बिहार के चुनावी मैदान में खलबली है. चुनावी महाबली अपने शुरूआती दांव आजमाने लगे हैं. एक दूसरे की ताकत को भांपा और आंका जा रहा है. जेडीयू के पास ‘सुशासन’ के मॉडल के साथ नीतीश कुमार का चेहरा है. 15 साल से बिहार की सत्ता काबिज नीतीश कुमार के लिए इस बार चुनौतियां भी कम नही हैं. आज बात उनके सामने की 5 बड़ी चुनौतियों की.


1. बीजेपी की ‘आत्मनिर्भर’बनने की चाहत !


सबसे पहले बात नीतीश कुमार के पुराने साथी बीजेपी की. जेडीयू औऱ बीजेपी पुराने साथी तो है लेकिन क्या एक दूसरे की नज़र में भरोसेमंद भी हैं? ये सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि पिछले चुनाव में ये भरोसा टूट चुका है. नीतीश कुमार ने बीजेपी का हाथ झटक आरजेडी की लालटेन थाम ली थी. तो वहीं बीजेपी के सामने महाराष्ट्र का उदाहरण भी है. जहां पुरानी सहयोगी होने के बावजूद शिवसेना चुनाव के बाद बीजेपी को गच्चा दे गयी. ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी के ‘आत्मनिर्भर’ के नारे को बिहार बीजेपी ने काफी सीरीयसली ले लिया है. वो बिहार में अब ‘आत्मनिर्भर’ बनना चाहती है. इसलिए ‘लोकल’ लीडर अंदर अंदर काफी ‘वोकल’ हैं. इसके लिए वो सीटों के बंटवारे में बराबरी चाहती है. इरादा जेडीयू से ज्यादा सीटें जीतने का है.


2.चिराग की महत्वाकांक्षा


बीजेपी के इरादे भले ही दबे छुपे हों लेकिन उसकी सहयोगी एलजेपी लगातार नीतीश कुमार पर हमलावर है. कोरोना टेस्टिंग की बात हो या बाढ़ या फिर शराबबंदी चिराग पासवान नीतीश को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं. चिराग पासवान अपनी ब्रांडिंग युवा बिहारी के तौर पर कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं. युवाओं को लुभाने के लिए बिहार फर्स्ट औऱ बिहारी फर्स्ट की बात कर रहे हैं. उनकी पार्टी एलजेपी एनडीए में शामिल हैं लेकिन जेडीयू के साथ गंठबंधन नही है. उनके ये तेवर सिर्फ गठबंधन में ज्यादा सीट हासिल करने के लिए है या कुछ औऱ कारण हैं. बिहार की उनकी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा है, जो सिर्फ अपनी पार्टी के बूते पूरी नहीं हो सकती. इसलिए वो बीजेपी के साथ औऱ नीतीश के खिलाफ दिखते हैं. अगर बीजेपी औऱ वो साथ रहे तो दोनों का साथ दोनों का विकास का फार्मूला चल सकता है. भले ही ये फार्मूला अभी दूर की कौड़ी लगे लेकिन राजनीति में कोई फार्मूला खारिज नही किया जा सकता. यहां पहेली ये है कि किसका कंधा औऱ किसकी बंदूक औऱ कौन निशाने पर.



3.तेजस्वी की चुनौती


तेजस्वी यादव बिहार में विपक्ष का सबसे मुखर चेहरा हैं. महागठबंधन की सरकार में उप मुख्यमंत्री रह चुके हैं. लालू यादव की गैर मौजूदगी में आरजेडी की कमान उन्होंने संभाल रखी है. चाहे बिहार में स्वास्थ्य सुविधाओं की बात हो या अपराध की या बाढ़ राहत या फिर कोरोना और मजदूरों के पलायन से निपटने का मुद्दा, तेजस्वी यादव ने इन्हें जोर शोर से उठाया. जहां नीतीश कुमार आरजेडी के ‘जंगलराज’ की याद दिला वोटर्स को आरजेडी से दूर रहने की चेतावनी दे रहे. तो तेजस्वी नीतीश कुमार पर अतीत में बने रहकर वर्तमान औऱ भविष्य को बर्बाद करने का आरोप लगा रहे हैं. तेजस्वी बिहार के विकास औऱ भविष्य की बात कर युवा वोटरों को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहे हैं. उन्हें मालूम है कि पिता का नाम उनके वोट बैंक को एकजुट रखेगा. लालू यादव का बनाया एमवाय यानि मुस्लिम-यादव का वो वोट बैंक जिसे तोड़ना हमेशा मुश्किल रहा है. ऐसे में उनकी कोशिश आरजेडी में बदलाव औ युवा चेहरे के तौर पर युवा वोटरों में पैठ बनाने की है. जो नीतीश कुमार की एक चिंता हैं.


4. बिहार के ‘मिलेनियल्स’ का मूड


अपनी वर्चुअल रैली में नीतीश कुमार ने पुरानी पीढ़ी के लोगों से कहा कि ‘वो नई पीढ़ी को उस दौर की बातें बताएं नहीं तो कहीं युवा गड़बड़ लोगों के चक्कर में पड़ जाएंगे तो जितना काम हुआ है सब बर्बाद हो जाएगा. आखिर ऐसा क्यों कहना पड़ा नीतीश कुमार को? नीतीश कुमार के लिए एक चुनौती वो युवा वोटर हैं जो बिहार विधानसभा के लिए पहली बार वोट डालेंगे. ये वो वोटर हैं जिन्होंने नीतीश कुमार जिस ‘जंगल राज’ औऱ ‘लालटेन युग’ की बात करते हैं उसे नही देखा. उसने सिर्फ नीतीश कुमार के ‘सुशासन’ को देखा है. ये युवा डिजिटल जरिये से पूरी दुनिया को देख रहे. इनके अंदर आगे बढ़ने की ललक है. ऐसे में वो बिहार में अपने लिए अवसर की चाहत में विकल्पों पर विचार कर सकती है. जाहिर है नीतीश कुमार जब पुरानी पीढ़ी को समझाने के लिए कह रहे हैं तो वो उसी विचार को रोकना चाह रहे हैं. ताकि उनके अंदर किसी दूसरे को मौका देने की सोच हावी न हो जाय.


5. एंटी इन्कंबेसी


नीतीश कुमार को इस बार एंटी इन्कंबेसी का सामना करना पड़ेगा. समाज कुछ तबकों में सरकार से नाराजगी है. अब इसे सरकार का चेहरा होने का ‘संयोग’ माने या कोई ‘प्रयोग’ ये सारी नाराजगी नीतीश कुमार के लिए है. साझा सरकार की कोरोना के दौरान सरकार ने जिस तरह से काम किया या फिर बिहार के मजदूरों का पलायन इन सबकी जिम्मेदारी नीतीश कुमार के खाते में गई है.


लेकिन नीतीश कुमार के पक्ष में सबसे बड़ी बात ये है कि बिहार में उनका कोई मजबूत विकल्प उभर कर नही आया है. उनका चेहरा बिहार के लोगों का जाना-पहचाना और देखा परखा है, जिसपर वो भरोसा करते हैं. उनका अनुभव, उनकी छवि और राजनीतिक सूझ बूझ की फिलहाल कोई काट नहीं है. जाति वाली राजनीति के बीच बिना किसी बड़े जातिगत आधार के उन्होंने बिहार में लगातार तीन जीत हासिल की है. जाहिर है हमेशा चार कदम आगे की चाल सोचकर रखने वाले नीतीश कुमार को कम आंकने की भूल ना तो विपक्ष करेगा औऱ ना ही उनके गठबंधन के साथी.


नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.