बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार की अगुवाई वाली महागठबंधन सरकार ने विश्वास मत तो जीत लिया है लेकिन शक्ति परीक्षण से ऐन पहले आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के परिवार और अन्य नेताओं के यहां हुई सीबीआई की छापेमारी ने नई सियासी बहस छेड़ दी है.
सवाल पूछा जा रहा है कि नीतीश-तेजस्वी यादव की जोड़ी को डराने के लिए क्या यह बदले की सियासत वाली कार्रवाई थी या फिर सचमुच भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जंग का एक नमूना था? चूंकि सारा मसला सीबीआई के छापों की टाइमिंग को लेकर है, इसीलिये विपक्षी दल केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ हमलावर हो गए हैं कि वह केंद्रीय जांच एजेंसियों का लगातार बेजा इस्तेमाल कर रही है.
दरअसल, बुधवार को सीबीआई ने लैंड फॉर जॉब स्कैम यानी कथित नौकरी के बदले जमीन घोटाले के मामले में बिहार और गुरुग्राम के 25 ठिकानों पर जो छापेमारी की है, उससे संबंधित एफआईआर बीती 18 मई को ही दर्ज़ कर ली गई थी. आमतौर पर जांच एजेंसी मामला दर्ज होने के चंद दिनों के भीतर ही छापेमारी की कार्रवाई करती है, जैसा कि दिल्ली के कथित शराब घोटाले में देखने को मिला, जहां मामला दर्ज होने के कुछ ही दिन में सीबीआई ने डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के घर पर छापे की कार्रवाई की थी.
लेकिन लालू परिवार के कथित भ्रष्टाचार से जुड़े इस मामले में सीबीआई ने पूरे तीन महीने का वक्त लिया और दिन भी वह चुना, जब विधानसभा में फ्लोर टेस्ट होना था. इसलिये अगर विपक्ष ये आरोप लगा रहा है कि जांच एजेंसियां स्वतंत्र व निष्पक्ष होने की बजाय सरकार के दबाव में काम कर रही हैं, तो कुछ हद तक वे सही भी हैं.
सीबीआई की एफआईआर में लालू प्रसाद यादव,उनकी पत्नी राबड़ी देवी और बेटी मीसा भारती एवं हेमा यादव समेत 12 अन्य को भी आरोपी बनाया गया है, जिनमें आरजेडी के पांच नेता भी शामिल हैं. उसी सिलसिले में जांच एजेंसी ने लालू के करीबी पांच नेताओं समेत गुरुग्राम के सेक्टर 71 स्थित अर्बन क्यूबस मॉल में छापेमारी की है. सूत्रों का दावा है कि वहां स्थित व्हाइट लैंड कॉर्पोरेशन नाम की कंपनी का संबंध तेजस्वी यादव से भी है.
दरअसल,ये कथित घोटाला उस समय का है, जब लालू यादव रेल मंत्री थे. ऐसा दावा है कि लालू यादव के रेल मंत्री रहने के दौरान रेल मंत्रालय में लोगों को नौकरी देने के बदले उनसे जमीन ली गई थी. इस सिलसिले में सीबीआई ने 23 सितंबर 2021 को पीई (प्रिलिमनरी इनक्वायरी) दर्ज की थी. आरोप लगाया गया है कि लालू यादव के रेल मंत्री रहते इसके तहत रेलवे के ग्रुप डी के पदों पर लोगों को आवेदन के तीन दिन के अंदर नौकरी दी गई और बाद में उन्हें नियमित कर दिया गया. इसके बदले नौकरी पाने वालों के परिवार ने राबड़ी देवी और मीसा भारती के नाम अपनी जमीन ट्रांसफर की.
सीबीआई का कहना है कि लालू प्रसाद के परिवार ने पटना में कैश पेमेंट कर 1.05 लाख वर्ग फुट जमीन खरीदी है. सीबीआई की ओर से दर्ज एफआईआर में कहा गया है, ''गिफ्ट डीडी के अलावा जमीन के जो सात टुकड़े यादव परिवार को दिए हैं उनकी कीमत मौजूदा सर्किल रेट के हिसाब से 4.39 करोड़ रुपये है. कहा गया है कि ये ज़मीनें लालू यादव के परिवार ने मौजूदा सर्किल रेट से कम रेट पर खरीदी है. ''
शायद यही वजह थी कि विधानसभा में विश्वास मत के प्रस्ताव पर बोलते हुए डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने इस छापेमारी को लेकर बीजेपी पर जमकर निशाना साधा.उन्होंने कहा, "जो लोग डरेगा वो लोग मरेगा और जो लोग लड़ेगा वो जीतेगा. जब बीजेपी राज्य में डरती है या हारती है, तो वह अपने तीन 'जमाई', सीबीआई, ईडी और आईटी को आगे रखती है ...जब मैं विदेशों में जाता हूं, तो बीजेपी मेरे खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी करती है. हालांकि तेजस्वी यादव के जमाई वाले बयान पर बीजेपी ने विरोध जताया.
तेजस्वी ने बीजेपी पर हमला जारी रखते हुए कहा कि आप लोगों का डिजाइन सबको पता है. हर जगह कब्जाना है, सौहार्द और भाईचारा को बिगाड़ना है. लोकतंत्र का ढांचा बीजेपी को कुचलने नहीं देंगे, इसलिए हम लोग एक हुए हैं. नीतीश कुमार ने पूरे देश की जनता को एक उम्मीद देने का काम किया है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को राजनीति का चतुर खिलाड़ी माना जाता है,शायद इसीलिये आज उन्होंने सदन में दिए अपने भाषण में बीजेपी पर तो जोरदार हमला बोला लेकिन सीबीआई की छापेमारी का कोई जिक्र नहीं किया. नीतीश कुमार ने कहा कि एनडीए सरकार में वह सीएम नहीं बनना चाहते थे लेकिन दबाव डालकर उन्हें बनाया गया था.
हालांकि वे बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी और पूर्व दिवंगत पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की तारीफ करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी का नाम लिए बगैर उन पर हमला करने से नहीं चूके. लेकिन वे ऐलान करना भी नहीं भूले कि "मैंने विपक्ष के सभी नेताओं आग्रह किया है कि 2024 का लोकसभा चुनाव सब साथ मिलकर लड़ें.''
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