इन दिनों बिहार में नए सरकार गठन के बाद राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है. प्रेशर पॉलिटिक्स से लेकर रिजॉर्ट पॉलिटिक्स तक इसमें शामिल हो गया है. नीतीश ने भले ही 9वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली हो लेकिन उन्हें सदन के पटल पर अपनी शक्ति साबित करने के लिए कई खेला से होकर गुजरना होगा. यह राह उतनी भी आसान होती हुई नहीं दिखाई पड़ रही है. कई ऐसे रोड़े हैं जो नीतीश सरकार के इस राह में नजर आ रहे हैं. विपक्ष के जाल से नीतीश कैसे अपनी नैया पार लगा पाते हैं यह भी अहम बात होगी.


वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखा जाए तो यही मालूम पड़ता है कि बिहार की राजनीति को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. कब कौन किसके पाले में गिर जाए यह कहा ही नहीं जा सकता. नीतीश कुमार जहां कल तक विपक्ष को एकजुट कर मोदी विरोध में सभी पार्टियों को एक मंच पर ला रहे थे वे खुद हीं आज एनडीए के साथ आकर बिहार में नई सरकार बना चुके हैं. अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या वे आगामी 12 फरवरी को विधानमंडल के पटल पर विश्वास मत हासिल कर अपनी सरकार बचा पाते हैं? समझिए दांव-पेंच के वो कौन से कारण हैं जो इस समय बिहार की राजनीति में नजर आ रहे हैं.


शक्ति परीक्षण से पहले जेडीयू में फूट की आशंका


बिहार में विधानसभा के पटल पर शक्ति परीक्षण होना है. 243 सीटों वाली विधानसभा में 122 सीटें बहुमत साबित करने के लिए चाहिए. बीजेपी के पास 78 विधायक हैं तो वहीं जेडीयू के पास 45 विधायक. निर्दलीय एक और हम पार्टी के चार विधायक कुल मिलाकर यह आंकड़ा 128 विधायकों का होता है. एनडीए समर्थित सरकार ने राज्यपाल को दिए पत्र में इतने विधायकों द्वारा अपना समर्थन दिया है. ऐसे में जेडीयू को यह आशंका है कि अगर उसके 5 से 6 विधायक भी टूट जाते हैं तो उनकी सरकार को खतरा होगा. जेडीयू के कई विधायक भी ट्रेसलेस पाए जा रहे है यह भी खबर सामने आ रही है है. शक्ति परीक्षण के पहले जेडीयू अपने सभी बड़े नेताओं को इन विधायकों की राजनीतिक घेराबंदी के लिए लगा चुकी है.



जेडीयू के विधायक गोपाल मंडल ने इस बात को स्वीकार किया है कि जेडीयू में कई विधायक अपना पाला बदल सकते हैं तो कई विधायक मंत्री नहीं बनाए जाने के कारण भी नाराज चल रहे हैं. ऐसे में भाजपा ने भी अपनी पूरी शक्ति जेडीयू विधायकों को एक साथ रखने के लिए लगाया हुआ है क्योंकि भाजपा यह जानती है कि जेडीयू के विधायक टूट सकते हैं. पिछले दिनों जेडीयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिए जाने के बाद सियासी गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई थी कि ललन सिंह कोई बड़ा गेम कर सकते हैं. नए राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार के बनने के बाद संगठन में बदलाव किया गया. संगठन विस्तार में ललन सिंह को कोई पद नहीं दिया गया है. ऐसे में क्या नीतीश और ललन सिंह के बीच अंदरखाने कुछ अलग खिचड़ी पक रही है?


विधानसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफा न देना


बिहार विधानसभा के निवर्तमान अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी राजद के कोटे से हैं. उन्होंने अबतक अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया है. ऐसे में यह माना जा रहा है की लालू यादव अपनी राजनीतिक चाल चल सकते हैं. बिहार में जिस खेला होने की बात का जिक्र तेजस्वी कर चुके है क्या यह उसकी पटकथा का एक अंश है? क्या कुछ विधायकों को तोड़ कर या सदन में जेडीयू के कुछ विधायकों को अनुपस्थित करा कर विश्वास मत को गिराया जा सकता है?  ऐसे में एनडीए की यह पूरी कोशिश होगी कि पहले विधानसभा अध्यक्ष पद से अवध बिहारी को हटाया जाए. उसके बाद सदन के पटल पर शक्ति प्रदर्शन कर नई सरकार का परीक्षण किया जाए.



हुकुम के इक्के जीतनराम मांझी के बदले सुर


हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के सुर इन दिनों बदले हुए नजर आ रहे है. बिहार विधानसभा में उनकी पार्टी के 4 विधायक हैं. वे नीतीश सरकार में 2 मंत्री पद की मांग कर रहे हैं. उनके पुत्र संतोष सुमन तो पहले ही मंत्री पद की शपथ ले चुके हैं. उन्हें पहले के मुकाबले एक और विभाग भी दिया गया है. लेकिन अब वे एक और मंत्री पद की मांग कर रहे हैं.


दरअसल, मांझी यह जानते हैं कि इस समय प्रेशर पॉलिटिक्स कर उनकी मांग पूरी हो सकती है. उन्होंने यह भी बयान देकर भी बिहार की सियासी फिजां को गरमा दिया कि विपक्ष की ओर से उन्हें मुख्यमंत्री बनने तक का ऑफर मिला हुआ है. ऐसे में उनकी मांग अगर पूरी नहीं हुई तो वे तेजस्वी को अपना समर्थन दे सकते हैं. बिहार में एनडीए के साथी लोजपा रामविलास के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने मांझी का साथ देते हुए कहा कि उनकी मांग जायज है. वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में मांझी सरकार बनाने में सहायक हैं. ऐसे में मांझी हुकुम के इक्केे के रूप में अपने आप को देख रहे हैं. ऐसे में उन्हें यह पता है कि उनके 4 विधायक से सरकार पर दबाव बनाया जा सकता है.


कांग्रेस की रिजॉर्ट पॉलिटिक्स


दिल्ली में शनिवार को हुई एआईसीसी की बैठक के बाद कांग्रेस ने अपने विधायकों को दिल्ली बुला कर वहां से हैदराबाद शिफ्ट कर दिया है. वर्तमान में बिहार विधानसभा में कांग्रेस के 19 विधायक मौजूद हैं इनमें से 16 विधायक रविवार शाम हैदराबाद रिजॉर्ट पहुंच गए हैं. अन्य विधायकों के भी जल्द वहां पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है. दरअसल, बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने लालू प्रसाद से मुलाकात कर दिल्ली का रुख किया था. लालू के कहने पर ही सभी विधायकों को रिजॉर्ट पॉलिटिक्स के तहत हैदराबाद में रखा गया है ताकि किसी भी तरह से कांग्रेस के विधायकों को तोड़ा नहीं जा सके. इसका साफ मतलब यह है कि राजद सदन में विश्वास मत गिराने की पूरी कोशिश करना चाह रहा है. इसके मास्टरमाइंड लालू प्रसाद ने अपने हाथ में कमान संभाल ली है. वे तेजस्वी के लिए अपने सारे दांव दुरुस्त रखना चाह रहे हैं. ताकि विधानसभा में विश्वास मत में कम वोटिंग हो और नीतीश की सरकार को गिराया जा सके.


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