पांच राज्यों में संपन्न विधानसभा चुनावों के परिणाम यदि राज्यवार देखे जाएं तो कांग्रेस और बीजेपी के लिए मिले-जुले ही कहे जा सकते हैं लेकिन यूपी और उत्तराखंड में बीजेपी को मिली ऐतिहासिक जीत ने राष्ट्रीय परिदृश्य पर पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को निर्विवाद स्वीकृति दे दी है. ख़ास तौर पर बीजेपी को यूपी में मिली विराट विजय मोदी लहर के अब भी बरकरार रहने के दावे पर मुहर लगाती है. यूं तो इस देश ने पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी की लहरें भी देखी हैं, लेकिन मोदी लहर इस मायने में भिन्न है कि यह उनके नोटबंदी जैसा नितांत अलोकप्रिय और तकलीफदेह कदम उठाने के बावजूद बनी हुई है.


इन परिणामों ने मायावती, अखिलेश यादव, अजित सिंह जैसे छत्रपों की लुटिया भी डुबो दी है. लगातार देखने में आ रहा है कि कि बीजेपी अपनी आक्रामक शैली और जातीय-धार्मिक ध्रुवीकरण के दम पर क्षेत्रीय दलों को हाशिये पर धकेलने में कामयाब हो रही है. यह 2014 में झारखंड और महाराष्ट्र में दिखा. फिर हरियाणा और 2016 में असम में भी. हाल में महाराष्ट्र में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में भी यही देखा गया. यूपी भी इसका अपवाद नहीं है. इससे एक बार फिर किसी राष्ट्रीय दल के अखिलभारतीय आधिपत्य का दौर शुरू हो गया है. यह दीगर बात है कि इस बार कांग्रेस की जगह बीजेपी ने ले ली है.


तर्क यह भी दिए जा सकते हैं कि एंटीइनकंबेंसी फैक्टर के कारण मतदाताओं ने इन पांचों राज्यों में सत्तारूढ़ दलों को कुर्सी से उतार फेंका या यूपी में लगभग 60% लोगों ने बीजेपी के विरोध में भी तो मतदान किया, लेकिन ये लंगड़े तर्क हैं. हकीक़त यह है कि जाति और धर्म की राजनीति करने वाली बीजेपी के पाले में जाने के लिए मतदाताओं ने इस बार खुद जाति, धर्म और परिवारवाद की सीमाएं तोड़ डाली हैं और एक भी मुस्लिम को टिकट न देने के बावजूद उन सीटों पर भी कमल खिला दिया है, जहां मुस्लिम या यादव मतदाता निर्णायक थे. ब्राह्मणों और बनियों की पार्टी के नाम से पहचानी जाने वाली बीजेपी ने दलितों की पार्टी कही जाने वाली बीएसपी और मुस्लिमों की प्रिय पार्टी सपा से दलितों और मुस्लिमों के एक बड़े धड़े को तोड़कर अपनी तरफ लिया है. बीजेपी को यूपे के 41% एससी, 45% जाट, 38% यादव और 44% सामान्य मतदाताओं ने वोट दिया. यह यूपी और देश की बदलती हुई राजनीति का बड़ा संकेत है जो बीजेपी के लिए वोटबैंक का अखिलभारतीय नमूना बन सकता है. और यदि ऐसा हो गया तो देश के तकरीबन हर बड़े राज्य में आने वाले कई वर्षों तक किसी भी पार्टी या गठबंधन के लिए बीजेपी से पार पाना मुश्किल होगा.


इस महत्वपूर्ण बदलाव के लिए पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी संगठन के मुखिया अमित शाह को पूरा श्रेय देना ही पड़ेगा. दोनों ने समूचे यूपी में 2014 के लोकसभा चुनावों की सुनामी के बाद अब विधानसभा चुनावों में मिली रिकॉर्ड जीत से 2019 के आम चुनावों की सुदृढ़ पीठिका तैयार कर दी है. जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला को तो यहां तक कहना पड़ा कि विपक्ष 2019 को भूल जाए और 2024 के आम चुनावों की तैयारियां अभी से शुरू कर दे!


