राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में नवंबर-दिसंबर में चुनाव होने हैं. लगे हाथों तेलंगाना और मिजोरम में भी. कमलनाथ ने पहले 100 यूनिट बिजली माफ, 200 यूनिट बिजली तक हाफ का नारा बुलंद कर मध्य प्रदेश में फ्रीबीज की राजनीति को शुरू कर दिया है. राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ बीजेपी के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं तो कांग्रेस हिमाचल और कर्नाटक के बाद इन राज्यों में जीत का सिलसिला बनाए रखना चाहेगी.


क्या हिन्दुत्व के मुद्दे पर बीजेपी असमंजस में?


बीजेपी फिलहाल एक जबर्दस्त पेंच में फंसी है और कर्नाटक के नतीजों ने उसके सामने यह संकट पैदा कर दिया है. संकट यह है कि हिंदुत्व का जो कार्ड है, जिसके कई आयाम हैं, वह पूरा का पूरा बीजेपी ने दांव पर लगा दिया था. हालांकि, विंध्य के इस पार और उस पार यानी उत्तर और दक्षिण भारत की राजनीति को थोड़ा अलग से भी देखना चाहिए.


कर्नाटक के जो लोग हैं या जो मानस है, उनकी तुलना या बराबरी उत्तर भारत के मानस या मतदाता से नहीं कर सकते. ऐसा कहना थोड़ी जल्दबाजी होगी कि विंध्य के पार हिंदुत्व का कार्ड नहीं चलेगा. अभी जब बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री बिहार के पटना आए तो जिस तरह लाखों की भीड़ उमड़ी, वो एक संकेत देता है कि उत्तर भारत तो हिंदुत्व पर कायम रहेगा. बीजेपी की मूल ताकत तो कट्टर हिंदुत्व ही है. बजरंग दल या हिंदू वाहिनी जैसे जितने फ्रंटल संगठन है, उनका जमीनी इलाका तो मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ ही है. बीजेपी के पास हिंदुत्व को कट्टरता से लागू करवाने वाले नेताओं के अलावा कोई नेता भी तो नहीं है. इन तमाम वर्षों में बीजेपी या संघ ने जिनको तैयार किया है, वे हिंदुत्व वाले ही तो हैं. तो, बीजेपी अगर हिंदुत्व के एजेंडे से पीछे हटेगी तो आरएसएस का पूरा सपना ही ध्वस्त हो जाएगा.


बाकी राज्यों के चुनाव कर्नाटक नतीजों से प्रभावित नहीं


तीन चीजें हैं जो इन चुनावों में दिशा तय करेगी. तेलंगाना में तो बीजेपी को कर्नाटक से सबक लेकर अपने हिंदुत्व वाले कार्ड को सॉफ्ट करना पड़ेगा. दूसरे जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, वहां हिंदुत्व के एजेंडे को घोर आक्रामक तरीके से बीजेपी लागू करेगी. मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ऐसे वोटर हैं, जो पीएम की छवि के साथ चालित होते हैं. अब दिक्कत ये है कि यूपी में जैसा कद्दावर नेता है, बीजेपी के पास वैसा इन तीनों राज्यों में नहीं है. यहां पर आरएसएस ने बहुत काम किया हुआ है. दूसरी बात, रेवड़ी कल्चर और फ्रीबीज को बीजेपी हिंदुत्व के साथ मिलाएगी और इसकी भी घोषणा करेगी.


तीसरा मुद्दा जो है, वह है आदिवासियों का. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में आदिवासी इलाके बहुत हैं. छत्तीसगढ़ में नंदकुमार साय के बीजेपी छोड़ने से बहुत नुकसान हुआ है. तो, इन तीनों ही बातों को मिलाकर बीजेपी चलाएगी. अब जैसे कमलनाथ ने 100 यूनिट माफ, 200 तक हाफ की घोषणा कर रेवड़ियों की शुरुआत कर दी है. बीजेपी भी उसी सुर में जवाब देगी. वैसे, मध्य प्रदेश में बीजेपी हारेगी तो भी कांग्रेस जीतेगी नहीं. 


ज्योतिरादित्य बना सकते हैं थर्ड फ्रंट


अब एक नया डेवलपमेंट आज हुआ है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने ट्विटर हैंडल से बीजेपी हटा दिया है. यह बड़ी सूचना है. अगर वह सचिन पायलट जैसा राजस्थान में कर रहे हैं, वैसा ही सिंधिया कोई थर्ड फ्रंट मध्य प्रदेश में बनाएं, इस संभावना से इनकार नहीं कर सकते. सिंधिया के समर्थक खुद को बहुत ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं.


मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ की राजनीति जो है वह कर्नाटक नतीजों से प्रभावित नहीं होगी. मध्यप्र देश में शिवराज बड़े नेता हैं, लेकिन राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी के पास कोई बड़ा नेता नहीं है. कर्नाटक के आधार पर यह भी तय नहीं कर सकते कि बीजेपी इन जगहों पर हार भी रही है. कमलनाथ मध्य प्रदेश में पिटे हुए नेता हैं. अगर उनको पीछे कर चुनाव की कमान और चेहरा दिग्विजय सिंह को नहीं बनाया, तो कांग्रेस हार जाएगी. कर्नाटक को याद कीजिए. वहां डीके शिवकुमार मैदान में थे और सिद्धारमैया सहायक भूमिका में थे.


बीजेपी डैमेज कंट्रोल की कोशिश में है, लेकिन ज्योतिरादित्य जो भी करते हैं सोच-समझ कर करते हैं. तो, वह शायद 2024 की तैयारी कर रहे हैं. वह लोकसभा चुनाव को देख रहे हैं. वह कांग्रेस में भी लौटें, इसकी संभावना कम है. राहुल गांधी से जब एक पत्रकार ने उनकी वापसी के संबंध में पूछा था तो राहुल ने बहुत अप्रिय टिप्पणी की थी. सिंधिया थर्ड फोर्स की तरह उभर सकते हैं.


उसी तरह सचिन पायलट राजस्थान में हैं. वह मिलकर एक नया मोर्चा खड़ा कर सकते हैं. छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल काफी मजबूत भी हैं और उनको आलाकमान का काफी समर्थन भी है. कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक भी वहीं हुई थी और उसके बाद ही कई सारे परिवर्तन हुए.


कांग्रेस के लिए छत्तीसगढ़ सुरक्षित है, लेकिन बाकी दोनों राज्यों में उसकी राह कठिन है. बीजेपी के लिए अभी भी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है. वह अपनी रणनीति थोड़ी सी बदल ले तो मुकाबला बहुत रोचक होगा. बीजेपी के लिए इन राज्यों में चुनाव जीतना बहुत जरूरी है, क्योंकि ये राज्य हारने के बाद बीजेपी के लिए मुश्किल हो जाएगी. यहां लोकसभा की सीटें भी अच्छी-खासी हैं, तो बीजेपी और संघ पूरा जोर भी लगाएंगे. इन राज्यों के चुनाव को इसी परिप्रेक्ष्य में देखना और समझना चाहिए.


(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)