसके बावजूद उनका एक ही मकसद रहा और वो मकसद था- कोरोना को हराना है, जिंदगी को बचाना है.


इस दौरान डॉक्टर समेत अनेक चिकित्साकर्मी अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा के साथ निभाते हुए अपनी जान तक गंवा बैठे. ऐसे वक्त में जब हर कोई पूरी तरह विवश नज़र आ रहा था, वो डॉक्टर्स ही थे जिन्होंने संक्रमित रोगियों की जान बचाने को अपना जुनून बना लिया. देश के कई डॉक्टर्स तो कई दिनों तक बिना अपने घर गए लगातार ईमानदारी से मरीजों की देखभाल करते रहे. पीपीई किट घंटों पहने हुए डॉक्टर्स और अन्य चिकित्साकर्मियों की हालत खराब हो गई. लेकिन फिर भी वो नहीं रुके. दरअसल पीपीई किट को पहनने के 30-40 मिनट के बाद ही पसीना आने लगता है. इस दौरान उन्हें हवा नहीं लगती. साथ ही शरीर डिहाइड्रेट तक हो जाता है. लेकिन ये कठिन से कठिनतम परिस्थितियों में उनकी मेहनत ही थी कि इस उदास मौसम में भी कई घर ऐसे हैं जहां फिर से मुस्कुराहट इन्हीं डॉक्टर्स की वजह से लौटी है.


कोरोना का ईलाज करते हुए कई डॉक्टर्स खुद भी संक्रमित हुए और बाद में उनकी मृत्यु हुई. ऐसे ही एक डॉक्टर थे डॉ. असीम गुप्ता जो एलएनजेपी अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर व एनेस्थेलॉजिस्ट थे. वो लगातार संक्रमित मरीजों की देखभाल आईसीयू में कर रहे थे. सेवा करते करते वो 3 जून को खुद कोरोना से संक्रमित हुए और 28 जून को उनकी मृत्यु हो गई, पीछे छूट गया उनका परिवार जो अब जिंदगी भर उन्हें बस याद कर के रो सकता है. लेकिन डॉ असीम गुप्ता जैसे अनगिनत डॉक्टर्स ने अपनी जान देकर दूसरो की जान बचाने का प्रयास अंतिम समय तक किया.


कोरोना के इस भयावह समय में डॉक्टर्स की कई तस्वीरें ऐसी वायरल हुई जिसने हम सबको भावुक कर दिया. एक ऐसी ही तस्वीर का जिक्र करें तो आपको याद होगा, एक डॉक्टर पांच दिन बाद अपने घर चाय पीने के लिए पहुंचे. उनके परिवार वालों को खतरा न हो इस वजह से वो बाहर बैठकर चाय पी रहे थे और उनकी पत्नी और बच्चे गेट पर खड़े उन्हें देख रहे थे. इस मुश्किल वक्त को दर्शाने के लिए ये तस्वीर काफी था.


हालांकि कोरोना काल में कुछ ऐसे मामले भी डॉक्टरों या अस्पताल प्रबंधन के सामने आए जो  मानवता को शर्मसार करने वाले रहे. कई जगहों पर मरीजों और उनके परिजनों से दुर्व्यवहार करने का मामला भी सामने आया, लेकिन सभी डॉक्टर एक जैसे नहीं होते यह बात भी सच है. अधिकतर डॉक्टरों ने इस कोरोना काल में अदम्य साहस का परिचय दिया. उनका कर्ज शायद ही कोई चुका पाए. उनको बस हम सब मिलकर थैंक्यू कह सकते हैं और जो डॉक्टर्स अब हमारे बीच नहीं रहे उनके परिवारवालों को इश्वर हिम्मत दे ये प्राथना कर सकते हैं.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)