यूपी में सर्वत्र मिली विशाल जीत बीजेपी को 2018 के मध्य तक राज्यसभा में मजबूत कर देगी जिससे वह अहम नीतिगत फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हो जाएगी. भले ही मोदी जी संसद या कैबिनेट की सलाह से फैसले लेने के लिए नहीं जाने जाते, लेकिन अब उच्च सदन में बहुमत न होने का कोई बहाना नहीं चलेगा. आगामी राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति चुनाव के लिए बीजेपी आत्मनिर्भर हो जाएगी और इस साल के आख़िरी महीनों में होने जा रहे गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव भी मौजूदा परिणामों से अछूते नहीं रहेंगे.


सब जानते हैं कि 80 लोकसभा सीटों वाले यूपी से ही केंद्र को रास्ता जाता है और यूपी में मोदी के लगातार चल रहे जादू ने कांग्रेस, सपा, बसपा और अन्य छोटे क्षेत्रीय दलों के मन में दहशत भर दी है. हो सकता है कि देश के सभी गैर-बीजेपीई विपक्षी दल बीजेपी के खिलाफ़ महागठबंधन बनाने की कोशिशों में जुट जाएं! मायावती दलित विमर्श को लेकर भले ही चर्चा में बनी रहें लेकिन लोकसभा में वह सांसद विहीन हैं और यूपी में उंगलियों पर गिनने लायक सीटों पर सिमट गई हैं. अखिलेश यादव की बुरी हार बर्चस्व की लड़ाई में सपा के विभीषणों के हौसले बुलंद करेगी, जिसका स्पष्ट इशारा उनकी सौतेली मां साधना गुप्ता और चाचा शिवपाल यादव ने कर दिया है. पश्चिमी यूपी को अपना गढ़ मान कर चल रहे अजित सिंह मात्र एक सीट जीतकर आईसीयू में चले गए हैं. हो सकता है कि पार्टी के अंदर ही राहुल गांधी मुक्त कांग्रेस के आवाहन की बयार बहने लगे! यह भी स्पष्ट है कि बीजेपी के लिए गठबंधन की राजनीति से कन्नी काटने और कांग्रेस समेत अन्य दलों के लिए गठबंधन की शरण में जाने की मजबूरी का दौर भी देश में शुरू हो जाएगा.


यूपी की इस जीत का या देश में पिछले दिनों संपन्न स्थानीय निकायों में बीजेपी को मिली जीत का आर्थिक मोर्चे पर असर देखें तो नोटबंदी के दुष्प्रभाव की बहस निष्प्राण हो चुकी है. अब जीएसटी पूरे प्रभाव के साथ अमल में आ सकेगा और मार्केट पर देसी-विदेशी निवेशकों का भरोसा भी बढ़ेगा. केंद्र सरकार श्रम सुधारों के साथ-साथ 5 प्रमुख सेक्टरों में एफडीआई नियमों में ढील देने पर भी फैसला ले सकती है.


लेकिन यूपी की विशाल जीत का एक बड़ा ख़तरा यह है कि बीजेपी और उसके समर्थक पूरे देश में पहले से ज़्यादा आक्रामक व अहंकारी हो सकते हैं. इससे समाज में ध्रुवीकरण की गति तेज़ होगी और अस्थिरता बढ़ेगी, फलस्वरूप मोदी जी द्वारा दिया गया विकास का नारा महज एक जुमला बनकर रह जाएगा. बीजेपी को मिली अपार सफलता देश की राजनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत अवश्य दे रही है लेकिन यह बदलाव यदि सकारात्मक दिशा में होगा तभी देश का कुछ भला हो सकेगा.


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